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संस्कृति को जिंदा रखने की जुगत में जुटे रणछोड़लाल पांचाल

locationनागदाPublished: Jan 12, 2019 08:27:39 pm

Submitted by:

Gopal Bajpai

पतंगबाजी के दौर में खो गई गल्ली डंडे की गूंज

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संकृति को जिंदा रखने की जुगत में जुटे रणछोड़लाल पांचाल

नागदा। मकर संक्राति पर गिल्ली डंडे खेले जाने की परंपरा खो गई है। आधुनिकता के दौर में मकर संक्राति पर अब वो कांटा का शोर सुनाई देता है। लेकिन शहर में एक ऐसे वृद्ध भी है, जो हर साल दो दर्जन से अधिक गिल्ली डंडे बनाकर संस्कृति को जीवंत करने की चाह रखते है। हम बात कर रहे है, रणछोड़लाल पांचाल की। पेशे से फर्निचर कर कार्य करने वाले पांचाल को मकर संक्राति पर की जाने वाली पंतग बाजी कचौटती है। पांचाल पंतगबाजी का विरोध में नहीं है, उन्हें मकर संक्राति पर मूल रूप से खेले जाने वाले पारंपरिक खेल गिल्ली डंडे के लुप्त हो जाने का भय है। जिसके लिए पांचाल हर वर्ष दो दर्जन से अधिक गिल्ली डंडे का आकार देते है। जिसे स्कूली बच्चों में बांटकर संक्राति पर्व पर गिल्ली डंडे की महत्वता को समझाते है। लेकिन बच्चों पर पतंगबाजी का शौक खुमार है।
पैतृक कार्य कैसे छोड़ दूं
सालों तक केमिकल डिविजन उद्योग में बतौर श्रमिक के रुप में कार्य कर सेवानिवृत्त हो चुके पांचाल ने अब तक फर्निचर बनाने का कार्य नहीं छोड़ा। पांचाल समाज के होने के साथ ही फर्निचर की कारीगरी को करने को वह उनका धर्म मानते है। पांचाल का कहना है, कि पैतृक कार्य होने के साथ ही एक पांचाल का कतृव्र्य भी है, कि वह लोगों में पंरपराओं को जीवंत कर सके। आधुनिकता के दौर में लोगों ने मकर संक्राति पर भले ही पंतग बाजी को अपना लिया हो, लेकिन पांचाल समाजजन गिल्ली डंडे के महत्व को लोगों तक पहुंचा सकते है। यदि 100 लोगों को बताया जाए, कि संक्राति पर गिल्ली डंडे खेलना पंरपरा है, तो 10 लोग तो महत्व को समझेंगे ही।
खुले मैदान में खेले, नहीं है खतरा
पांचाल से पत्रिका टीम द्वारा गिल्ली डंडे खेले जाने से चोट लगने के खतरे के बारे में पूछा गया। जवाब आक्रोशजन था, लेकिन सही था। पंाचाल बताते है, कि गिल्ली डंडा रहवासी इलाके या हर समय खेलने वाले खेल नहीं है। खुले मैदान में पर्व व समूह निर्माण का खेल है। खतरा तो पतंगबाजी में भी होता है, अक्सर सुनने में आता है। पंतग लूटते समय छत से गिरने से एक बच्चे की मौत। कभी आपने गिल्ली डंडे से किसी के मौत होने की खबर सुनी है।
इनका कहना-
फर्निचर का कार्य करना हमारा पेशा है। ग्रेसिम केमिकल से सेवानिवृत्त हूं। पैतृक कार्य है इसे कैसे छोड़ सकता है। भारती संस्कृति को जीवत रखने वाले गिल्ली डंडा खेल को जीवत रखने के लिए हर वर्ष गिल्ली डंडा बनाता हूं। अब पहले जैसा समय नहीं है, मकर सक्रांति पर पतंग हावी हो गई है।
रणछोड़लाल पांचाल
कारपेंटर, इंद्राचौक

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