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विश्व के अस्तित्व की सुरक्षा भारतीय संस्कृति से ही संभव

locationनागौरPublished: Sep 24, 2018 06:59:18 pm

Submitted by:

Dharmendra gaur

जैन विश्वभारती विवि में व्याख्यान

Ladnu News

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लाडनूं. भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष सांसद मदनलाल सैनी ने कहा कि भारतीय संस्कृति अनेक विशेषताओं वाली संस्कृति है। यहां सामाजिक दायित्वों के बारे में व्यक्ति जिम्मेदार होता है। उस व्यक्ति के लिए समाज खड़ा हो जाता है। केवल अपनी ही सोचने वालों के बारे में समाज भी नहीं सोचा करता है। मंदिर में झुकने पर उस व्यक्ति का अहम खत्म हो जाता है। वे सोमवार को जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) की महादेवलाल सरावगी अनेकांत शोध पीठ के तत्वावधान में आचार्य तुलसी श्रुत संवद्र्धिनी व्याख्यानमाला के अन्तर्गत हुई व्याख्यान कार्यक्रम को बतौर अतिथि सम्बोधित कर रहे थे। महाप्रज्ञ महाश्रमण ऑडिटोरियम में भारतीय संस्कृति का भविष्य विषयक व्याख्यान में उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज देश को तोडऩे वाली शक्तियां सक्रिय है। आतंकवाद को पैसा और पनाह देने वालों से सावधान रहने की आवश्यकता है। उन्होंने नौजवानों से आह्वान किया कि वे ही इस देश को बदल सकते हैं। उन्होंने शिक्षा को डिग्री के लिए नहीं बल्कि देश की सेवा की शिक्षा भी जरूरी बताई। सैनी ने गाय के विनाश पर भी चिंता जताई तथा कहा कि जैन समाज ने गाय की रक्षा का संकल्प लिया है और बहुत बड़ा काम हाथ में लिया है जो सराहनीय है। उन्होंने आचार्य तुलसी प्रणीत अणुव्रतों का उल्लेख करते हुए कहा कि उनके द्वारा दिखाई गई दिशा को अगर थोड़ा सा भी ग्रहण किया जावे तो जीवन में बदलाव लाया जा सकता है। मुनिश्री जयकुमार के सान्निध्य में आयोजित इस व्याख्यान कार्यक्रम में व्याख्यानकर्ता आरएसएस के उत्तर क्षेत्र संघचालक डा. बजरंगलाल गुप्ता ने कहा कि भारतीय संस्कृति से ही यह देश सुरक्षित है। विश्व के भविष्य के लिए भारत का रहना आवश्यक है। भारत के लिए भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को अपनाना होगा। भारत का प्राण तत्व इसकी संस्कृति ही है। केवल भौतिक रूप से अस्तित्व अलग है। लेकिन असली पहचान संस्कृति से ही होती है। उन्होंने भारतीय संस्कृति के लिए कहा कि यह पुरातन है, लेकिन नित्य नूतन भी है। यह सनातन, शाश्वतए चिरन्तन है और निरन्तर विकासमान, नैतिक मूल्यों का प्रवाह है। उन्होंने कहा कि समाज की मुख्य समस्या है कि संवेदना लुप्त होती जा रही है। इस पर ध्यान देना आवश्यक है। डा. गुप्ता ने हम प्रकृति का शोषण नहीं बल्कि दोहन करते हैं, लेकिन इसमें देने व लेने का क्रम नहीं टूटने देते।
भारतीय संस्कृति पुरातन है, पर सनातन है
मुनि जयकुमार ने कहा कि हमारी संस्कृति अतीत, वर्तामान व अनागत तीनों को समाहित रखती है। यह संस्कृति कभी समाप्त नहीं हो सकती। इसमें परिवर्तन, परिवद्र्धन व परिशोधन की संभावना हमेशा रहती है। जहां अनाग्रह पूर्वक परिवर्तन की प्रक्रिया चलती है उसे कोई नष्ट नहीं कर सकता है। भारत में चाहे कोई युग रहा हो, यहां के संस्कार कभी समाप्त नहीं हो पाए हैं। उन्होंने कहा कि यह संस्कृति पुरातन है, लेकिन सनातन है। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कहा कि भारतीय संस्कृति का आधार धर्म है। धर्म शाश्वत है इसलिए भारतीय संस्कृति भी शाश्वत है। इस संस्कृति में सुव्यवस्था है। चाहे आश्रमवाद हो, कर्मवाद व पुनर्जन्मवाद हो यह व्यवस्था निरन्तर संस्कृति को पोषण देती है और विकसित करती है। उन्होंने बताया कि भारतीय संस्कृति आशावाद से ओतप्रोत है। इसमें जो कर्मवाद और पुरूषार्थवाद की धारा बहती है। प्रारम्भ में दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो.आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने व्याख्यानमाला की रूपरेखा प्रस्तुत की। अतिथियों का परिचय प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में जैन विश्व भारती के मुख्य ट्रस्टी भागचंद बरडिय़ा व जीवनमल मालू विशिष्ट अतिथि थे। इस मौके पर प्रभारी डा.योगेश कुमार जैन, रजिस्ट्रार विनोद कुमार कक्कड़, उपकुलसचिव डा. प्रद्युम्न सिंह शेखावत, शोध निदेशक प्रो.अनिल धर, प्रो.दामोदर शास्त्री, प्रो. बीएल जैन, डा.जुगल किशोर दाधीच, डॉ. गोविन्द सारस्वत,डॉ. बिजेन्द्र प्रधान, हरीश शर्मा, अशोक सुराणा, सागरमल नाहटा आदि उपस्थित थे।

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