कॉलेज सूत्रों के अनुसार नकल करने वाले परीक्षार्थी एक-दो नहीं पूरे 25-25 पन्ने लेकर आ जाते हैं। इस वर्ष एलएलबी प्रथम वर्ष में एक छात्रा अपने साथ सीरिज के 25 पन्ने फाडकऱ साथ ले आई, पकड़े जाने पर दूसरे परीक्षार्थी एवं कॉलेज की फ्लाइंग टीम आश्चर्यचकित रह गई। इसी प्रकार एक छात्र हाथ से लिखे हुए 12 पन्ने लेकर परीक्षा देने पहुंच गया। ऐसे कई मामले हैं जिनमें परीक्षार्थियों से बड़ी मात्रा में नकल की सामग्री पकड़ी गई है।
नकल करते पकड़े जाने पर एक साल खराब होना तय है। कई बार मामला गंभीर होने पर परीक्षार्थी के खिलाफ एफआईआर FIR against Examinee भी दर्ज करवाई जाती है और विश्वविद्यालय प्रशासन तीन साल तक के लिए परीक्षार्थी को बैन कर देता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि परीक्षार्थी थोड़ी पढ़ाई कर ले तो उसे नकल की आवश्यकता नहीं पड़ती। गत वर्ष रायधनु में दसवीं बोर्ड की हिन्दी परीक्षा में अपने भाई महीराम को बैठाने वाला सहीराम गत सप्ताह ही करीब डेढ़ साल बाद पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया है, जिसे जेल की हवा खानी पड़ रही है, जबकि महीराम को गत वर्ष ही गिरफ्तार कर लिया था।
शिक्षा का बाजारीकरण होने तथा प्रतिस्पर्धा का माहौल बनने से विद्यार्थियों की नकल के पीछे शिक्षण संस्थानों की भी भूमिका बढ़ती जा रही है। एक-दूसरे को पीछे छोडऩे के चक्कर में अपने विद्यार्थियों को नकल करवाकर अधिक अंक दिलाने का प्रयास किया जा रहा है। गत वर्ष जायल के एक परीक्षा केन्द्र पर 8 ’मुन्नाभाई’ पकड़े गए तो दूसरे दिन पकड़े जाने के डर से 166 परीक्षार्थी अनुपस्थित हो गए। यह उदाहरण सबके सामने है। रुपए लेकर पास करने की प्रवृत्ति शिक्षा के ढांचे को बिगाड़ रही है।
वर्ष – नकलची
2015 – 79
2016 – 127
2017 – 68
2018 – 113
2019 – 135 विद्यार्थियों का गिरता आत्मविश्वास मुख्य वजह
विद्यार्थियों में प्रतिस्पर्धी गला काट प्रतियोगिता की दौड़ में गिरते आत्म विश्वास व निजी संस्थानों द्वारा दुष्प्रचारित हथकंडों के लालच में छात्र नकल सामग्री साथ ले आते हैं और फ्लाइंग के दौरान पकड़ में आ जाते हैं। नकल की प्रवृत्ति को सख्ती से दबाने की आवश्यकता है, जिससे मेहनतकश विद्यार्थियों को उचित परिणाम मिले। छात्र राजनीति के बढ़ते प्रभाव से भी इस प्रवृत्ति में इजाफा हुआ है।
– सुरेन्द्र कागट, सहायक आचार्य, बीआर मिर्धा कॉलेज, नागौर
सांसारिक जीवन में सफलता प्राप्त करने के दो तरीके हैं – उचित एवं अनुचित। वर्तमान वातावरण में अनुचित तरीके से सफलता प्राप्त करने वाले युवाओं में अनुशासनहीनता एवं उच्छृंखलता उत्तरोत्तर बढ़ रही है। वहीं दूसरी ओर महाविद्यालयों में शिक्षकों की कमी के साथ-साथ अधिकांश शिक्षकों में भी साहस एवं बुराई से लडऩे का जज्बा नहीं रहा, जिसके कारण विद्यार्थी गलत कार्य करते नहीं कतराते। नकल करना एक कानूनी अपराध ही नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक दुष्चक्र भी है। ऐसे युवा यदि किन्हीं कारणों से सफल हो जाते हैं तो वे आगे भी समाज में प्रदूषण फैलाएंगे, जिसके परिणाम स्वरूप शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट होती रहेगी। यह राष्ट्र के लिए अत्यंत ही घातक है।
– डॉ. शंकरलाल जाखड़, व्याख्याता, बीआर मिर्धा कॉलेज, नागौर