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नागौर

हेरतअंगेज: बर्फीली हवाओं में गायब हुए नागौर के रेन बसेरे, नहीं मिल रहे….!

नागौर. दो दिन पूर्व हुई बूंदाबांदी के बाद बदले मौसम में सर्द हवाओं से पूरा शहर ठिठुरने लगा है। सुबह से सात से ११ किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही हवाएं नश्तर बनकर ठंडक का एहसास कराती रही। शाम को तापमान का परा लुढक़ा और बर्फीली हवाओं के कहर से लोग ठिठुरते रहे।

नागौरDec 14, 2018 / 12:53 pm

Sharad Shukla

Nagaur patrika

Heratanges: Nagaur’s desert shelters, which are missing in the snowy winds, are not getting ….

नागौर. शहर में गुरुवार को बर्फीली हवाओं के कहर से शहर कांपता रहा। रात्रि में करीब आठ बजे शहर की सडक़ों पर ठंड का हाल जानने के लिए निकल पड़े। सडक़ के दोनों ओर दुकानें तो खुली मिली, लेकिन लोगों की संख्या न के बराबर रही। पुराना हॉस्पिटल मार्ग, कलक्ट्रेट चौराहा से नकास गेट और कलक्ट्रेट चौराहे से रेल बसेरे की ओर पूरे रास्ते सन्नाटे की स्थिति रही। एक-दो की संख्या में लोग दिखे भी तो सर से पांव तक गर्म कपड़ों से लदे होने के बाद कांपते रहे।
आंखों देखा हाल———
सर्किट हाउस निकट रेन बसेरा: आठ बजकर तीन मिनट
कलक्ट्रेट चौराहे से होते हुए रेन बसेरा वाले मार्ग पर पूरी तरह से अंधेरा मिला। चौराहे पर न तो कोई बताने वाला, और न ही रैन बसेरा जाने की तरफ जाने के लिए कोई संकेतक लगा मिला। सर्किट हाउस मोड़ पहुंचने पर लोगों से पूछा कि यहां रैन बसेरा है क्या तो लोगों ने कहा पता नहीं। यहां से आगे बढ़े तो अंधेरे में डूबे रास्ते की ओर से एक व्यक्ति ने कहा कि शायद उधर है। आगे बढ़े तो घुप्प अंधेरा था। रास्ते में ही पूरे मार्ग पर बिखरा गंदा पानी, ऊंचे-नीचे गड्ढे से होते हुए मोबाइल की रोशनी के सहारे आगे बढ़े मगर रेन बसेरा कहीं नजर नहीं आया। वहां पर खड़े मोबाइल पर बात करते एक व्यक्ति से पूछा तो उसने बताया कि यही रेन बसेरा है। इसी में रुका हुआ है। दरवाजा खटखटाने पर एक कर्मचारी ने गेट खोला। अंदर जाने पर बिस्तर तो लगा मिला, रजाई की भी व्यवस्था थी। अंदर एक व्यक्ति ठहरा मिला। बातचीत हुई तो बताया कि आकला से आया है शुक्रवार को अस्पताल में दिखाना है। इसलिए रुक गए। आने-जाने के दौरान न केवल रास्ते बेहद खराब थे, बल्कि कोई जरूरतमंद रेन बसेरा में रुकने चाहे तो भी उसे रेन बसेरा तलाश करने पर भी नहीं मिल पाएगा। सडक़ों पर नगरपरिषद की ओर से स्ट्रीट लाइट एवं बोर्ड तक तक नहीं लगाए गए, ताकी कोई रेन बसेरे तक पहुंच ही न पाए।
नकासगेट रेन बसेरा: आठ बजकर १५ मिनट
यहां पर गेट अंदर से बंद मिला, खोलकर अंदर पहुंचे तो दो लोग ठहरे मिले। दोनों ही सो रहे थे। रजाई की एवं बिस्तरों की व्यवस्था थी, लेकिन यह बिस्तर ठंड के अनुकूल थे। एक पतली दरी मिली। जिस पर बैठे तो पूरी जमीन ही ठंडी मिली रजाई भी इतनी पुरानी थी कि पूरा ओढऩे के बाद भी ठंड का एहसास लोगों को हो रहा था। यहां पर कर्मचारी से बिस्तरों की व्यवस्था के बाबत पूछा कि उसका कहना था कि सालों से यही व्यवस्था चल रही है। रजाई और बिस्तर इतने निम्न स्तर के क्यो हैं, सरीखे सवालों का उसके पास कोई जवाब नहीं था। इसलिए उसने चुप्पी साध ली।
पुराना हॉस्पिटल के पीछे: आठ बजकर ३० मिनट
दोनों रेन बसेरों की स्थिति देखकर लौटे तो नगरपरिषद की ओर से कलक्ट्रेट चौराहे से लेकर नकासगेट और, नकासगेट से लेकर पुराने चौराहे तक अलाव की कोई व्यवस्था नजर नहीं आई। कुछ लोगों ने निजी स्तर पर एक जगह कचरे को जलाकर उसमें तापते हुए सर्दी से बचने का प्रयास करते नजर आए।
नकासगेट: आठ बजकर २५ मिनट
नकासगेट के पास ही खुले आसमां तले ठंड में बैठे ठिठुरते गोवंश मिले। सर्द हवाओं के साथ इनके फडफ़ड़ाते कानों से पता चल रहा कि ठंड बर्दाश्त नहीं हो रही है, लेकिन गोवंश के नाम पर इनको ले जाने वाला कोई नहीं मिला। लाखों का अनुदान उठाने वाली संस्थाओं के जिम्मेदारों की भी इन मूक और ठंड से कांपते गोवंशों पर नजर नहीं पड़ी। कुल मिलाकर बर्फीली हवाओं से कांपते शहर इन बेबुबानों की हालत बेहद खराब नजर आई
नगरपरिषद बताए कि कैसे कोई पहुंचेगा रेन बसेरा
कलक्ट्रेट से नकासगेट जाने वाले रास्ते पर बाईं ओर मुडऩे पर रेन बसेरा मिलता है, लेकिन अनजान व्यक्ति बिना संकेत एवं बोर्ड के नहीं होने पर वहां तक कैसे पहुंचेगा। इसकी जानकारी तो नगरपरिषद ही दे सकती है। दोनों ही रेन बसेरा में व्यवस्थाएं सालों पुरानी चल रही है। जरूरतमंदों के अनुकूल न तो अन्य आवश्यक सुविधाओं का यहां पर विस्तार किया गया, और न ही इसे अत्याधुनिक सांचे में ढाला गया। मसलन बिस्तर तो हैं, लेकिन काफी पुराने। बिस्तरों की हालत में रजाई एवं दरी की जीर्ण-शीर्ण स्थिति खुद ही पूरी व्यवस्था की पोल खोलती नजर आई।
यह होना चाहिए था
रेन बसेरा जाने वाले मार्गों पर परिषद को प्रमुख मार्गों एवं चौराहों पर ऐसे बोर्ड लगाने चाहिए, जो रात्रि में भी नजर आएं। इन रास्तों पर स्ट्रीट लाइट के प्रबन्ध होने के साथ ही रेन बसेरा जाने वाले मार्ग पर संकेत ऐसा होना चाहिए कि आम भी वहां तक पहुंच सके। नए बिस्तरों की व्यवस्था होनी चाहिए, और सोने के स्थान के लिए हालनुमान स्थान का चलन बरसों से किया जा रहा है। इसे भी सुविधाओं के अनुकूल करना होगा, ताकी रेन बसेरा में रुकने पर प्रत्येक को सुविधा मिल सके।
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