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संवत्सरी महापर्व की आराधना के साथ समझाई महत्ता

locationनागौरPublished: Sep 14, 2018 10:51:59 am

Submitted by:

Sharad Shukla

अखिल भारतीय श्वेतांबर स्थानकवासी जयमल जैन श्रावक संघ शाखा के तत्वावधान में चार्तुमास में संवत्सरी महापर्व पर प्रवचन करते हुए समणी सुयशनिधि ने कहा कि इस महापर्व पर प्रथम करणीय है प्रतिक्रमण।

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Explanation important with the worship of the Samprasari Maha Parva

नागौर. शूल से जैसे शरीर व्याकुल रहता है , वैसे ही कर्म से आत्मा व्याकुल हो जाती है। दूसरा करणीय है, उपवास। तप से साधक अपने कर्मो को हल्का कर लेता है। अंतगड सूत्र का मूल वाचन जैन समणी सुगमनिधि ने किया। इसकी वैज्ञानिक दृष्टि से व्याख्या सुयशनिधि ने की। जैन समणी सुधननिधि ने कहा कि सुपात्र दान देने से साधक अपनी साधना को उच्च शिखर पर पहुंचा सकता है।
‘आत्मशुद्धि का महापर्व है पर्यूषण पर्व’
काली पोल स्थित कनक आराधना भवन में खतरगच्छीय साध्वी रत्नमाला, शासन प्रभा, निष्ठांजना सानिध्य में संवत्सरी महापर्व की अराधना की गई। भद्रबाहु स्वामी रचित सचित्र मूल बारसा सूत्र का वाचन साध्वी निष्ठाजंना ने किया। इसको हिन्दी में साध्वी शासन प्रभा ने विस्तार से बताया । साध्वी ने कहा कि पर्यूषण महापर्व आत्मा शुद्धि का पर्व है। संघ के प्रदीप डागा ने बताया कि मूल बारसा सूत्र को साध्वी वृंद को बहराने का लाभ अखिल डागा परिवार ने लिया। गाजे-बाजे के साथ चैत्य परिपाटी कनक आराधना भवन से हीरावाडी, दफ्तरियो की गली घोडावतो की पोल स्थित जैन मंदिरों के दर्शन करते हुए वापस कनक आराधना भवन में पहुंचा। इस दौरान यहां पर साध्वी शासन प्रभा मांगलिक सुनाई। अवन्ती पाश्वनाथ प्रतिष्ठा निमिते अठम तप की अराधना कराई गई। इसमें 35 जनों ने लाभ लिया। इसमें संघ अध्यक्ष गौतम कोठारी, संरक्षक केवल चंद डागा, सचिव केवल राज बच्छावत, प्यालेलाल बोथरा, मनोज खजांची, सुनील डागा, कमल डोसी, वर्धमान डागा, प्रदीप डागा, प्रदीप बोथरा, राकेश नाहटा, रवि बोथरा, पदम कोठारी, विमल कोठारी आदि मौजूद थे।
त्याग, तप व श्रद्धा से मनाया संवत्सरी महापर्व
नागौर. स्वाध्याय भवन में श्री वद्र्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में पर्यूषण पर्व के आठवें दिन पर संवत्सरी महापर्व स्वाध्याय बहन सुशीला बोहरा के सानिध्य में त्याग, तप, श्रद्धा से मनाया गया। बोहरा ने संवत्सरी पर्व के महत्व को बताते हुऐ कहा कि सात दिन साधना के आठवंा दिन ‘क्षमा याचना’ करने का है। सबसे पहले बैरी से क्षमा याचना करनी चाहिए। क्षमा मांगने वाले से, क्षमा करने वाला महान है। क्षमा वीरों का भूषण है। भगवान महावीर चण्ड कोशिक सरीखे जहरीले नाग के दंश का क्षमा से जहर भी पी लिया। भगवान महावीर के सिद्धान्तों का अनुसरण करना चाहिए। समय के साथ जागृत होने की जरूरत है। वैराग्यवती मोनिका ने क्षमा दिवस के बारे में जानकारी दी। शीलम ललवानी, रिखबचन्द नाहटा ने भजन प्रस्तुत किया। नवकार महामन्त्र का जाप आठ दिन तक 12 घन्टे का समापन हुआ। ज्ञानर्वधक प्रतियोगिताएं हुई। मोहनलाल, सुरेश ललवानी, काजल सुराणा, नीलम ललवानी, निर्मलचन्द सुराणा ने विचार व्यक्त किए। इस दौरान अध्यक्ष भंवरलाल कांकरिया, उपाध्यक्ष सुरेश ललवानी, ज्ञानचन्द सिंघवी, निर्मलचन्द सुराणा, अजित भण्डारी, अर्जुनमल चौरडिय़ा, राजेन्द्र चौरडिय़ा, सुनील कोठारी, प्रमिल नाहटा, आशकरण ललवानी, नरपत सुराणा, श्रीपाल ललवानी, सुमेरमल सुराणा, ललित मोदी, कमलचन्द सुराणा, सुरेन्द्र ललवानी आदि
मौजूद थे।

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