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हाशिए पर कांग्रेस के कद्दावर नेता हरेन्द्र मिर्धा

locationनागौरPublished: Nov 18, 2018 01:30:40 pm

Submitted by:

Dharmendra gaur

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Congress Leader harendra Mirdha

हाशिए पर कांग्रेस के कद्दावर नेता हरेन्द्र मिर्धा

-डेगाना से रिछपाल सिंह के बजाय बेटे को मौका
नागौर. केन्द्र व राज्य की राजनीति में दखल रखने वाले नागौर के मिर्धा परिवार के लिए आगामी विधानसभा चुनाव किसी संजीवनी से कम नहीं है। कांग्रेस में शीर्ष नेतृत्व तक अपनी पहुंच रखने वाले मिर्धा परिवार की साख इस बार दांव पर है। कांग्रेस ने कद्दावर नेता व पूर्व मंत्री हरेन्द्र मिर्धा का टिकट काटकर यह संकेत दे दिया है कि अब राजनीति में उनके दिन लद गए है। उधर, डेगाना से दावेदारी जता रहे रिछपालसिंह मिर्धा के बजाय उनके पुत्र विजयपाल को टिकट दिया गया है। गौरतलब है कि कांग्रेस की पहली सूची में उनका नाम नहीं होने पर रिछपाल सिंह ने शुक्रवार को निर्दलीय के रूप में नामांकन किया था।


हरेन्द्र पर भारी पड़े रिछपाल
दो गुटों में बंटे मिर्धा परिवार के रिछपाल सिंह गुट को बेशक चुनाव में मौका मिला है लेकिन कांग्रेस के कद्दावर नेता व मंत्री रह चुके हरेन्द्र मिर्धा को कांग्रेस ने हाशिए पर धकेल दिया। मिर्धा परिवार के रामनिवास मिर्धा गुट से हरेन्द्र मिर्धा राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे थे और रही सही कसर इस बार पार्टी ने टिकट नहीं देकर पूरी कर दी। संभव है पार्टी ने उन्हें लोकसभा चुनाव के जरिए संसद में भेजने का आश्वासन दिया हो लेकिन फिलहाल उनके कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा पहुंचने का सपना पूरा होता नजर नहीं आ रहा है। हरेन्द्र मिर्धा के विरोध में रहे रिछपाल सिंह मिर्धा बेटे विजयपाल को दिलाकर हरेन्द्र पर भारी पड़ गए।


ऊहापोह की स्थिति में नई पीढ़ी
नाथूराम मिर्धा गुट के रिछपाल सिंह मिर्धा के लिए भी यह चुनाव काफी अहम है। जिले के कुचेरा कस्बे से संबंध रखने वाले मिर्धा परिवार का डेगाना व नागौर में बोलबाला रहा है और इसी परिवार से डॉ. ज्योति मिर्धा नागौर से सांसद भी रह चुकी है। मिर्धा परिवार प्रदेश की जाट राजनीति का बड़ा चेहरा है लेकिन परिवार के दो धड़ों में बंट जाने से नई पीढ़ी ऊहापोह के दौर से गुजर रही है। 1971 से 1996 तक छह बार सांसद रहे नाथूराम मिर्धा परिवार का मोर्चा रिछपालसिंह और उनकी भतीजी ज्योति ने संभाला। दूसरे गुट में रामनिवास मिर्धा के बेटे हरेंद्र मिर्धा मोर्चा संभाले हुए है और उनके बेटे रघुवेन्द्र भी अब तक कोई करिश्मा नहीं कर पाए।


एक ही परिवार के दो गुट
चुनावी मौके पर एक-दूसरे को सबक सिखाने से भी नहीं चूकते। गत विधानसभा चुनाव में हरेंद्र नागौर से व रिछपाल सिंह डेगाना से हार गए। लोकसभा चुनाव 2009 में ज्योति ने नागौर से जीतकर थोड़ा रुतबा जरुर लौटाया लेकिन ज्योति मिर्धा 2014 के लोकसभा का चुनाव हारने के बाद राजनीति से गायब सी हो गई। मिर्धा परिवार की पहुंच आलाकमान तक रही है लेकिन हकीकत यह है कि नई पीढ़ी को अब एक आम उम्मीदवार की तरह चुनाव लडऩा पड़ेगा। मिर्धा परिवार के रामनिवास मिर्धा व नाथूराम मिर्धा लोकसभा के रास्ते केन्द्र की राजनीति में चले गए। रामनिवास केंद्र में कई अहम पदों पर रहे तो नाथूराम भी उनसे कम नहीं रहे।

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