एबीओ रामजी पाल ने बताया कि विकास खण्ड शिक्षा अधिकारी के निर्देश पर सत्र के प्रारम्भ से ही योजना बनाई गई, जिसमें सभी संकुलों के समन्वयकों को निर्देशित किया गया था कि संकुल के शालाओं में राष्ट्रीय स्तर की विभागीय परीक्षाओं में अधिक से अधिक विद्यार्थी शामिल हों और प्रत्येक संकुलों से कम से कम एक एक विद्यार्थी प्रत्येक परीक्षाओं में उत्तीर्ण हो। इस सम्बंध में बीच-बीच में समीक्षा भी होती रही और बच्चों के पालकों ने भी उत्साह दिखाया। यही कारण है कि 22 मेधावी विद्यार्थियों ने सफलता हासिल की है। इस वर्ष राष्ट्रीय मीन्स कम मेरिट छात्रवृत्ति परीक्षा में 13, जवाहर नवोदय विद्यालय परीक्षा में 6, जवाहर उत्कर्ष परीक्षा में 2, एकलव्य परीक्षा में 1 विद्यार्थी ने सफलता हासिल की है। हम सभी इस परिणाम से उत्साहित हैं। आगामी सत्र के लिए लक्ष्य निर्धारित कर लिया गया है। आगमी सत्र में राष्ट्रीय मीन्स कम मेरिट छात्रवृत्ति परीक्षा के लिए 30, जवाहर नवोदय के लिए 10, जवाहर उत्कर्ष परीक्षा में 2 एवं एकलव्य परीक्षा 10 विद्यार्थियों के चयन का लक्ष्य रखा गया है। विकास खंड के 13 विद्यार्थी, जो राष्ट्रीय मीन्स कम मेरिट छात्रवृत्ति परीक्षा में उत्तीर्ण हुए हैं, उन्हें अब कक्षा 9 वीं कक्षा से 12वीं तक की पढ़ाई के बीच प्रति वर्ष 12 हजार की राशि छात्रवृत्ति के रूप में मिलेगा। इसी तरह 10 विद्यार्थी, जो नवोदय विद्यालय परीक्षा में सफल हुए हैं, वे अब 12वीं तक की पढ़ाई नि:शुल्क एक आवासीय और विशेष स्कूल में करेंगे।
जवाहर उत्कर्ष परीक्षा में पथरिया का दबदबा
जवाहर उत्कर्ष परीक्षा जो कि राट्रीय स्तर का एक प्रतिष्ठित परीक्षा है, जिसमें राज्य के सभी जिलों को 2-2 सीट आवंटित रहता है। इस परीक्षा में उत्तीर्ण दोनों विद्यार्थी पथरिया ब्लाक के हैं। इस परीक्षा में उत्तीर्ण विद्यार्थी को राज्य के टॉप दस निजी शालाओ में 9वीं से बारहवीं तक की पढ़ाई नि:शुल्क कराई जाएगी।
शिक्षा गुणवत्ता कार्यक्रम का असर
विद्यार्थियों की इन सफलताओं के पीछे प्रशासन द्वारा चलाये जा रहे शिक्षा गुणवत्ता अभियान का विशेष योगदान है। क्योंकि पिछले कुछ सालों से ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों में विशेष कार्यक्रम चलाए जाने से पालकों और विद्यार्थियों में जागरूकता आयी है। वहीं शिक्षकों द्वारा भी वार्षिक कैलेंडर के हिसाब से पढ़ाई कराई जाने लगी है। यही कारण है कि बच्चों में प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होने का चलन बढ़ा है, जो कि भविष्य के लिए भी जरूरी है।
बच्चों में था जागरूकता का था अभाव
सरकारी शालाओ में पढऩे वाले कई मेधावी विद्यार्थियों और पालको को इन परीक्षाओं के बारे में जानकारी नहीं होती थी। इसके कारण इतने महत्वपूर्ण अवसरों से छात्र छत्राओं को वंचित होना पड़ता था । अगर शिक्षा सत्र के प्रारम्भ से ही इस ओर ध्यान देकर इन प्रतियोगी परीक्षाओं के बारे जागरुकता फैलाई जाए तो ग्रामीण बच्चे भी अपना हुनर दिखा सकते हैं।
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