scriptताकि बेटियों के जन्म पर कोई मातम न मनाए | So that there is no sorrow on the birth of daughters | Patrika News

ताकि बेटियों के जन्म पर कोई मातम न मनाए

locationमुंबईPublished: Dec 27, 2018 07:55:55 pm

Submitted by:

arun Kumar

अपने अस्पताल में बच्ची के जन्म पर उत्सव मनाते हैं डॉ. गणेश राख

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फीस भी नहीं ली जाती, एक घटना ने बदल दिया सोच का नजरिया
अरुण लाल . मुंबई.

आज मेडिकल खर्च इतना बढ़ गया है कि लोग डॉक्टर का नाम सुनते ही डर जाते हैं। पर पुणे के डॉ. गणेश राख को देखते ही लोगों के मन में प्रेम और श्रद्धा के भाव जागते हैं। उनके 25 बेड के अस्पताल में जो लड़कियां जन्म लेतीं हैं, उनसे एक भी रुपए फीस नहीं ली जाती। यहां रोज अस्पताल के खर्च पर बच्चियों के जन्म का उत्सव मनाया जाता है। अब तक यहां पर 1480 बच्चियों ने जन्म लिया है। डॉ. राख ने इस पुनीत कार्य को ‘बेटी बचाओ जन आंदोलनÓ का नाम दिया है। इस जनआंदोलन से देश भर के लगभग दो लाख डॉक्टर, करीब 12 हजार संस्थाएं और लगभग 15 लाख स्वयंसेवक जुड़े हुए हैं। इन दो लाख डॉक्टरों ने गणेश की तर्ज पर बच्चियों के जन्म पर फीस कम लेने से या फ्री करने का कार्य शुरू किया है।
हमाल न बनना पड़े इसलिए डॉक्टर बना

गणेश बचपन में पहलवान बनना चाहते थे। वे कुश्ती करते थे और घर आकर पूरा खाना खा जाते थे। घर के बाकी के लोग गणेश की इस हरकत से परेशान थे। वे बताते हैं कि पढ़ाई में मेरा कतई मन नहीं लगता था। मैं डॉक्टर सिर्फ अपनी मां के कारण बना। उन्होने मुझे डराया कि अगर तू पढ़ाई नहीं करेगा, तो पिता की तरह कुली का कार्य करना पड़ेगा। मां ने मुझे पिताजी के साथ काम पर भी भेजा। वहां पिता को दिन भर कड़ी मेहनत करते देख मैं डर गया और पढऩे लगा। मेरी मेहनत रंग लाई और मैं डॉक्टर बना। डॉक्टर बनने के दौरान अपना खर्च निकालने के लिए गणेश रातों में अस्पतालों में काम करते थे।
अमिताभ बच्चन ने दी कार

ए क कार्यक्रम के दौरान अमिताभ बच्चन को जब पता चला कि गणेश के पास कार नहीं हैं, तो वे चौंके और उन्होंने गणेश को स्विफ्ट डिजायर भेंट की। गणेश इसका उपयोग भी बहुत कम करते हैं, वे स्कूटी से अस्पताल में जाते हैं। बेटियों को बचाने के अभियान को देश भर में फैलाने के लिए वे स्लीपर क्लास में यात्रा करते हैं।
छोटी सी क्लीनिक से शुरुआत

ग णेश ने पुणे में में एक छोटा-सा क्लीनिक खोला। वे बताते हैं कि हमारे यहां एक युवती ने बेटी को जन्म दिया, तो उसके पति ने उसे मारा। रिश्तेदार भी नाराज हुए। मेरा मन भीतर से दुखी हो गया। अब तक मैंने सोचा भी नहीं था कि सोशल वर्र्क करूंगा। पर उस दिन उस युवती के गाल पर पड़ा थप्पड़ आज भी मेरे दिल में दर्द जगाता है। मैंने तीन जनवरी 2012 में तय किया कि अस्पताल में पैदा होने वाली बच्चियों की फीस नहीं लूंगा। उनके जन्म पर भी सेलिब्रेशन करूंगा। मेरे दोस्तों और परिचितों ने मुझे पागल कहा। लोगों ने कहा पहले से ही लोन लिया है, कैसे करोगे यह सब। एक बार मैं भी डर गया, तभी मेरे पिता सामने आए और कहा यह बहुत अच्छा काम है। तुम शुरू करो, पैसे की जरूरत पड़ी तो मैं फिर से हमाल बन जाऊंगा। बता दें कि डॉ. राख अब भी संयुक्त परिवार में अपने पिता के साथ रहते हैं।
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