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Exclusive Interview:जैन मुनी आचार्य विश्वरत्न सागर जी बोले-महावीर की मानो या महाविनाश के लिए तैयार रहो…

locationमुंबईPublished: Sep 06, 2018 03:21:30 pm

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Prateek

जैन मुनी आचार्य विश्वरत्न सागर जी ने हमारे संवादाता रोहित के. तिवारी से खास बातचीत में कहा कि…

जैन मुनी आचार्य विश्वरत्न सागर जी

जैन मुनी आचार्य विश्वरत्न सागर जी

(पत्रिका ब्यूरो,मुंबई): अब तक पूरे हिंदुस्तान में भ्रमण कर करीब 22 राज्यों में धर्म के विकास को लेकर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित कर चुके श्वेताम्बर मूर्तिपूजक आचार्य विश्वरत्न सागर धर्म प्रचार में जुटे हैं। उनकी आगे राजस्थान के छोटे-छोटे गांवों में जाकर धर्म के नाम पर लोगों के बीच अलख जगाने की योजना है। राजस्थान पत्रिका से विशेष बातचीत में उन्होंने कहा कि जैन धर्म में लोग खुद को न्यौछावर करके सभी को जीने का मौका दे रहे हैं। आज लग रहा है सारी दुनिया ही विनाश के कगार पर खड़ी है। आज मानव ने अणु बम, परमाणु बम जैसे हर तरह के विनाशकारी उपकरण ईजाद कर लिए हैं। अनेक देशों ने पृथ्वी को नष्ट करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, जबकि जैन धर्म के अनुयायियों का मानना है कि इन सब विनाशकारी उपकरणों को बंद कर दिया जाए। या तो महावीर की मानो या फिर महाविनाश के लिए तैयार रहो। महावीर ने कहा था, करुणा करो, अहिंसा का पालन करो, जीओ और जीने दो। अगर इस अवधारणा को हमने सार्थक नहीं किया तो हमें महाविनाश के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।

 

भगवान महावीर की प्राचीनतम क्रिया ‘संथारा’

‘संथारा’ के बारे में उन्होंने कहा इस क्रिया के लिए देश-दुनिया में काफी विचार-विमर्श हो रहा है। भगवान महावीर की महती प्राचीनतम क्रिया है, जिसके माध्यम से व्यक्ति जीवित मृत्यु के रूप में स्वयं की मृत्यु को देख सकता है व उसे हंसते-हंसते स्वीकार कर सकता है, ये बहुत ही गंभीर, गहन और विवादित प्रक्रिया है। इसलिए इस प्रक्रिया को धर्म के हिसाब से न देख पाक-साफ रहने दें।

 

अध्यात्म की नींव है चातुर्मास

उनका कहना है कि चातुर्मास अध्यात्म की नींव है। इसमें तप, जप, संयम, साधना जैसे कार्य ही नहीं धर्म जागरण का प्रयास भी इसी के माध्यम से होता है। अच्छाइयां हमेशा लाभ के लिए ही होती हैं। संभव है अच्छाइयां करते-करते वर्तमान में थोड़ा कष्ट महसूस हो, लेकिन अंततोगत्वा उनसे लाभ ही होता है। उन्होंने कहा पर्यूषण का शाब्दिक अर्थ आत्मा के निकट बसना होता है। पयूर्षण पर्व के आठ दिनों में सांसारिक और अन्य सुविधाओं का त्याग कर धर्म के प्रति समर्पित रहना और इसके आखिरी दिन क्षमा याचना करना चाहिए। निरंतर आगे बढऩे के लिए धर्म को लेकर किसी से वैर न रखना, हमेशा सबके साथ समानता का व्यवहार करना ही जैन धर्म की अवधारणा है।

 


आचार्य ने कहा दिगंबर आमनाय के साथी भाई हैं, दिगंबर आमनाय की प्रक्रिया में लोग दस दिन तक धर्म के विषय को लेकर अग्रसर रहते हैं जबकि श्वेतांबर आमनाय के लोग पयूर्षण पर्व के दौरान आठ दिन में धर्म का विस्तार करने और उसे ऊंचाइयों पर ले जाने का प्रयास करते हैं। चातुर्मास के चार माह वर्षाकाल होने से जैन संत एक ही स्थान पर निवास करते हैं और जैन धर्म की नियमावली के मुताबिक, पानी आदि के समय साधु इधर-उधर नहीं जाते और एक जगह रहकर ही धर्म के विकास के लिए प्रयत्नशील रहते हैं। जैन धर्म में यही कहा गया है कि जरूरत से ज्यादा धन से जरूरतमंदों की सहायता करें। आवश्यकता से अधिक धन न रखना ही अपरिग्रह का सिद्धांत है।

 

शाश्वत मंत्र है नवकार महामंत्र

उन्होंने महामांगलिक के बारे में बताया कि हर अमावस्या के अगले दिन प्रतिपदा को महामांगलिक का आयोजन होता है। इस परम्परा के अंतर्गत बड़ी संख्या में दीन, दुखी, पीडि़त लोग वहां आते हैं, जो अपनी आधी, व्याधि, उपाधि का दुखड़ा शांत करते हैं। महामांगलिक में जैन धर्म के मंत्रों का श्लोकबद्ध उच्चारण करना होता है। इसके तहत जनता के लिए प्रार्थना करना और प्रभु के लिए दुआ मांगना जैसी क्रियाएं होती हैं। नवकार महामंत्र की महिमा के बारे में उन्होंने बताया कि यह शाश्वत मंत्र है, यह मंत्र समग्र जैन सृृष्टि की एक बहुत बड़ी विरासत है। इस मंत्र में सिर्फ गुणों का ही समावेश होता है।


आचार्य विश्वरत्न सागर धर्म जी का परिचय: एक नजर


जन्म : 16 अप्रैल 1973
राजगढ़, मध्यप्रदेश
दीक्षा : साढ़े छह साल की उम्र में
आचार्य नवरत्नसागर सूरीश्वर से
पदयात्रा : 2 लाख, 50 हजार किलोमीटर

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