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OMG : 230 लाख भारतीयों की जान लेने वाली सिगरेट कैसे सुरक्षित है?

locationमुंबईPublished: Oct 08, 2019 04:10:05 pm

Submitted by:

Rajesh Kumar Kasera

ई -सिगरेट कंपनी के फरेब का पर्दाफाश, कैसंर चिकित्सक ने लिखा ब्रिटेन की महारानी को पत्र
ब्रिटिश संस्थानों के भ्रामक शोध के खिलाफ मुंबई के डॉ. चतुर्वेदी मुखर हुए

OMG : 230 लाख भारतीयों की जान लेने वाली सिगरेट कैसे सुरक्षित है?

OMG : 230 लाख भारतीयों की जान लेने वाली सिगरेट कैसे सुरक्षित है?

मुंबई। देश के प्रमुख कैंसर अस्पताल टाटा मेमोरियल के विशेषज्ञ प्रो. पंकज चतुर्वेदी ने ई-सिगरेट के बचाव को लेकर इंग्लैण्ड में किए गए शोध पर गंभीर सवाल उठाए हैं। कई आपत्तियों के साथ उन्होंने ब्रिटेन की महारानी को पत्र लिखकर उनसे आग्रह किया है कि इंग्लैण्ड के जिम्मेदार संस्थानों ने सिगरेट लॉबी को लाभ पहुंचाने के लिए जल्दबाजी में गलत नतीजे जारी कर दिए हैं। हाल ही डॉ. चतुर्वेदी ने यह पत्र वहां के प्रधानमंत्री जॉनसन बोरिस के माध्यम से भेजा है। पत्र में लोगों के प्रति किए गए महारानी के वादे को भी याद दिलाया है और तत्काल प्रभाव से शोध में सुधार करने का आग्रह भी किया है।
आपको बता दें कि भारत सरकार ने गत 18 सितंबर को अध्यादेश जारी कर धूम्रपान के इस तरह के वैकल्पिक उपायों के निर्माण, उत्पादन, आयात, निर्यात, वितरण, ढुलाई, बिक्री, भंडारण या विज्ञापन को संज्ञेय अपराध घोषित कर दिया। इसमें जेल की सजा और जुर्माने का प्रावधान भी रखा गया। वहीं एक अनुमान की मानें तो पिछले 100 वर्षों में सिगरेट उद्योग 230 लाख भारतीयों की अकाल मृत्यु के लिए जिम्मेदार है।
भारतीय चिकित्सक ने बताया कि शोध में ई-सिगरेट को खुलेआम बिकने वाली सिगरेट की तुलना में 95 प्रतिशत अधिक सुरक्षित बताया है। इसके लिए एजेंसी ने बकायदा रॉयल कॉलेज ऑफ फिजिशियन का सन्दर्भ दिया है। इससे साफ है कि तम्बाकू लॉबी को लाभ पहुंचाने के लिए ऐसा किया गया है। वह भी उस देश में जिसने डोरोथी हॉजकिन, आइजेक न्यूटन, एलक्जेंडर फ्लेमिंग और रोजलिंड फ्रैंकलिन जैसे महान शोधकर्ता दिए हैं।
विकासशील देशों के लिए ई-सिगरेट खतरनाक

डॉ. चतुर्वेंदी ने पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड (पीएचई) के प्रकाशित इस शोध को भारत सहित विकासशील देशों में ई-सिगरेट की घातक लत को बढ़ावा देने वाला बताया। शोध के आंकड़ों में लेखकों ने माना कि हानिकारक धूम्रपान से संबंधित रसायनों की अनुपस्थिति इलेक्ट्रॉनिक निकोटीन डिलीवरी सिस्टम (ईएनडीएस) को सुरक्षित बनाती है। जबकि, लेखकों ने इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया कि शुद्ध रूप में निकोटीन विषाक्त रसायन है, जिसकी 30 मिलीग्राम मात्रा एक वयस्क के लिए खतरनाक है। इस विकृत साक्ष्य में प्रतिष्ठित संस्थानों किंग्स कॉलेज, क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी आदि का योगदान था, जो दुर्भाग्यपूर्ण है।
बिना वैज्ञानिक तथ्याें के बना दी रिपोर्ट

डॉ. चतुर्वेदी ने बाया कि इस निष्कर्ष को बिना वैज्ञानिक शोध के लिए निकाल लिया गया। यूके ऑल-पार्टी पार्लियामेंटरी ग्रुप ऑन फार्मेसी की संक्षिप्त रिपोर्ट के साथ यूरोपीय व्यसन अनुसंधान में प्रकाशित लेख पर शोध पत्र जारी की दिया गया। यह वाकई चौंकाने वाली बात है। पीएचई की कार्रवाई पर अफसोस जताते हुए कहा कि कैसे इतनी जिम्मेदार एजेंसी राष्ट्र के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर सकती है। ईएनडीएस सिगरेट की लत से अमरीका में महज तीन महीनों में 12 लोगों की मौत हो तो 800 से अधिक गंभीर फेफड़ों की चपेट में आ गए। लोगों के बीच भ्रामक प्रचार किया जा रहा है कि सिगरेट छोड़ने का बेहतर उपाय ई-सिगरेट है। इंग्लैण्ड में लाखों बच्चे हैं, जो ईएनडीएस के संपर्क में हैं। सार्वजनिक स्वास्थ्य के अनुसार 11 से 18 वर्ष के छह बच्चों में से एक ई-सिगरेट आजमा चुका है।
याद दिलाया तम्बाकू का इतिहास

डॉ. चतुर्वेदी ने महारानी को भारत में तम्बाकू उद्योग का इतिहास याद दिलाते हुए बताया कि वर्ष 1910 में ब्रिटिश स्वामित्व वाली सिगरेट कम्पनी कलकत्ता में इंपीरियल टोबैको कम्पनी ऑफ इंडिया लिमिटेड के रूप में पंजीकृत हुई। इस उद्योग को यूरोपीय बाजार के लिए बड़ी मात्रा में कच्ची तंबाकू उपलब्ध करान के लिए 1912 में तम्बाकू की खेती को औपचारिक रूप दे दिया। इस ब्रिटिश कंपनी ने 1913 में भारत की पहली सिगरेट फैक्ट्री की स्थापना की।
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