इसी अस्पताल से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि अस्पताल को रक्तदान के जरिए कई यूनिट रक्त मिलता है, लेकिन उसको भंडार (स्टोरेज) नहीं करते हैं। अगर किसी संस्था से लेसेमिया पीडि़त बच्चों के लिए रक्त आता भी है तो अस्पताल वाले अन्य मरीज़ों को भी चढ़ा देते हैं यानि किसी दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति या ऑपरेशन में उपयोग किया जाता है। फिर जब थेलेसेमिया पीडि़त बच्चों को रक्त देने की जरूरत पड़ती है तो अस्पताल प्रबंधन अपने हाथ खड़े कर देता है कि रक्त नहीं है।
स्वयंसेवी संस्थाओं से लगाते हैं गुहार
थेलेसेमिया पीडि़त बच्चों की रक्त की जरूरत को पूरा करने के लिए स्वयंसेवी संस्थाओं से आग्रह कर रक्तदान शिविर का आयोजन कराया जाता है। बच्चों के जीवन को बचाने के लिए संस्थाएं शिविरों का आयोजन करती हैं। आरोप है कि सरकार के वैद्यकीय विभाग से रक्तदान के लिए फंड भी आता है लेकिन वह फंड भी थेलेसेमिया केंद्र तक नहीं पहुंच पाता। पिछले दिनों समय पर रक्त नहीं मिलने के कारण एक बच्चे की तबियत बहुत खऱाब हो गई थी। इस केन्द्र की तरफ से उल्हासनगर के राजनीतिक नेताओं से लेकर सांसद तक मदद की गुहार लगाई गई है कि 51 बच्चों का जीवन अधर में लटका हुआ है, इन्हें बचाइए।