स्क्रिप्ट
बरेली में रहने वाली बिट्टी (कृति सैनन) बिंदास लडक़ी है। वह ब्रेक डांस करती है। चोरी-छुपे कभी-कभी सिगरेट और शराब भी पी लेती है। देर रात घर से बाहर घूमती रहती है। हालांकि वह बिजली विभाग के कम्पलेन सेल में काम करती है। पिता नरोत्तम मिश्रा (पंकज त्रिपाठी) के लिए वह बेटा है, पर मां सुशीला (सीमा पाहवा) को हमेशा उसकी शादी की फिक्र सताए रहती है। उसके इस तरह के स्वभाव के कारण कोई भी लडक़ा उसे पसंद नहीं करता। ऐसे में वह एक दिन घर छोडक़र चली जाती है। स्टेशन पर वह ‘बरेली की बर्फी’ किताब खरीदती है और उसे पढ़ती है, तो उसकी नायिका उसे बिलकुल अपने जैसी लगती है। वह घर आ जाती है और किताब के लेखक प्रीतम विद्रोही (राजकुमार राव) से मिलने को बेचैन हो जाती है, पर उसका पता किसी के पास नहीं है। हालांकि, इस किताब को असल में प्रिंटिंग प्रेस ऑनर चिराग दुबे (आयुष्मान खुराना) ने अपना दिल टूटने पर लिखी थी, लेकिन उसने अपनी जगह दोस्त प्रीतम का नाम व फोटो दे दिया। बिट्टी, चिराग से मिलती है और उससे प्रीतम का पता बताने के लिए कहती है। यहीं से कहानी में ट्विस्ट्स और टन्र्स की शुरुआत होती है।
एक्टिंग
सभी किरदारों ने उम्दा अभिनय किया है। आयुष्मान एकदम सहज लगे हैं। उनके किरदार में लेयर्स हैं। बिट्टी के रोल में कृति जितनी बिंदास हैं, उतनी ही कूल भी। राजकुमार एक बार फिर फुल फॉर्म में हैं और सब पर भारी हैं। उनका कैरेक्टर में ट्रांसफॉर्मेशन गजब का है। कभी वह साड़ी लपेटते दिखते हैं तो कभी एकदम रंगबाज यानी टपोरी। सपोर्टिंग रोल में पंकज, सीमा, रोहित और स्वाति भी परफेक्ट कास्टिंग हैं।
डायरेक्शन
कहानी अश्विनी के पति व ‘दंगल’ के निर्देशक नीतेश तिवारी ने श्रेय जैन के साथ लिखी है। डायलॉग्स अच्छे हैं, जिनको खूबसूरती से प्रजेंट किया है। वहीं, कहानी में किरदारों को अच्छी तरह से उभारा है। अश्विनी का निर्देशन शानदार है। गीत-संगीत ठीक है। ‘स्वीटी तेरा ड्रामा’ व ‘ट्विस्ट कमरिया’ पेपी नम्बर हैं, वहीं ‘नज्म नज्म सा’ रोमांटिक सॉन्ग है। लोकेशंस और सिनेमैटोग्राफी आकर्षक है। एडिटिंग से फिल्म और क्रिस्प हो सकती थी।
क्यों देखें…
‘बरेली की बर्फी’ को बनाने में लेखन, निर्देशन, अभिनय, किरदार, डायलॉग्स, रोमांस, कॉमेडी, फ्रेंडशिप सहित सभी इन्ग्रीडिएंट्स उचित मात्रा में डाले गए हैं,जो इसके स्वाद में मिठास घोलते हैं। वहीं, कहानी के नरेशन में वॉइसओवर में जावेद अख्तर की आवाज चांदी के उस वर्क की तरह है, जो इस ‘…बर्फी’ के प्रजेंटेशन को आकर्षक बनाता है। ऐसे में इस खुशबूदार, मीठी और जायकेदार ‘बर्फी’ को एक बार चखना तो बनता है।