भारत इस 48 सदस्यीय इलीट परमाणु क्लब में प्रवेश की मांग कर रहा है। यह समूह विश्व के परमाणु व्यापार को नियंत्रित करता है, लेकिन चीन ने हर बार भारत की राह में रोड़े अटकाए हैं। हालांकि भारत को अमरीका समेत कई पश्चिमी देशों का समर्थन हासिल है, लेकिन चीन अपने स्टैंड पर इस अड़ गया है कि नए सदस्यों को परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर करना चाहिए। चूंकि भारत ने अभी तक इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं, इसलिए चीन को भारत की न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप में स्वीकार्यता पर आपत्ति है।
एनएसजी में प्रवेश की प्रक्रिया
परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) एक सर्वसम्मति आधारित संगठन है। भारत चीन के विरोध के परिणामस्वरूप इस संगठन में सदस्यता हासिल नहीं कर पाया है। आपसी सहमति से ही इस समूह में किसी सदस्य को शामिल करने का प्रावधान है। दक्षिण और मध्य एशिया के लिए अमरीकी उप विदेश मंत्री एलिस वेल्स ने कहा, ‘परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह आम सहमति पर आधारित संगठन है। चीन के विरोध के कारण भारत इसकी सदस्यता हासिल नहीं कर पा रहा है।’ उन्होंने कहा कि अमरीका केवल चीन के वीटो के कारण भारत के साथ अपने सहयोग को सीमित नहीं करेगा ।
अमरीकी उप विदेश मंत्री एलिस वेल्स ने कहा कि भारत को कूटनीतिक व्यापार प्राधिकार (एसटीए-1) का दर्जा देकर अमरीका ने उसे अपने निकटतम सहयोगियों की सूची में रखा है। बता दें कि अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने 8 अक्टूबर, 2008 को अमरीकी कांग्रेस द्वारा अनुमोदित भारत-यूएस परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।
एनएसजी अर्थात नाभिकीय आपूर्तिकर्ता समूह (Nuclear Suppliers Group) कई देशों का एक समूह है जो परमाणु निरस्त्रीकरण सुनिश्चित करने के लिए प्रयासरत है। यह समूह नाभिकीय हथियार बनाने के लिए वांछित सामग्री के निर्यात एवं उसके पुनः हस्तान्तरण को नियन्त्रित करता है। इसका वास्तविक लक्ष्य यह है कि नाभिकीय क्षमता को दुनिया भर में अनियंत्रित रूप से फैलने से रोका जा सके। यह समूह ऐसे परमाणु उपकरण, सामग्री और टेक्नोलॉजी के व्यापार पर रोक लगाता है जिसका प्रयोग परमाणु हथियार बनाने में होता है।
एनएसजी का गठन वर्ष 1974 में भारत के पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद किया गया था। यह समूह सैद्धांतिक रूप से केवल परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर करने वाले देशों के साथ परमाणु सामग्री के व्यापार की अनुमति देता है। एनएसजी का कोई स्थाई कार्यालय नहीं है। सभी मामलों में फैसला सर्वसम्मति के आधार पर होता है।