2- प्रत्यपर्ण की मांग करने वाले देश को क्राउन प्रॉसिक्यूशन सर्विस (CPS) को आग्रह का शुरुआती मसौदा सौंपने के लिए कहा जाता है, जिससे बाद में कोई कानूनी दिक्कत पैदा न हो।
3- इसके बाद ब्रिटेन के गृह मंत्रालय की इंटरनेशनल क्रिमिनलिटी यूनिट इस आग्रह पर विचार करती है। अगर यह सही पाया जाता है तो इस आग्रह को अदालत में भेजा जाता है।
4- संबंधित कोर्ट निर्णय करता है कि अपराधी की गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी किया जाए या नहीं।
5- इसके बाद प्रत्यर्पण को लेकर कोर्ट सुनवाई करती है। दोनों पक्षों को कोर्ट अपना-अपना जवाब दाखिल करने का मौका देता है। दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट फैसला देता है कि वांछित अपराधी का प्रत्यर्पण किया जाए या नहीं। कोर्ट अपने फैसले को विदेश मंत्रालय के लिए रेफर कर देता है।
6- ब्रिटिश कानून के मुताबिक निचली अदालत के फैसले को आरोपी ऊपरी अदालत में चुनौती दे सकता है। इसके लिए उसके पास 14 दिन का समय होता है।
7- कोर्ट के फैसले पर विदेश मंत्रालय विचार करता है। इसके बाद फैसला होता है कि संबंधित व्यक्ति का प्रत्यर्पण किया जाए या नहीं।
8- अगर विदेश मंत्रालय को लगता है कि संबंधित व्यक्ति का अपराध इतना बड़ा है कि उसे मौत की सजा दी जा सकती है। तो वह उसे अपील करने वाले देश को नहीं सौपा जाएगा।
9- अगर प्रत्यर्पण करने वाले देश में संबंधित व्यक्ति की जान का खतरा हो तो भी सरकार ऐसे अपराधी को किसी देश को नहीं सौपेगी।
10-अगर व्यक्ति को किसी तीसरे देश ने ब्रिटेन में प्रत्यर्पित किया है तो संबंधित अपराधी का प्रत्यर्पण नहीं किया जाएगा।