अयोध्या: राम जन्मभूमि मामले पर 28 सितंबर को आ सकता है सुप्रीम कोर्ट का फैसला
2014 में 34 फीसदी आपराधिक केस वाले सांसद पहुंचे संसद
आपको बता दें कि इससे पहले सुनवाई के दौरान अटर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने केंद्र सरकार की ओर से पेश होते हुए कहा था कि यह कानून बनाना संसद के अधिकार-क्षेत्र में है और सुप्रीम कोर्ट को उसमें दखल नहीं देना चाहिए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि क्या चुनाव आयोग ऐसी व्यवस्था कर सकता है जिसमें आपराधिक बैकग्राउंड के नेताओं कोे बारे में सभी जानकारियां सार्वजनिक किया जाए। इस पर वेणुगोपाल ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि जहां तक सजा से पहले ही चुनाव लड़ने पर बैन का सवाल है तो कोई भी आदमी तब तक निर्दोष है जब तक कि कोर्ट उसे सजा नहीं दे देता और संविधान का प्रावधान यही कहता है। बता दें कि अदालत में जानकारी देते हुए याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय के वकील ने कहा था कि 2014 में 34 फीसदी ऐसे सांसद संसद पहुंचे जिनके खिलाफ आपराधिक केस है। उन्होंने पूछा क्या कानून तोड़ने वाले कानून बना सकते हैं? इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने इस मामले को 8 मार्च 2016 को संवैधानिक बेंच को रेफर कर दिया था।
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दागी नेताओं को अयोग्य ठहराने पर कहां आ रही है अड़चन
बता दें कि संवैधानिक बेंच के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि क्या किसी आपराधिक मामले में आरोप तय होने के बाद चुनाव लड़ने पर रोक लगनी चाहिए या नहीं। यदि हां तो फिर किस स्टेज पर नेताओं को अयोग्य ठहराया जा सकता है? क्योंकि कई ऐसे मामले सामने आएं हैं जिसमें निचली अदालतों द्वारा आरोप तय होने के बाद वे उपरी अदालत में निर्दोष साबित हो जाते हैं। आपको बता दें कि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली संवैधानिक बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि संसद का काम कानून बनाना है और हमारा काम कानून की व्याख्या करना है। अदालत कानून नहीं बना सकती, यह संसद के अधिकार क्षेत्र में है। हालांकि बेंच ने यह जरूर कहा था कि दागी नेताओं के खिलाफ मामले को फास्ट ट्रैक किया जा सकता है।