सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों से कहा कि अगर समझौता की कोई गुंजाइश नहीं बची हो। गुजारा भत्ता और बच्चों की कस्टडी तय हो चुकी हो तब वेटिंग पीरियड दोनों पक्षों को तकलीफ देता है। ऐसे में अदालत अपने अधिकार का इस्तेमाल कर इस वेटिंग पीरियड को कम कर सकती है।
हिंदू मैरिज एक्ट के मुताबिक अगर पति-पत्नी तलाक चाहते हैं तो अर्जी के बाद उन्हें छह महीने का वेटिंग पीरियड दिया जाता है। इस वेटिंग पीरियड का मकसद होता है कि दोनों पक्ष चाहें तो आपसी सुलह करके दोबारा से साथ रह लें। इस छह महीने के वेटिंग पीरियड को कुलिंग पीरियड भी कहा जाता है।
दरअसल दिल्ली के एक जोड़े ने सुप्रीम कोर्ट में तलाक से संबंधित अर्जी दाखिल की थी। याचिकाकर्ता के मुताबिक उनकी शादी 16 जनवरी 1994 में हुई थी। 2008 के बाद से ही दोनों अलग रह रहे हैं। दोनों ने 28 अप्रैल 2019 को कोर्ट में सहमति से तलाश की अर्जी लगाई थी। इस दौरान तय हुआ कि दोनों बच्चों की कस्टडी पिता के पास रहेगी जबकि महिला को गुजारा भत्ता के रूप में 2 करोड़ 75 लाख मिलेगा। ये सब तय होने के बाद दोनों ने दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में वेटिंग पीरियड खत्म करने की अपील की और मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अदालत अपने अधिकार का इस्तेमाल कर वेटिंग पीरियड को खत्म कर सकती है।