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गणेश पूजा के साथ हुई शबनम के निकाह की शुरुआत, बाद में मौलवी ने पढ़वाया निकाह

Published: Jul 12, 2018 09:11:39 am

Submitted by:

Kapil Tiwari

5 साल की उम्र में ही शबनम की मां का निधन हो गया था, तभी से शबनम हिंदू परिवार में पली-पढ़ी है।

Muslim Marriage

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राजकोट। इस देश में जहां एक तरफ हिंदू-मुसलमान के बीच अक्सर सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ने की खबरें आती रहती हैं तो समय-समय पर इसी सौहार्द को बनाए रखने की भी खबरें देखने को मिलती हैं। ऐसा ही एक मामला गुजरात से सामने आया है, जहां एक मुस्लिम लड़की की शादी हिंदू-मुसलमान के संयुक्त रीति-रिवाजों के साथ की गई और ऐसा नहीं है कि जिस लड़के से शादी हुई हिंदू था, बल्कि वो लड़का भी मुस्लिम था, लेकिन इसके बाद भी दोनों की शादी में दोनों धर्मों के रीति-रिवाज और परंपराओं का मिश्रण देखने को मिला।

हिंदू-मुस्लिम परंपराओं के साथ हुआ शबनम-अब्बास का निकाह

दरअसल, ये पूरा मामला गुजरात के वेरावल का है, जहां की रहने वाली शबनम शेख की हाल ही में अब्बास नाम के युवक से शादी हुई है। शबनम और अब्बास की शादी की शुरुआत गणेश पूजा के साथ हुई और बाद में मौलवी ने दोनों का निकाह कराया। इतना ही नहीं शबनम का कन्यादान भी किया गया और ये काम एक हिंदू परिवार ने किया। दरअसल, शबनम जब 5 साल की थी तो उसकी मां का निधन हो गया था। कुछ सालों बाद पिता भी अचानक लापता हो गए। इसके बाद से ही शबनम का लालन-पोषण एक हिंदू परिवार में हो रहा था। शादी वाले दिन शबनम को पालने वाले मेरामन जोरा ने उसका विधिवत कन्यादान दिया।

5 साल की उम्र से ही हिंदू परिवार ने पाला है शबनम को

शबनम की मां के निधन के बाद उसके पिता कमरुद्दीन शेख जो कि एक ट्रक ड्राइवर थे, उन्होंने अपने मित्र जोरा से मदद मांगी, जिसके बाद जोरा परिवार ने शबनम को अपने परिवार का हिस्सा बना लिया। 2012 में जब शबनम 14 साल की थी, तब उसके पिता कमरुद्दीन अचानक शहर से गायब हो गए और कभी नहीं लौटे। मां की मौत और पिता के लापता होने के बाद जोरा का घर ही शबनम का ठिकाना था जहां उसे अपनी मर्जी के धर्म का पालन करने की आजादी दी गई थी। जोरा के मुताबिक शबनम नियमित तौर पर नमाज पढ़ती है लेकिन हिंदू त्योहारों को भी उसी शिद्दत और उत्साह से मनाती है।

शबनम जब 20 साल की हुई तो जोरा ने शबनम की शादी के लिए कुछ स्थानीय मुस्लिम नेताओं से संपर्क किया और शबनम की शादी के लिए अब्बास नाम के एक मुस्लिम युवक को चुना। अब्बास जावन्त्री गांव का रहने वाला है और ऑटो रिक्शा चलाता है।

क्या कहती है शबनम

शबनम का कन्यादान करने वाले जोरा बताते हैं, ‘हमने शबनम को अपनी बेटी की तरह पाला। हमने उसे अपने धर्म और अपनी भाषा को चुनने, मानने की हर तरह की आजादी दी।’ वहीं शबनम का कहना है कि मैं एक हिंदू परिवार में पली-बढ़ी जहां मुझे खुद के अपने परिवार से ज्यादा लाड़-प्यार मिला। मुझे हर तरह की आजादी मिली। मैं उन्हें अपनी असली मां-बाप समझती हूं।

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