करीब दो साल पांच महीने बाद इतिहास ने खुद को दोहराया है। वर्ष 2016 के अप्रैल महीने में कोर्ट ने महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर मंदिर में सालों पुरानी परंपरा तोड़ दी। यहां स्थित चबूतरे पर महिलाओं को भी पूजा करने की इजाजत मिल गई। दरअसल, यहां करीब 100 पुरुषों ने जबरन पूजा की थी। वह एक-एक कर चबूतरे पर पहुंचे और उन्होंने शिला को नहलाया। पुरुषों का यह शिला पूजन महाराष्ट्र सरकार के आदेश के खिलाफ था। इस घटना के बाद मंदिर के ट्रस्ट ने फैसला लिया कि महिलाओं को भी इस चबूतरे पर पूजा करने की इजाजत होगी।
पिछले साल शनि शिंगणापुर मंदिर में शनि की मूर्ति पर एक महिला की ओर से तेल चढ़ाने पर यह विवाद शुरू हुआ था। महिला के तेल चढ़ाने के बाद मंदिर का शुद्धिकरण किया गया था। इसके बाद भूमाता रणरागिनी ब्रिगेड की महिलाओं ने मंदिर में प्रवेश की कोशिश भी की, लेकिन पुलिस ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए उन्हें मंदिर पहुंचने से पहले ही रोक लिया। इसके बाद महिलाओं को शनि शिंगणापुर मंदिर में प्रवेश के अधिकार पर बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका भी दायर हुई थी। बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था कि पूजास्थलों पर जाना उनका मौलिक अधिकार है और इसकी रक्षा करना सरकार का कर्तव्य है।
शनिशिंगनापुर के बाद महिलाओं ने समानता के अधिकार में एक और लड़ाई जीती। ये लड़ाई थी मुंबई स्थित हाजी अली दरगाह पर चादर चढ़ाने की। साल 2016 में ही महिलाओं ने हाजी अली के दरबार में न सिर्फ माथा टेका बल्कि दरगार पर जियारत के साथ चादर भी चढ़ाई। दरअसल यहां भी दरगाह में प्रवेश को महिला संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी, सुनवाई के दौरान ट्रस्टी पुरुषों की तरह महिलाओं को मुख्य दरगाह में प्रवेश की इजाजत देने को तैयार हो गये थे।