पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा शुक्रवार को एक आदेश जारी किए जाने के बाद फैसले को वापस ले लिया गया। अदालत ने कर्मचारी संघों के साथ-साथ हरियाणा सरकार को भी गतिरोध समाप्त करने का निर्देश दिया था।
बता दें कि 16 अक्टूबर की रात 12 बजे से हड़ताल शुरू हो गई थी और करीब 4100 बसें थम गईं। दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू, राजस्थान, मध्य प्रदेश और चंडीगढ़ के रास्तों पर रोडवेज बसें नहीं चलीं।
इसकी वजह हरियाणा रोडवेज कर्मचारियों में फैले अंसतोष को खत्म करने में परिवहन विभाग की नाकामी थी। बीते 22 सितंबर को रोडवेज कर्मचारियों की इस दो दिवसीय हड़ताल की घोषणा के बावजूद अधिकारी कोई ठोस कदम नहीं उठा पाए थे। इसके चलते 16-17 अक्टूबर को रोडवेज बसों की हड़ताल की गई। लेकिन यह बाद में बढ़ गई।
बताया जा रहा है कि इस रोडवेज बसों की हड़ताल का असर रोजाना 13.50 लाख यात्रियों पर पड़ा। जबकि परिवहन विभाग को यह हड़ताल रोजाना करीब दो करोड़ रुपये का वित्तीय नुकसान पहुंचा रही थी। इस हड़ताल ने परिवहन व्यवस्था चौपट कर दी थी। इस दौरान होने वाली परेशानियों को निजी बसें भी दूर नहीं कर सकीं, क्योंकि इनकी संख्या इतनी नहीं थी।
इस संबंध में हड़ताल से पहले हरियाणा परिवहन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव धनपत सिंह ने कहा था कि आए दिन रोडवेज कर्मियों की हड़ताल जायज नहीं है। उनकी तमाम मांगों को माना जा चुका है। निजी ऑपरेटरों की 700 बसें चलाने से रोडवेज का निजीकरण नहीं होगा। हड़ताल के दौरान जनता का भी सहयोग मांगा गया।