दिल्ली के विज्ञान भवन में 17 से 19 सितंबर तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) वैचारिक महाकुंभ का आयोजन करेगा। इसका मकसद “भविष्य का भारत-संघ का दृष्टिकोण” विषय पर दुनिया के प्रबुद्ध लोगों से सीधा संवाद करना है। साथ ही संघ को लेकर लोगों में फैली भ्रांतियों को दूर करना है। वर्तमान परिस्थितियों में इस बात का आराम से समझा जा सकता है कि इस व्याख्यामाला में शामिल होने के लिए देश के सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पाट्रियों को शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया है। तीन दिवसीय व्याख्यानमाला में श्रृंखला के दौरान संघ प्रमुख मोहन भागवत खुद दुनिया के समक्ष आरएसएस के वैचारिक दर्शन को रखने का काम करेंगे। वह राष्ट्रीय महत्व के विभिन्न समकालीन मुद्दों पर जैसे आरक्षण, हिंदुत्व और सांप्रदायिकता सहित अन्य मुद्दों पर संघ का पक्ष रखेंगे। साथ ही संघ के महासंवाद समागम में शामिल विद्वतजनों की ओर से पूछे गए सवालों का जवाब भी देंगे।
देश के ज्वलंत मुद्दे पर संवाद को बढ़ावा देकर संघ सोच बदलते रानीतिक परिदृश्य में सामाजिक समरसता के जरिए हिंदुओं के एकीकरण की बात करना है। ताकि चुनाव में जातिगत समीकरण मजबूत न हो पाए। अगर ऐसा हुआ भाजपा को नुकसान उठाना पर सकता है जो संघ नहीं चाहता। यही वजह है कि संघ अभी से मिशन 2019 को फतह करने में जुट गया है। संघ के नेताओं का मानना है कि समरसता के रास्ते ही हिंदू वोटों में विभाजन को रोका जा सकता है। आरएसएस की वेबसाइट पर समरसता कार्यक्रम की एक फोटो है, जिसमें बीआर आंबेडकर, ज्योतिबा फुले और गौतम बुद्ध की फोटो लगी है। लिखा है ‘समरसता मंत्र के नाद से हम भर देंगे सारा त्रिभुवन।
ये सब इसलिए किया जा रहा है कि संघ भाजपा सांसदों की खराब रिपोर्ट कार्ड से बड़ी चिंता विपक्ष का महागठबंधन है। सपा, बसपा जैसी पार्टियों के एक साथ आने की वजह से भाजपा गोरखपुर, फूलपुर, कैराना जैसा गढ़ गंवा चुकी है। उना, भीमा कोरेगांव, सहारनपुर और मेरठ जैसी घटनाओं से भाजपा की छवि दलित विरोधी बनी है। सत्तारूढ़ दल के खिलाफ हुए दलित ध्रुवीकरण ने एक बार फिर से बसपा सुप्रीमो मायावती को ताकतवर बना दिया है। दलित बनाम सवर्ण जैसा माहौल बना है, जिसे विपक्ष भुनाने की कोशिश में जुटा हुआ है। ऐसे में संघ की कोशिश ये है कि सामाजिक समरसता अभियान के जरिए हिंदुओं के एकत्रीकरण की बात की जाए। ताकि चुनाव में जातिगत समीकरण मजबूत न होने पाए। ऐसा होने पर भाजपा को नुकसान होता है। राजनीतिक के जानकार कहते हैं कि दलित और ओबीसी वोटों में सेंधमारी के बिना भाजपा सिर्फ अपने कोर वोटरों (ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य) के सहारे सत्ता तक नहीं पहुंच सकती।
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर के एक कार्यक्रम में कहा था कि हिंदू धर्म कोई जाति-भेद नहीं मानता, हम सब भाई-भाई हैं। इसे व्यवहार में भी उतारना होगा। दशकों से संघ इसी काम में जुटा है। भेदों के आधार पर व्यवहार भारती समाज की सबसे बड़ी विकृति है। समाज को एक सूत्र में बांधने के लिए डॉ. आंबेडकर जी के बंधुभाव का दृष्टिकोण अपनाना होगा। संघ समतायुक्त, शोषण-मुक्त समाज निर्माण करने का काम कर रहा है, लेकिन यह काम केवल अकेले संघ का नहीं है, सारे समाज को इसमें हाथ बंटाना है।
हाल ही में संघ ने देश के पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ. प्रणब मुखर्जी को नागपुर स्थिति हेडक्वार्टर में संवाद के लिए बुलाया था। डा. मुखर्जी आमंत्रण को स्वीकार कर वहां पहुंचे और समरसता और सामंजस्य की भारतीय परंपरा की सीख संघ के नेताओं को दी थी। उसके बाद संघ के एक बड़े कार्यक्रम में देश के प्रसिद्ध उद्योगपति रतन टाटा को भी बुलाया था। अब नई दिल्ली के विज्ञान भवन में तीन दिवसीय व्याख्यानमाला सीरिज के तहत देश और दुनिया भर के प्रमुख हस्तियों में इसमें शिरकत करने के लिए बुलाया गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को इसमें आमंत्रित किया गया है।