फौजी पति की शहादत और दो साल की मासूम बेटी की आंसुओं ने इस विधवा को तोड़ा नहीं बल्कि और मजबूत बनाया। इसके मतबूत हौसलों ने महिला को लेफ्टिनेंट बनने में मदद की।
जम्मू-कश्मीरः शहीद की बेवा ने चूड़ियां तोड़ीं और बंदूक थामी, फौज में बनी लेफ्टिनेंट
जम्मू। आतंक से जूझ रही घाटी में एक महिला सभी के लिए मिसाल बनकर सामने आई है। पति की शहादत के बाद नीरू सम्बयाल नाम की महिला ने अपने हाथों की चूड़ियां तोड़कर बंदूक थाम ली। नीरू शहीद जवान रविंदर सम्बयाल की विधवा है। अदम्य साहस का परिचय देते हुए नीरू ने आगे आकर भारतीय सेना में आवेदन किया और प्रशिक्षण पूरा करके वो अब लेफ्टिनेंस बन गई हैं।
आतंकियों के डाक टिकट जारी कर पाकिस्तान ने दिखाए अपने नापाक मंसूबे प्राप्त जानकारी के मुताबिक नीरू के पति शहीद रविंदर राइफलमैन थे और 2015 में अपनी रेजीमेंट में काम करने के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया था। रविंदर से नीरू की शादी अप्रैल 2013 में हुई थी और जब उनके पति की मौत हुई थी तब उनकी दो साल की बेटी थी। ऐसे वक्त में जब आम औरतें पूरी तरह टूट जाती हैं, नीरू ने अलग हटकर सोचा। उन्होंने न केवल अपनी दो साल की मासूम बेटी की परवरिश की जिम्मेदारी संभाली, बल्कि फैसला लिया कि वो अपने शहीद पति की ही तरह देश सेवा करेंगी।
अपने फैसले के पीछे के संघर्ष और प्रेरणा के बारे में बात करते हुए लेफ्टिनेंट नीरू ने बताया, “अप्रैल 2013 में लेफ्टिनेंट राइफलमैन रविंदर सिंह सम्बयाल से मेरी शादी हुई थी। मेरे पति पैदल सेना में तैनात थे। जब वो शहीद हो गए, तब हकीकत का सामना करना बहुत मुश्किल था। लेकिन मेरी बेटी मेरी प्रेरणा है। मैं उसे कभी भी यह महसूस नहीं कराना चाहती थी कि उसके पिता नहीं हैं और चाहती थी कि मैं उसे माता और पिता दोनों के रूप में परवरिश दूं। इसी ने मुझे 49 हफ्तों का प्रशिक्षण पूरा करना की प्रेरणा दी। 8 सितंबर 2018 को मुझे नियुक्ति मिली। फौज में होने पर व्यक्ति को मानसिक रूप से मजबूत होना पड़ता है क्योंकि कई बार ऐसे हालात का सामना करना पड़ता है जब शारीरिक ताकत बहुत ज्यादा मायने नहीं रखती।”
सीवर में टूट रही है जीवन की डोर, हर पांचवें दिन एक की मौत यहां यह बताना भी जरूरी है कि लेफ्टिनेंट नीरू के फैसले को परिवार का पूरा समर्थन मिला। नीरू के पिता और माता के परिवार ने उसे सपने पूरे करने में हर सहायता थी। वहीं, अपनी बेटी की सफलता पर नीरू के पिता दर्शन सिंह स्लैथिया कहते हैं, “मैं बहुत खुश हूं और उसकी सफलता पर मुझे गर्व है। उसे जिस भी मदद की जरूरत थी मैंने की। उसकी मां के परिवार को भी इस सफलता का श्रेय जाता है। यह मेरी बेटी की इच्छा थी कि उसे फौज में जाना है। शुरुआत में उसके फैसले को मानना हमारे लिए मुश्किल था, लेकिन फिर बाद में कई दफा बातचीत के बाद हम उसके सपने पूरे करने के लिए हर तरह से तैयार हो गए। एक अधिकारी बनने की यात्रा के दौरान मेरे शहीद दामाद के कमांडिंग ऑफिसर ने भी काफी सहायता की।”
अपनी बेटी के संघर्ष के बारे में बताते हुए वो कहते हैं, “सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) चयन परीक्षा के दौरान उसका मुकाबला 26 अन्य महिला उम्मीदवारों से था। आज मैं खुश और गर्व महसूस कर रहा हूं कि उसका संघर्ष सफल हुआ। इससे ज्यादा एक अभिभावक क्या चाह सकते हैं?”