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इंदिरा गांधी: नेहरू को मानती थीं राजनीतिक संत, खुद को राजनेता

Published: Nov 19, 2018 12:32:37 pm

Submitted by:

Dhirendra

पंडित नेहरू और इंदिरा गांधी ने करीब 32 साल से ज्‍यादा समय तक प्रधानमंत्री के रूप में देश का नेतृत्‍व किया लेकिन इस दौरान उनकी संपत्ति बढ़ने के बजाय कम हो गई।

Indira gandhi

इंदिरा गांधी: नेहरू को मानती थीं राजनीतिक संत, खुद को राजनेता

नई दिल्‍ली। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का आज जन्‍मदिन है। पीएम रहते हुए उन्‍होंने दुनिया से खुद का लोहा मनवाया। भारत में आज भी वो आयरन लेडी के रूप में लोकप्रिय हैं। उन्‍होंने कई सख्‍त निर्णय लिए, जो चौंकाने वाले साबित हुए। लेकिन भ्रष्‍टाचार की बात आने पर नेहरू और इंदिरा उतना सख्‍त नहीं दिखतीं जितना उन्‍हें होना चाहिए। परंतु ये भी सच है कि देश की आजादी से लेकर 1981 तक की नेहरू-गांधी परिवार की संपत्ति की बात करें तो वो बढ़ने के बजाय घटी। आज के पक्ष और विपक्ष के नेताओं से उनकी तुलना कर देखने पर लगता है कि नेहरू और इंदिरा राजनीति के संत थे। लेकिन खुद इंदिरा गांधी ने एक बार कहा था कि मेरे पिता संत थे लेकिन मैं तो पॉलिटिशियन हूं।
आनंद भवन कर दिया था दान
1981 में अपने ऐतिहासिक वसीयत में इंदिरा गांधी ने यह भी लिखा है कि 1947 में हमारे पास जितनी संपत्ति थी, आज उससे कम है। बता दें कि इस बीच उन्होंने जवाहर लाल नेहरू स्मारक ट्रस्ट को आनंद भवन दान कर दिया था। वसीयत के अनुसार महरौली के नजदीक वाला निजी फार्म हाउस राहुल और प्रियंका के नाम उन्‍होंने कर दिया था। इसमें दोनों की हिस्सेदारी बराबर की थी। उन्होंने पुस्तकों की कॉपीराइट भी तीन हिस्सों में बांट दिए। तीनों बच्चों के नाम यानी प्रियंका, राहुल और वरुण के नाम।
राजीव और सोनिया को सौंपी वरुण की जिम्‍मेदारी
वसीयत में इंदिरा गांधी ने लिखा था कि मैं यह देख कर खुश हूं कि राजीव और सोनिया, वरुण को उतना ही प्यार करते हैं जितना अपने खुद के बच्चों को. मुझे पक्का भरोसा है कि जहां तक संभव होगा, वो हर तरह से वरुण के हितों की रक्षा करेंगे। यह बात पूर्व प्रधानमंत्री ने अपनी वसीयत में दर्ज की है। यह वसीयत 4 मई, 1981 को लिखी गई थी। उसके गवाह थे एमवी राजन और माखन लाल।
संजय का शेयर वरुण को दिया
अपनी वसीयत में इंदिरा गांधी ने यह भी लिखा है कि संजय गांधी की जायदाद में मेरा जो शेयर है उसके बारे में मेरी इच्छा है कि वह वरुण को मिले। इन बच्चों के बालिग होने तक यह संपत्ति ट्रस्ट के पास रहे जिसके प्रबंधक राजीव और सोनिया रहें। इंदिरा गांधी की वसीयत में अन्य परिजन की चर्चा मौजूद है सिवा मेनका गांधी के। वरुण का तो उन्होंने पूरा ध्यान रखा, पर अपने छोटे पुत्र संजय की विधवा के लिए उनके पास देने को कुछ नहीं था। संजय के निधन के बाद मेनका का संबंध इंदिरा गांधी से बहुत ही खराब हो गया था।
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