धर्म अलग-अलग हैं लेकिन दुनिया का विज्ञान एक है
आईआईटी मुंबई के पूर्व प्रोफेसर राम पुनियानी का कहना है कि मैं इस बात से असहमत हूं कि हिंदी का विकास नहीं हुआ है। हिंदी लोकप्रिय हो रही। यूरोप से लेकर पश्चिम एशिया में हिंदी खूब लोकप्रिय हो रही है। विज्ञान किसी एक देश का नहीं होता, विज्ञान यह पूरी दुनिया का होता है। धर्म अलग-अलग हैं लेकिन दुनिया का विज्ञान एक है। विज्ञान में जो फ्रंट लाइन रिसर्च यानी पहली पंक्ति के अनुसंधान हैं, वो अमरीका या यूरोप में ज्यादा हैं। विज्ञान की पढ़ाई में शोध का बहुत ज्यादा महत्व है। यह अंग्रेजी और यूरोपीय भाषाओं में ज्यादा है। भारत का जो शोध का ढांचा है वह अंग्रेजी के आधार पर बना है। जापान या चीन ने विकास और बाजार से कदमताल करने के लिए अंग्रेजी पर जोर दिया है। भारत में विज्ञान के क्षेत्र में पढ़ाई की दिक्कत अलग ढंग की है। हमारे यहां शोध के लिए बहुत ज्यादा धन नहीं मिलता है। देश के शोध क्षेत्र का अनुदान बहुत बड़ा नहीं है। इस वजह से हिंदी में धरातल से जुड़े शोध नहीं हो पाते हैं। पर्यावरण, स्वास्थ्य, कृषि आदि के क्षेत्र में जो शोध होने चाहिए वो नहीं हो रहे हैं। अगर हिंदी भाषी शोधार्थी आगे आएंगे तो इसका असर जमीनी स्तर के शोध पर भी पड़ेगा। यह जरूरी है कि हिंदी में शोध को बढ़ावा दें और वैज्ञानिकों को सम्मान मिले, जिसके वे हकदार हैं।