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हिंदी दिवस: हिन्दी में शोध को दिया जाए बढ़ावा: राम पुनियानी

locationनई दिल्लीPublished: Sep 14, 2017 03:51:36 pm

Submitted by:

Mohit sharma

हिंदी भाषियों के बोलने के अंदाज को ही सवालिया नजरों से देखा जाता है।

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नई दिल्ली। फिल्म अभिनेत्री पिया बाजपेई का कहना है कि इंडस्ट्री में फिल्में तो हिंदी की बनती हैं, लेकिन लोग बोलते अंग्रेजी हैं, कामकाज भी अंग्रेजी में ही होता है। यह बात हर जगह लागू है। दिक्कत यह है कि हम हिंदी वाले भी इसमें हीन भावना से ग्रस्त हो जाते हैं। बात भाषा की नहीं है। बोलने की है। हिंदी भाषियों के बोलने के अंदाज को ही सवालिया नजरों से देखा जाता है। शुरुआत में मैं सहम जाती थी, और कहती थी मैं इस पर काम कर रही हूं। लेकिन अब मैंने कहना शुरू कर दिया है कि हां हैं तो? तो हिंदी वालों को आगे आना चाहिए अपनी भाषा से प्यार करना ही होगा। अगर हमें अपने पर भरोसा है, अगर हम अच्छा काम कर रहे हैं, तो भाषा आड़े नहीं आती है। यह सिर्फ फिल्मों की बात नहीं है। हर जगह यही हाल है। इससे भिडऩा होगा। इसका सामना करना होगा। हिंदी भाषा में काम करके, बोलकर के, बात करके भी सफलता पाई जाती है। अब जब हिंदी के लोग आने लगे हैं, जो हिंदी को ही ओढ़ते-बिछाते हैं, तो माहौल बदल रहा है। हिंदी सिनेमा में काम कर रहे ज्यादातर लोगों का चरित्र दोहरा है, लेकिन जमीन से जुड़े हिंदी के लोग जैसे अनुराग कश्यप, तिग्मांशु धूलिया, अनुभव सिन्हा इनके आने से हालात बदल रहे हैं। मुझे लगता है कि आने वाले दौर में हिंदी बढ़ती जाएगी, क्योंकि अब अन्य भाषाएं भी बॉलीवुड में जगह बना रही हैं।

धर्म अलग-अलग हैं लेकिन दुनिया का विज्ञान एक है

आईआईटी मुंबई के पूर्व प्रोफेसर राम पुनियानी का कहना है कि मैं इस बात से असहमत हूं कि हिंदी का विकास नहीं हुआ है। हिंदी लोकप्रिय हो रही। यूरोप से लेकर पश्चिम एशिया में हिंदी खूब लोकप्रिय हो रही है। विज्ञान किसी एक देश का नहीं होता, विज्ञान यह पूरी दुनिया का होता है। धर्म अलग-अलग हैं लेकिन दुनिया का विज्ञान एक है। विज्ञान में जो फ्रंट लाइन रिसर्च यानी पहली पंक्ति के अनुसंधान हैं, वो अमरीका या यूरोप में ज्यादा हैं। विज्ञान की पढ़ाई में शोध का बहुत ज्यादा महत्व है। यह अंग्रेजी और यूरोपीय भाषाओं में ज्यादा है। भारत का जो शोध का ढांचा है वह अंग्रेजी के आधार पर बना है। जापान या चीन ने विकास और बाजार से कदमताल करने के लिए अंग्रेजी पर जोर दिया है। भारत में विज्ञान के क्षेत्र में पढ़ाई की दिक्कत अलग ढंग की है। हमारे यहां शोध के लिए बहुत ज्यादा धन नहीं मिलता है। देश के शोध क्षेत्र का अनुदान बहुत बड़ा नहीं है। इस वजह से हिंदी में धरातल से जुड़े शोध नहीं हो पाते हैं। पर्यावरण, स्वास्थ्य, कृषि आदि के क्षेत्र में जो शोध होने चाहिए वो नहीं हो रहे हैं। अगर हिंदी भाषी शोधार्थी आगे आएंगे तो इसका असर जमीनी स्तर के शोध पर भी पड़ेगा। यह जरूरी है कि हिंदी में शोध को बढ़ावा दें और वैज्ञानिकों को सम्मान मिले, जिसके वे हकदार हैं।

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