मानवेंद्र देश के पहले राजकुमार हैं जिन्होंने समाज के डर की परवाह किए बैगर अपने समलैंगिक होने की बात कबूल की थी। २००६ में मानवेंद्र ने खुद को समलैंगिक बताया इसके बाद परिवार के लोगों ने उन्हें बहिष्कृत कर दिया। फिर उन्होंने अपने जैसे लोगों के लिए एक संस्था लक्ष्य की शुरुआत की। आज उनकी संस्था समलैंगिक पुरुषों तथा ट्रांसजेंडरों के साथ उनके लिए ही काम करती है।
मानवेंद्र अपना रोल मॉडल गे एक्टिविस्ट अशोक रो कवि को मानते हैं। अशोक ने ही उन्हें समलैंगिक की दुनिया से अवगत कराया और संस्था लक्ष्य बनाने के लिए प्रेरित किया। मानवेंद्र के मुताबिक गुजरात में इस तरह का संस्था शुरू करना आसान नहीं था। लोगों को यह बात हजम नहीं हो रही थी कि एक समलैंगिक ने दूसरे समलैंगिकों के लिए संस्था क्यों बनाई। इसलिए शुरुआती दौर में घर, परिवार, समाज के लोगों के साथ पुलिस की ओर से लगातार बाधाओं का सामना करना पड़ा था।
उनकी संस्था लक्ष्य एलजीबीटीक्यू लोगों को शिक्षित करने का काम करती है। उन्हें एचआईवी और एड्स से बचाव की सही सलाह देती है। मानवेंद्र ने विदेशी अखबार को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि मेरे लिए भारत में गे समुदाय के लिए कुछ करना आसान कभी नहीं रहा। हमारे देश में समलैंगिकता कानून जर्म है। लोगों को लगता है कि विदेशी संस्कृति के प्रभाव की वजह से भारत के लोग भी समलैंगिकता की तरफ जा रहे हैं। जो की गलत है।