आइसीआइजे के मुताबिक स्तन और घुटने के प्रत्यारोपण के लिए प्रयोग होने वाली ज्यादातर मशीनें विज्ञापन पर आधारित होती हैं। इनका बीमारी पर खास असर नहीं पड़ता, मतलब परेशानी बनी रहती है। कंपनियां ऐसे उपकरणों के विज्ञापन पर बेतहाशा पैसा बहाती हैं। कंपनियों को पता है कि ऐसे उपकरणों को लगाने की सलाह डॉक्टर देते हैं। यही कारण है कि कंपनियां डॉक्टरों को मोटी घूस देती हैं, जिसमें नकदी और तोहफे शामिल हैं।
कई उपकरण दुनिया में प्रतिबंधित जिन उपकरणों का इस्तेमाल किया जा रहा है उसमें से कई को दुनियाभर में प्रतिबंधित कर दिया गया है। कई बड़ी कंपनियां उपकरणों को ठीक से निरीक्षण नहीं करातीं। कंपनियां किसी प्रकार का प्रयोग या शोध नहीं करतीं कि उपकरण व्यक्ति के शरीर में ठीक से काम करेगा या नहीं।
कानून बना, लेकिन कोई असर नहीं देश में चिकित्सीय उपकरणों की गुणवत्ता और जांच पर कभी ध्यान नहीं दिया गया। 12 साल पहले पहली बार इससे संबंधित कानून का मसौदा तैयार किया गया था। मोदी सरकार ने भी इसे लेकर कानून बनाने का विचार किया था। पिछले साल सरकार ने आसान रास्ता चुना और कानून के स्थान पर चिकित्सीय उपकरण विधेयक लेकर आई है।
निजी क्लीनिकों और अस्पतालों में सेकेंड हैंड उपकरण प्राइवेट क्लीनिकों और अस्पतालों में उपयोग के लिए सेकेंड हैंड चिकित्सा उपकरण आयात किए जाते हैं। इसी वजह से उसकी गुणवत्ता और सुरक्षा पर खास ध्यान नहीं दिया जाता। खाद्य एवं औषधि प्रशासन के आंकड़ों की समीक्षा के अनुसार भारतीय नियामक ने देश में वितरित उपकणों का विवरण नहीं दिया है।
निजी अस्पताल वाले एम्स की शरण में पिछले दिनों ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) दिल्ली पहुंचे कई मरीजों की शिकायत थी कि उनके शरीर में उपकरणों का प्रत्यारोपण ठीक से नहीं हुआ। उन्हें बीमारी में राहत नहीं है, इसलिए कई की एक से अधिक बार सर्जरी की गई है। इन्होंने प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराया था।
13 लाख खर्च लेकिन आराम नहीं 51 साल के अरविंद कुमार अपनी तीसरी सर्जरी के लिए पिछले दिनों एम्स पहुंचे हैं। इसके पहले दो बार एक निजी अस्पताल में उनके कूल्हे की सर्जरी हो चुकी थी। कुछ दिनों बाद पता चला कि वह सर्जरी विफल रही। इस पर उन्होंने १३ लाख से अधिक रुपए भी खर्च किए थे। लगातार इलाज के चलते उन्हें नौकरी गंवानी पड़ी है।
लाखों खर्च के बाद भी राहत नहीं मिली 55 वर्षीय शशिकांत का नोएडा के निजी अस्पताल में घुटने का प्रत्यारोपण हुआ था। लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी कोई फायदा नहीं हुआ और दोबारा उन्हें प्रत्यारोपण कराने की सलाह दी गई है। शशिकांत कहते हैं कि उन्होंने एक बड़े अस्पताल में इलाज कराया था, फिर भी यह प्रत्यारोपण विफल रहा।
खराब डिजाइन वाले उपकरण कारण एम्स के हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ सीएस यादव बताते हैं कि पिछले दिनों 1500 से अधिक घुटनों और कूल्हों की सर्जरी की गई हैं। इनमें फीसदी से अधिक को दोबारा सर्जरी की जरूरत महसूस हुई है। इसका कारण डॉक्टरों में प्रशिक्षण की कमी है और ऑपरेशन के लिए खराब डिजाइन किए गए उपकरणों का प्रयोग है।