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बोफोर्स घोटाले का जिन्न फिर आया सामने, हो सकती है सीबीआई जांच 

Published: Jul 14, 2017 08:15:00 pm

Submitted by:

ghanendra singh

बोफोर्स तोप सौदे को लेकर एक बार फिर से देश की सियासत गरमा सकती है। दरअसल, संसद की लोक लेखा समिति (पीएसी) के निर्देश पर सीबीआई बोफोर्स तोप सौदे को लेकर आरोपियों पर एक बार फिर से शिकंजा कस सकती है। 

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नई दिल्ली। बोफोर्स तोप सौदे को लेकर एक बार फिर से देश की सियासत गरमा सकती है। दरअसल, संसद की लोक लेखा समिति (पीएसी) के निर्देश पर सीबीआई बोफोर्स तोप सौदे को लेकर आरोपियों पर एक बार फिर से शिकंजा कस सकती है। इसके लिए वह केंद्र सरकार से मंजूरी मांगने वाली है। पीएसी की छह सदस्यीय उपसमिति ने बोफोर्स तोप सौदे पर पिछली सरकार की नीयत पर सवाल खड़े किए हैं। 13 जुलाई को पीएसी के सामने पेश हुए सीबीआई के वर्तमान निदेशक आलोक वर्मा से रक्षा मामलों के इस उपसमिति ने पूछा कि 2005 में दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के बाद सीबीआई ने ऊपरी अदालत में अपील क्यों नहीं की? 1986 की कैग रिपोर्ट के कुछ पहलुओंं का पालन नहीं किए जाने की जांच कर रही पीएसी की उप-समिति के अध्यक्ष बीजद नेता भातृहरि माहताब और भाजपा नेता निशिकांत दुबे सहित उप-समिति के अन्य सदस्यों ने सीबीआई से दिल्ली हाई कोर्ट के 2005 के उस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाने को कहा जिसमें बोफोर्स मामले में कार्यवाही निरस्त कर दी गई थी। 


उप समिति ने आलोक वर्मा से गुरुवार को कहा कि वे बोफोर्स सौदे के ‘सिस्टैमिक फेल्यर’ और घूस लेने के आरोपों की फिर जांच करें। उल्लेखनीय है कि बोफोर्स तोप सौदे के चलते 1980 के दशक में देश की राजनीति में भूचाल सा आ गया था। 1989 में कांग्रेस को इसकी वजह से सत्ता तक गंवानी पड़ी थी। मामले में आरोपी इटली के बिजनसमैन ओत्तावियो क्वात्रोच्ची की गांधी परिवार से कथित नजदीकी सवालों के घेरे में रही है।

भाजपा सदस्य का तर्क
 बताया जा रहा है कि इस दौरान भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने कहा कि अगर बाबरी विध्वंस मामले में बीजेपी नेताओं के खिलाफ आरोप फिर से निर्धारित किए जा सकते हैं, तो फिर बोफोर्स मामले में ऐसा क्यों नहीं हो सकता। जब सीबीआई के निदेशक ने उप-समति को बताया कि एजेंसी को इस सिलसिले में केंद्र सरकार से निर्देश लेने होंगे, तो माहताब ने कहा कि एजेंसी सिर्फ अपना काम करे और फैसला केंद्र सरकार पर छोड़ दे। इस पर वर्मा ने कहा कि वह दो हफ्ते के अंदर समिति के सामने पेश होंगे। 

कैग की जरूरी फाइलें गायब
इसके अलावा बताया जा रहा है कि उप-समिति के सामने पेश हुए रक्षा सचिव संजय मित्रा ने पैनल को बताया है कि कैग से संबंधित जरूरी फाइलें गायब हैं। सांसदों ने इस पर हैरानी जताते हुए कहा कि अगर मूल दस्तावेज जांच एजेंसियों को दिए गए थे, तब भी उसकी फोटोकॉपी रिकॉर्ड के लिए रखी जानी चाहिए थी।

केस अभी खत्म नहीं
हालांकि, यह केस अभी पूरी तरफ डेड नहीं हुआ है, क्योंकि दिसंबर, 2016 में इसका जिक्र उस वक्त सुप्रीम कोर्ट में हुआ था, जब सीबीआई ने बताया था कि केंद्र की तत्कालीन यूपीए सरकार ने उसे मामले में अपील दायर करने की इजाजत नहीं दी थी। 
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यह है मामला?
स्वीडन के रेडियो ने सबसे पहले 1987 में यह खुलासा किया था कि स्वीडन की हथियार कंपनी बोफोर्स ने भारतीय सेना को तोपें सप्लाई करने का सौदा हथियाने के लिये 80 लाख डालर की दलाली दी थी। उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी, जिसके प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे। किया। इसे ही बोफोर्स कांड के नाम से जाना जाता हैं। आरोप था कि राजीव गांधी परिवार के नजदीकी बताए जाने वाले इतालवी व्यापारी ओत्तावियो क्वात्रोच्चि ने इस मामले में बिचौलिये की भूमिका अदा की, जिसके बदले में उसे दलाली की रकम का बड़ा हिस्सा मिला। कुल 1.3 अरब डॉलर के चार सौ बोफोर्स तोपों की खरीद के इस सौदे के लिए बोफोर्स ने 1.42 करोड़ डॉलर की रिश्वत बांटी थी।

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