आरबीआई ने कर्ज बांटने में की नियमों की अनदेखी: जेटली
वित्तमंत्री ने कहा कि साल 2008 का वैश्विक संकट 2014 तक जारी रहा था, और इस दौरान बैकों से कहा गया कि वे अर्थव्यवस्था को ‘कृत्रिम रूप से’ बढ़ाने के लिए खुल कर कर्ज बांटें। जेटली ने कहा कि जब अंधाधुंध कर्ज बांटे जा रहे थे, तब केंद्रीय बैंक उसकी अनदेखी कर रहा था.. साल 2008 में बैंकों ने कुल 18 लाख करोड़ रुपए के कर्ज बांटे थे, जो साल 2014 में बढ़कर 55 लाख करोड़ रुपये हो गया। और यह इतनी बड़ी रकम थी, जिसे संभालना बैंकों के बस से बाहर था। इसे संभालना कर्ज लेनेवालों (बड़ी कंपनियों) के बस के बाहर था और इसी कारण एनपीए (फंसे हुए कर्जे) की समस्या पैदा हुई है।
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‘हम सत्ता में आए तो 8.5 लाख करोड़ था एनपीए’
जेटली ने कहा कि मुझे आश्चर्य है कि उस समय सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया, बैंकों ने इस पर ध्यान नहीं दिया। उस समय केंद्रीय बैंक क्या कर रहा था। नियामक होने के बावजूद वह सच्चाई पर परदा डाल रहा था। उन्होंने कहा कि हमें बताया गया कि कुल एनपीए 2.5 लाख करोड़ रुपए है। लेकिन जब हमने 2015 में समीक्षा की तो यह 8.5 लाख करोड़ रुपए निकला।
विरल आचार्य ने क्या कहा था
शुक्रवार को आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने कहा है कि केंद्र सरकार आरबीआई की आजादी का सम्मान नहीं करेगी तो उसे जल्द या बाद में आर्थिक बाजारों का नाराजगी का शिकार होना पड़ेगा। उन्होंने आगे कहा कि की केंद्रीय बैंक नीतियां नियमों पर आधारित होनी चाहिए। सरकार के दखल से केंद्रीय बैंक के कामकाज और उसकी स्वायत्ता प्रभावित हो रही है। विरल के इस बयान को आरबीआई की वेबसाइट पर भी प्रकाशित किया गया है।