सुप्रीम कोर्ट: आधार और पदोन्नति में आरक्षण समेत छह मामलों में आज सुना सकता है फैसला आधार की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शीर्ष कोर्ट में प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने सुनवाई की। इस बेंच में जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण शामिल हैं। बेंच ने आधार मामले में फैसला आने तक सरकारी सेवाओं में इसकी अनिवार्यता पर रोक लगा दी थी। 10 मई को हुई इस मामले में अंतिम सुनवाई के दिन अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने बताया था कि यहह सुनवाई न्यायिक इतिहास की दूसरी सबसे लंबी चली सुनवाई है। इससे पूर्व 1973 में मौलिक अधिकारों को लेकर केशवानंद भारती मामले में पांच माह सुनवाई चली थी।
क्या था केशवानंद भारती मामला
केशवानंद भारती केरल के इडनीर नाम के हिंदू मठ के मुखिया थे। केरल सरकार ने भूमि सुधार कानून बनाकर मठ मैनेजमेंट पर पाबंदियां लगाने की कोशिश की। केशवानंद भारती ने इसे लेकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। संविधान के अनुच्छेद 26 का हवाला दिया। कहा गया, इस अनुच्छेद के तहत हर नागरिक को धर्म-कर्म के लिए संस्था बनाने, उसका प्रबंधन करने और संपत्ति एकत्रिक करने का अधिकार देता है। दलील दी गई थी कि सरकार का कानून संवैधानिक अधिकार के खिलाफ है।
केस संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संविधान संशोधन की शक्तियों की व्याख्या से भी संबंधित था। इसलिए इसकी सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के 13 जजों वाली बेंच ने की थी। दरअसल इससे पूर्व गोलकनाथ मामले की सुनवाई 11 जजों की बेंच ने की थी। 68 दिन की सुनवाई के बाद 24 अप्रैल 1973 को कोर्ट ने इस मामले में फ़ैसला सुनाया तो बेंच की राय बंट गई। सात 7 जज फ़ैसले के पक्ष में और 6 विपक्ष में थें। केशवानंद भारती केस में कोर्ट ने गोलकनाथ मामले के फैसले को पलटते हुए कहा था कि संसद संविधान संशोधन कर सकती है लेकिन संविधान के मूलभूत ढांचे में बदलाव नहीं कर सकती। कोर्ट ने कहा था कि संविधान का मूलभूत ढांचा पवित्र चीज़ है।