मिर्जापुर जिले में चार लाख के करीब पटेल कुर्मी वोटर हैं जो राजनीतिक दलों के लिए जीत हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । इतना ही नही चुनार से बड़ी संख्या में पटेल आबादी वाराणसी में भी रहती है, जिसके कारण वाराणसी संसदीय सीट और कई विधानसभा में वह निर्णायक की भूमिका अदा करते है।
मिर्जापुर में शिवकुमार पटेल को कांग्रेस जिला अध्यक्ष बनाने के बाद अब पटेल वोट को लेकर लड़ाई तेज हो जाएगी। बता दें कि पिछले कुछ सालों में मिर्जापुर पटेल राजनीति का केंद्र रहा है, उसका कारण काफी हद तक अपना दल(एस) नेता अनुप्रिया पटेल की इस जिले की सियासत में इंट्री है।
अनुप्रिया पटेल लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा से गठबंधन करने के बाद इस सीट पर जीत हासिल करने के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में दुबारा इस सीट पर जीत हासिल कर वह पहली सांसद बनी जिन्होंने लगातार दूसरी बार इस सीट पर जीत हासिल की है । हालांकि इस सीट पर पटेल वोट बैंक कभी सपा के साथ रहा करता था । ददुआ के भाई बालकुमार पटेल सपा के टिकट पर यहां से चुनाव जीत थे, मगर इससे बाद पटेल समाज मे अपना दल (एस) ने पकड़ बनाना शुरू किया और भाजपा के साथ मिल कर यहां की पांचों विधानसभा सीट पर जीत दर्ज करते हुए सांसद पद पर दो बार से जीत हासिल की।
अब कांग्रेस उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 से पहले अपना दल (एस) और भाजपा के इसी तिलस्म को तोड़ने के लिए पहली बार जिलाध्यक्ष पटेल समाज से आने वाले शिव कुमार पटेल को बनाया। इस कदम के बाद कांग्रेस पटेल कुर्मी बाहुल्य जिले की दो विधानसभा सीट चुनार, मड़िहान पर जीत के लिए अपनी रणनीति बनानी शुरू कर चुकी है। इससे पहले 2012 के विधानसभा चुनाव में मड़िहान सीट कांग्रेस जीत चुकी है। यहां से ललितेश पति त्रिपाठी ने जीत हासिल की थी। कांग्रेस की इन दोनों सीटों के साथ मझवां विधान सभा सीट पर भी नजर है। कांग्रेस पटेलों के बीच जितना मजबूती से जायेगी, उतना अनुप्रिया पटेल को नुकसान होगा ।
कांग्रेस के रणनीतिकारों को भी पता है कि जब तक जिले में पटेल और कुर्मी मतों में कांग्रेस की पैठ नहीं होती है तब तक बीजेपी और अपना दल(एस) गठबंधन को मात दे पाना कठिन होगा। इसलिए कांग्रेस ने जिलाध्यक्ष बनाकर पहली बार अपनी दिशा साफ कर दिया है, अब देखना यह होगा कि चुनाव में कांग्रेस को इस रणनीति का कितना फायदा मिलता है ।
BY- SURESH SINGH