यह भी पढेंः कांग्रेस ने ‘आयुष्मान’ को लेकर उठाए एेसे सवाल, भाजपाइयों को जवाब देते नहीं बन रहा इंदिरा की सहानुभूति सुनामी का दौर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की दुर्दशा भले ही बीते चुनावों से हो रही हो। लेकिन प्रदेश में तो कांग्रेस का किला 1984 से ढहना शुरू हो गया था। यह वह दौर था जब इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई थी और इंदिरा की सहानुभूति सुनामी में 1984 के चुनाव में अंतिम बार कांग्रेस को जीत मिली थी। इसके बाद से कांग्रेस का वजूद सिमटता गया। पश्चिम उप्र में भी कांग्रेस का जलवा मेरठ और मुजफ्फरनगर में कायम रहता था। मेरठ में अवतार सिंह भड़ाना और मुजफ्फरनगर में हरेन्द्र मलिक कांग्रेस का चेहरा हुआ करते थे, लेकिन पार्टी की बेरूखी के कारण यहां भी कांग्रेस अर्श से फर्श पर आ गई।
यह भी पढ़ेंः मिशन 2019 की तैयारियों के लिए भाजपा का मास्टर स्ट्रोक, इन तीन दिन संगठन का कोर्इ काम नहीं होगा इंडिया साइन फेल होने पर दिखाया था भरोसा देश में जब भाजपा के प्रमोद महाजन ने 2004 में भाजपा का इंडिया साइन जनता को दिखाया तो जनता ने कांगेस पर भरोसा करते हुए उसको फेल कर दिया। कांग्रेस पर देश की जनता ने पूरा भरोसा दिखाया था। देश में राजनीतिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष के सामने प्रदेश में पार्टी संगठन मजबूत कर कांग्रेस की डूबती नैया को पार लगाने और सबको साथ लेकर चलने की चुनौती होती है, लेकिन प्रदेशाध्यक्ष संगठन के भीतर चल रही उठापटक से ही फुर्सत नहीं पाते तो जनता के बीच कैसे जाएंगे और पार्टी को आगे बढ़ाने की नीति पर कैसे काम करेंगे। इसलिए अब ऐसे व्यक्ति को प्रदेशाध्यक्ष बनाने का फैसला किया गया है जो जमीनी राजनीति से मजबूती से जुड़ा हुआ हो और खुद पार्टी हित में कठोर फैसले ले सके। नया प्रदेशाध्यक्ष पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी एवं अध्यक्ष राहुल गांधी का करीबी होने के साथ ही पार्टी का समर्पित कार्यकर्ता हो। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली करारी हार के बाद आलाकमान को इस पद के लिए साफ सुथरी एवं गैर विवादित चेहरे की तलाश है। वैसे तो वर्तमान अध्यक्ष राजबब्बर का नाम कभी विवादों में नहीं रहा। वह कभी पार्टी के किसी भी पाले में खड़े नजर नहीं आए। लेकिन वे पार्टी के मापदंडों पर खरे नहीं उतर सके। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की मंशा रूप में ऐसे चेहरे को कमान सौंपने की है, जो पूरी पार्टी को एक साथ लेकर चले और जिसकी नियुक्ति पर किसी भी गुट को कोई गिला शिकवा न हो।
दुर्दशा का कारण कमजोर संगठन विधानसभा चुनाव के बाद शहरी निकाय चुनावों में भी कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा था। ऐसा माना जाता है कि इन चुनावों में कांग्रेस की दुर्दशा का कारण कमजोर संगठन एवं पार्टी के बड़े नेताओं की गुटबाजी थी। राजनीतिक जानकारों के अनुसार चूंकि राजबब्बर कभी कांग्रेस नेताओं के किसी धड़े में शामिल नहीं रहे और उनके लगभग सभी बड़े नेताओं से अच्छे संबंध हैं। ऐसे में उन्हें सबको साथ लेकर चलने में बहुत ज्यादा परेशानी नहीं हुई। लेकिन वे चुनावी प्रबंधन करने में नाकाम रहे। पार्टी सूत्रों की माने तो प्रदेश में पार्टी को ऐसे व्यक्ति की जरूरत है जो महागठबंधन की राजनीति का मजा हुआ खिलाड़ी हो। इस बारे में जब कांग्रेस प्रवक्ता से बात की गई तो उनका कहना था कि यह सब फैसले ऊपरी स्तर पर होते हैं। उनको इसके बारे में जानकारी नहीं है। वैसे जो भी अध्यक्ष आएगा उसके साथ मिलकर कांग्रेस को मजबूत किया जाएगा।