भाजपा ने 2014 और 2019 के दोनों चुनाव पश्चिम में अपने बूते लड़े। 2014 में पार्टी का प्रदर्शन भी शानदार रहा। लेकिन 2019 में सपा-बसपा और रालोद के साथ आने से भाजपा को पश्चिमी यूपी की 14 में से सात सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में भाजपा को पश्चिम में एक सहयोगी की जरूरत महसूस हुई और जाट बिरादरी को साधने के लिए भाजपा को रालोद का साथ सही लगा।
गैर मुस्लिम वोटों में सेंधमारी
पश्चिमी यूपी में जिस तरह सपा-बसपा गैर मुस्लिम वोटों में सेंधमारी का प्रयास कर रही है, वो भाजपा और रालोद दोनों की चिंता का कारण है। जैसे कि, बिजनौर सीट पर सपा ने सैनी तो बसपा ने जाट प्रत्याशी उतारा है। बागपत में सपा ब्राह्मण चेहरा उतार कर भाजपाई वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है।
कैराना में बसपा और सपा बनी चुनौती
कैराना में बसपा ने ठाकुर प्रत्याशी उतारा है, वहीं भाजपा के गुर्जर उम्मीदवार प्रदीप चौधरी को मुस्लिम गुर्जर इकरा हसन से चुनौती मिल रही है। मुस्लिम-दलित बाहुल्य मेरठ में भाजपा ने राम अरुण गोविल को टिकट दिया है तो सपा ने दलित सुनीता वर्मा और बसपा ने भाजपा का वोट बैंक माने जाने वाले त्यागी समाज से प्रत्याशी उतारकर चुनौती पेश की है। गाजियाबाद और गौतमबुद्धनगर सीटों पर बसपा ने ठाकुर उम्मीदवार दिए हैं तो मथुरा में हेमा मालिनी के सामने जाट चेहरे को उतारा है। फतेहपुर सीकरी सीट पर भाजपा प्रत्याशी राजकुमार चाहर के सामने बसपा ने ब्राह्मण तो कांग्रेस ने ठाकुर चेहरे को उतारा है। इस सीट पर भाजपा विधायक चौधरी बाबूलाल ने अपने बेटे को ही निर्दलीय मैदान में उतार दिया है।