गोबर व मूत्र बीमारियों और विकरणों तथा नकारात्मक प्रभावों को दूर करने की क्षमताओं
कार्तिक शुक्ल पक्ष जिसमें बलिराज पूजा के साथ गोवर्धन पूजा होती है। पंडित भारत ज्ञान भूषण के अनुसार ऐसे शुभ योगों में अन्नकूट का पर्व मनाया जाना कृष्ण की कृपा तो दिलाता ही है साथ ही गऊ वर्धन, गऊ पालन व गऊ रक्षा को प्रोत्साहित करते हुए यह सिद्ध करता कि भारतीय संस्कृति में गऊ सर्वोपरि है।
इसका गोबर व मूत्र बहुत सारी बीमारियों और विकरणों तथा नकारात्मक प्रभावों को दूर करने की क्षमताओं से युक्त है। गऊ सेवा और गऊ वर्धन हमारे जीवन के प्रत्येक अंग में सकारात्मक प्रभाव बढ़ने के भी योग बनते है।गोवर्धन पूजा परमात्मा कृष्ण की साकार रूप की पूजा है। जो हमे धन, धान्य से पूर्ण तो करती ही है तथा साथ ही भारी प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा भी प्रदान करती है।
लाभामृत योग प्रातः – 10:44 से 01:26 तक शुभ योग – 10:40 से 12:04 तक अभिजीत मुहूर्त – 11:43 से 12:26 तक निषिद्ध राहू काल- 2:46 से 4:07 तक ऐसे करें गोवर्धन पूजा
पंडित भारत भूषण कहते हैं कि सम्भव हो तो गऊ के गोबर का गोवर्धन पर्वत का प्रतीक बनाकर गोवर्धन धारी भगवान कृष्ण की मूर्ति अथवा चित्र गोवर्धन पर्वत के नीचे अथवा गोवर्धन पर्वत के ऊपर स्थापित कर पूजित करें। 56 भोग के लिए या तो 56 प्रकार के व्यंजन होने चाहिए अथवा 56 स्थानों पर भोग प्रसाद रख कर गोवर्धन महराज की वह कथा कहनी चाहिए जिसमें इन्द्र के प्रकोप से प्रलयंकारी वर्षा हुई तथा परमात्मा कृष्ण का साकार रूप गोवर्धन पर्वत ने गोकुल व बृजवासियों की रक्षा की।
इस प्रकार संकीर्तन करते हुए उस परमात्मा कृष्ण की महिमा का वर्णन करना चाहिए जिन्होंने 7 वर्ष की अवस्था में 7 दिन व 7 रात अपने बांये हाथ की सबसे छोटी उंगली में विराट गोवर्धन पर्वत को उठाये रखा और इन्द्र के अहंकार को शमित किया।
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सच्ची निष्ठा से हम परमात्मा के शरणागत हो जाते हैइस प्रकार गोवर्धन कथा से आम जनता को तो ये सीख मिलती है कि सच्ची निष्ठा से हम परमात्मा के शरणागत हो जाते है तो रक्षा का भार स्वतः ही परमात्मा अपने ऊपर ले लेतें है। दूसरी शिक्षा राजनेताओं, शासकों, प्रशासकों के लिए है कि परमसत्ता केवल परमात्मा पर ही है। वे परमात्मा के आधीन ही सत्ताधारी है। इसलिए सत्ता के मद में अहंकार पूर्ण निरंकुशता से बचें।