बता दें कि इस बार जहां राज बब्बर का मुकाबला त्रिकोणीय माना जा रहा है तो वहीं हेमा मालिनी की भी राह आसान नहीं है। लिहाजा दोनों ने जीत के लिए पूरा जोर लगा लिया है। फतेहपुर सीकरी में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, महासचिव प्रियंका गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राज बब्बर के पक्ष में 15 अप्रैल को जनसभा की तो वहीं वीरू (धर्मेंद्र) अपनी बसंती (हेमा मालिनी) के लिए वोट मांगने के लिए खुद मथुरा चले आए। सोमवार को ही गृहमंत्री और भाजपा के स्टार प्रचारक राजनाथ सिंह ने भी हेमा के समर्थन में रैली को संबोधित किया। आइए एक नजर डालते हैं राज बब्बर और हेमा मालिनी के राजनीतिक सफर पर।
बतौर प्रचारक हेमा ने की थी राजनीतिक सफर की शुरुआत
हेमा मालिनी ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत वर्ष 1999 में प्रचारक के रूप में की थी। उस समय उन्होंने पंजाब के गुरदासपुर से बीजेपी प्रत्याशी विनोद खन्ना के लिए प्रचार किया था। वर्ष 2003 में हेमा मालिनी को राज्यसभा के लिए नामित किया गया। 2009 तक वे राज्यसभा की सदस्य रहीं। इसी बीच 2004 में उन्होंने भाजपा को जॉइन कर लिया और 2011 में बीजेपी की महासचिव बनीं और प्रत्याशियों के लिए चुनाव प्रचार किया। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने हेमा मालिनी को यूपी की मथुरा सीट से उम्मीदवार बनाया और उन्होंने रालोद के उपाध्यक्ष जयंत चौधरी को 3,30,743 वोटों से हराया और पहली बार लोकसभा की सदस्य बनीं। इस बार फिर से भाजपा ने उन्हें मथुरा से ही प्रत्याशी बनाया है।
हेमा मालिनी ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत वर्ष 1999 में प्रचारक के रूप में की थी। उस समय उन्होंने पंजाब के गुरदासपुर से बीजेपी प्रत्याशी विनोद खन्ना के लिए प्रचार किया था। वर्ष 2003 में हेमा मालिनी को राज्यसभा के लिए नामित किया गया। 2009 तक वे राज्यसभा की सदस्य रहीं। इसी बीच 2004 में उन्होंने भाजपा को जॉइन कर लिया और 2011 में बीजेपी की महासचिव बनीं और प्रत्याशियों के लिए चुनाव प्रचार किया। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने हेमा मालिनी को यूपी की मथुरा सीट से उम्मीदवार बनाया और उन्होंने रालोद के उपाध्यक्ष जयंत चौधरी को 3,30,743 वोटों से हराया और पहली बार लोकसभा की सदस्य बनीं। इस बार फिर से भाजपा ने उन्हें मथुरा से ही प्रत्याशी बनाया है।
तीन दशक पहले जनता दल के साथ राजबब्बर ने शुरू की थी पारी
राज बब्बर ने अपनी सियासी पारी 1989 में जनता दल के साथ शुरू की थी। वर्ष 1994 में वे समाजवादी पार्टी में शामिल हुए और 12 साल तक रहे। 1994 में ही राज बब्बर को समाजवादी पार्टी की ओर से राज्यसभा सांसद बनाया गया था। 1999 और 2004 के लोकसभा चुनाव में राज बब्बर आगरा सीट से सपा के ही टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़े और जीत कर सांसद बने। 2006 में सपा ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में उन्हें निलंबित कर दिया। इसके बाद 2008 में राज बब्बर ने कांग्रेस का दामन थाम लिया। इसके बाद 2009 में उन्होंने फिरोजाबाद सीट का उपचुनाव जीता और अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव की पत्नी को हराकर अपनी ताकत की पहचान राजनीतिक गलियारों तक पहुंचा दी। 2014 में राज बब्बर ने फतेहपुर सीकरी से लोकसभा चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस बार फिर से वे फतेहपुरी सीकरी से ही कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में उतरे हैं।
राज बब्बर ने अपनी सियासी पारी 1989 में जनता दल के साथ शुरू की थी। वर्ष 1994 में वे समाजवादी पार्टी में शामिल हुए और 12 साल तक रहे। 1994 में ही राज बब्बर को समाजवादी पार्टी की ओर से राज्यसभा सांसद बनाया गया था। 1999 और 2004 के लोकसभा चुनाव में राज बब्बर आगरा सीट से सपा के ही टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़े और जीत कर सांसद बने। 2006 में सपा ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में उन्हें निलंबित कर दिया। इसके बाद 2008 में राज बब्बर ने कांग्रेस का दामन थाम लिया। इसके बाद 2009 में उन्होंने फिरोजाबाद सीट का उपचुनाव जीता और अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव की पत्नी को हराकर अपनी ताकत की पहचान राजनीतिक गलियारों तक पहुंचा दी। 2014 में राज बब्बर ने फतेहपुर सीकरी से लोकसभा चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस बार फिर से वे फतेहपुरी सीकरी से ही कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में उतरे हैं।