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भजन सम्राट विनोद अग्रवाल को नम आंखों से दी गई अंतिम विदाई, दर्शन करने के लिए उमड़ी भीड़

locationमथुराPublished: Nov 06, 2018 05:05:53 pm

पुष्पांजलि बैकुंठ स्थित गोविंद की गली आवास से उनकी अंतिम यात्री निकली। उन्हें अंतिम बार देखने के लिए सड़कों पर भीड़ उमड़ पड़ी।

Bhajan Samrat Vinod Agarwal antim yatra

Bhajan Samrat Vinod Agarwal antim yatra

मथुरा। भजन सम्राट और आध्यात्मिक गुरु के रूप में प्रसिद्ध विनोद अग्रवाल का मथुरा के नयति अस्पताल में सुबह चार बजे निधन हो गया। वे 63 वर्ष के थे। अचानक स्वास्थ्य खराब होने पर उन्हें नयति अस्पताल में भर्ती कराया गया था। विनोद अग्रवाल के निधन से पूरे देश में शोक की लहर है। हर कोई अवाक है। वे मूल रूप से मुंबई के रहने वाले थे। विनोद अग्रवाल भगवान श्रीकृष्ण के ही भजन गाया करते थे। दोपहर तीन बजे वृंदावन में नम आंखों के साथ भजन सम्राट विनोद अग्रवाल को अंतिम विदाई दी गई। पुष्पांजलि बैकुंठ स्थित गोविंद की गली आवास से उनकी अंतिम यात्री निकली। उन्हें अंतिम बार देखने के लिए सड़कों पर भीड़ उमड़ पड़ी।

हर आंख थी नम
अपने भजनों से भक्तों को रुलाने वाले भजन सम्राट विनोद अग्रवाल की अंतिम यात्रा में शामिल हर एक की आंख नम थी। उनका पार्थिव शरीर पुष्पांजलि बैकुंठ स्थित गोविंद की गली आवास पर लाया गया, यहां दोपहर एक बजे अंतिम दर्शन के लिए विनोद अग्रवाल का पार्थिव शरीर रखा गया। निवास के नीचे हॉल में हरे राम, हरे कृष्ण के भजन होते रहे। इसके बाद तीन बजे उनके अंतिम दर्शन के लिए पार्थिव शरीर की यात्रा निकाली गई। उन्हें अंतिम बार देखने के लिए सड़कों पर भीड़ उमड़ पड़ी। यमुना घाट पर उनका पार्थिव शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया।
रविवार को बिगड़ा था स्वास्थ्य
रविवार की सुबह विनोद अग्रवाल का स्वास्थ्य अचानक ही बिगड़ गया। उन्हें नयति अस्पताल में भर्ती कराया गया। सोमवार को दिल्ली से उनके पुत्र जतिन और भाई अशोक सहित उनके अन्य परिजन, दूर के रिश्तेदार भी मथुरा आ गए। चिकित्सकों ने भरपूर प्रयास किया, लेकिन बचाया नहीं जा सका। सोमवार को पूरे दिन उनके शुभचिंतकों का आना-जाना लगा रहा। मंगलवार की सुबह उन्होंने अंतिम सांस ली। इसके साथ ही भजन के एक युग का सदा के लिए अवसान हो गया।
विनोद अग्रवाल का परिचय
विनोद अग्रवाल जी का जन्म 6 जून 1955 को दिल्ली में हुआ था। उनके पिता स्वर्गीय श्री किशननंद अग्रवाल और मां स्वर्गीय श्रीमती रत्नदेवी अग्रवाल को भगवान कृष्ण और राधा पर अटूट विश्वास था। 1962 में 7 साल की उम्र में माता-पिता और भाई-बहनों के साथ वह दिल्ली से मुंबई चले गए। केवल 12 वर्ष की आयु में उन्होंने भजन गायन आरम्भ किया और हार्मोनियम बजाना सीख लिया। 11 दिसंबर, 1975 में 20 वर्ष की आयु में विनोद अग्रवाल जी का विवाह कुसुम लता से हो गया। उनके दो बच्चे बेटा जतिन और बेटी शिखा की ब शादी हो चुकी है। विनोद अग्रवाल जी के परिवार में सभी कृष्णा के अनुयायी थे, इसलिए बचपन से ही उन्हें भक्तिमय वातावरण मिला। उनके माता पिता ने भजन गाने के लिए प्रोत्साहित किया था। संतों और गुरुओं के सत्संग में उन्होंने अपनी इस कला को और निखारा।
1978 से हरिनाम संस्कार
सन 1978 से वह अपने बड़े भाई के कार्यालय में हर रविवार की सुबह हरि नाम संस्कार आयोजित कर रहे थे। 1979 में उन्होंने भटिंडा, पंजाब के गुरु स्वर्गीय मुकुंद हरि से दीक्षा ली। उनके गुरु की इच्छा थी कि विनोद अग्रवाल सारी दुनिया में हरि नाम का प्रचार करें। अपने गुरु की इसी इच्छा को अपने जीवन का लक्ष्य बनाकर विनोद अग्रवाल ने देश के अनेक राज्यों के विभिन्न शहरों में अनगिनत प्रस्तुतियां दी हैं। वह 1993 से बिना किसी शुल्क के लाइव कार्यक्रम भी आयोजित कर रहे थे।
1500 से अधिक लाइव कार्यक्रम
उन्होंने भारत में 1500 से अधिक लाइव कार्यक्रम और यू.के., इटली, सिंगापुर, स्विटजरलैंड, फ्रांस, कनाडा, जर्मनी, आयरलैंड, थाईलैंड, दुबई, नेपाल जैसे दुनिया के विभिन्न हिस्सों में कई सफल कार्यक्रम किए। 115 से भी अधिक ऑडियो कैसेट, सीडी और वीसीडी भारत में कई शीर्ष ऑडियो कंपनियों द्वारा जारी की गई हैं, जो पूरे विश्व में फैली हैं। उनके भजन रिकॉर्डिंग को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न टीवी चैनलों और स्थानीय केबल नेटवर्क के जरिए दिखाया जाता है। उनकी रिकॉर्डिंग बिना किसी रिटेक के सीधे रिकॉर्ड होती थी।

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