नई दिल्लीPublished: Jul 20, 2018 01:50:38 pm
Saurabh Sharma
शुक्रवार को रुपया 69.12 तक गिरा है, इससे पहले 28 जून को रुपए ने 69.10 का स्तर छुआ था।
‘संसद’ की वजह से गिर गया रुपया, डाेनाल्ड का डाॅलर हुअा खुश
नर्इ दिल्ली। आज संसद ने रुपया को गिरा इतना नीचे गिरा दिया, जितना वो आज तक नहीं गिरा था। फिर चाहे वो भारत की संसद हो या फिर अमरीका की संसद। ये दो संसद भारतीय रुपए के गिरने की सबसे बड़ी वजह से बना है। आंकड़ों की मानें तो शुक्रवार को रुपया डाॅलर के मुकाबले रिकाॅर्ड लेवल पर नीचे गिर गया है। रुपया का यह अब तक का सबसे निचला स्तर है। आंकड़ों की मानें तो शुक्रवार को रुपया 69.12 तक गिरा है। इससे पहले 28 जून को रुपए ने 69.10 का स्तर छुआ था। ताज्जुब की बात तो ये है कि रुपए की गिरने की सबसे बड़ी वजह से संसद में केंद्र सरकार
बाकी करेंसी के मुकाबले रुपया सबसे निचले स्तर पर
शुक्रवार को रुपए की शुरुआत गुरुवार के मुकाबले 4 पैसे ऊपर 69.01 पर हुई लेकिन कुछ ही देर में गिरावट शुरू हो गई। गुरुवार को डॉलर के मुकाबले ये 43 पैसे कमजोर होकर 69.05 पर बंद हुआ जो अब तक का सबसे निचला क्लोजिंग स्तर रहा। पहली बार रुपए की क्लोजिंग 69 के ऊपर हुई। चीन समेत दूसरे एशियाई देशों की करेंसी में भी डॉलर के मुकाबले इस साल कमजोरी रही है लेकिन रुपए पर सबसे ज्यादा असर हुआ है। सात महीने में रुपया ये 8 फीसदी गिर चुका है।
चीन की वजह से रुपए में आर्इ गिरावट
रुपए में गिरावट की सबसे बड़ी वजह चीन की करेंसी युआन है। अमरीकी डाॅलर के मुकाबले चीन की मुद्रा युआन 0.28 फीसदी कमजोर होकर 6.7943 पहुंच चुकी हैं। ये युआन की सबसे कम वैल्यू है। जिसका असर भारतीय रुपए पर भी पड़ रहा है। जानकारों की मानें तो अमरीकी फेडरल रिजर्व बैंक के बयानल आैर घरेलू राजनीतिक कारणों की वजह से रुपए गिरावट आ रही है। फेडरल बैंक चेयरमैन ने बुधवार को अमरीकी संसद में बयान दिया था कि देश की इकोनाॅमी में बेहतर हो रही है। जिस कारण से अमरीका में ब्याज दरों के बढ़ने की संभावना बढ़ गर्इ है। जिससे दुनिया के सभी देशाें में डाॅलर में तेजी दिखार्इ दे रही है। वहीं दूसरी भारत में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आने से मुद्रा बाजार में गिरावट देखने को मिली है।
रुपए के कमजोर होने से यह पड़ेगा असर
– भारतीयों के लिए विदेश यात्रा महंगी हो जाएगी।
– विदेश में पढ़ाई का खर्च भी बढ़ जाएगा।
– यात्रा और पढ़ाई इसलिए महंगी होगी क्योंकि करेंसी एक्सचेंज के लिए डॉलर के मुकाबले ज्यादा रुपए चुकाने होंगे।
– भारत के लिए क्रूड का इंपोर्ट महंगा होगा। इससे महंगाई बढ़ सकती है।
– आईटी और फार्मा कंपनियों को रुपए की कमजोरी से फायदा होगा क्योंकि इनका बिजनेस एक्सपोर्ट से जुड़ा है।