यह हालात शासकीय कन्या माध्यमिक विद्यालय क्रमांक १ बालागंज में नजर आए, जहां एक कक्षा के अंदर करीब २०-२५ बच्चे लंच समय में मध्यान्ह भोजन कर रहे थे। वैसे तो शासन की योजना के अनुसार मध्यान्ह भोजन परोसने से लेकर थाली धोने तक का जिम्मा स्व सहायता समूह का होता है। लेकिन जिम्मेदारों की लापरवाही के कारण बच्चों को थालियां धोने पर मजबूर होना पड़ रहा है।
आश्चर्य की बात तो यह है कि यह हालात किसी गांव या खेड़े के विद्यालय का नहीं, बल्कि शहर के बीचों बीच स्थित विद्यालय का है। ऐसे में उन विद्यालयों का क्या हाल होगा जो वाकई में ग्रामीण क्षेत्रों में हैं।
तीन कक्षाओं में छह का स्टॉफ, नजर आए दो
माध्यमिक विद्यालय में कक्षा ६ से ८ तक तीन कक्षाओं में करीब १२५ से अधिक बच्चे अध्यनरत हैं। जिसमें करीब ५ शिक्षक व एक शाला प्रधान हैं। इस प्रकार कुल ६ का स्टॉफ होने के बावजूद विद्यालय में मात्र दो लोग ही नजर आए, जिसमें एक शाला प्रधान तो दूसरी एक शिक्षिका थी।
तीन कक्षाओं में छह का स्टॉफ, नजर आए दो
माध्यमिक विद्यालय में कक्षा ६ से ८ तक तीन कक्षाओं में करीब १२५ से अधिक बच्चे अध्यनरत हैं। जिसमें करीब ५ शिक्षक व एक शाला प्रधान हैं। इस प्रकार कुल ६ का स्टॉफ होने के बावजूद विद्यालय में मात्र दो लोग ही नजर आए, जिसमें एक शाला प्रधान तो दूसरी एक शिक्षिका थी।
चूकि लंच के दौरान भी बच्चों की गतिविधि पर नजर रखना शिक्षकों की जिम्मेदारी है। लेकिन ६ में से ४ शिक्षक छुट्टी पर होने के कारण बच्चे भगवान भरोसे ही नजर आ रहे थे। क्योंकि किसी की भी नजर बच्चों पर नहीं थी कि वे लंच के दौरान क्या कर रहे हैं।
नहीं बनता किचन शेड में भोजन, कैसे मिले बच्चों को गर्म रोटियां
बच्चों को मध्यान्ह भोजन में गरमा गरम रोटियां मिले, वहीं भोजन निर्माण के दौरान भोजन में उपयोग की जाने वाली सामग्री की जांच व भोजन की गुणवत्ता स्वयं जिम्मेदार शिक्षक जांच लें, इस कारण शासन की योजनानुसार मध्यान्ह भोजन विद्यालय के अंदर ही किचन शेड में बनना होता है। लेकिन जिला मुख्यालय पर स्थित अधिकतर विद्यालयों में मध्यान्ह भोजन किचन शेड में नहीं बन रहा है।
ऐसे में स्व सहायता समूह द्वारा अपने ठिकाने से ही भोजन बनाकर विद्यालय विद्यालय भेज दिया जाता है। जिससे खाना बनने से लेकर वितरण होने के समय में काफी अंतर होने के कारण भोजन ठंडा होने के कारण अरूचिकर हो जाता है। इस कारण बच्चे भी मध्यान्ह भोजन करने में पीछे हटते नजर आए।
दबी जुबान से बोले बच्चे, खाने में नहीं आता मजा
मध्यान्ह भोजन कर रहे बच्चों से जब पूछा कि उन्हें भोजन कैसा लग रहा है आधे बच्चे घर से टिफिन क्यों ला रहे हो, तो अधिकतर कुछ भी बोलने में झिझकते नजर आए, लेकिन कुछ बच्चों ने दबी जुबान से बताया कि भोजन में रोटियां ठंडी हो जाती है। वहीं दाल या सब्जी बिल्कुल स्वादिष्ट नहीं लगती है। इस कारण घर से खाना लाना पड़ता है।
बाई आती है आज लेट हो गई
मध्यान्ह भोजन वितरण करने व थालियां धोने के लिए बाई आती है। किसी कारणवश लेट हो गई होगी। कुछ बच्चे शौक से टिफिन लेकर आते हैं। विद्यालय में करीब ४ शिक्षक छुट्टी पर हैं।
-महेशकुमार त्रिवेदी, शाला प्रधान, मावि बालांगज
-महेशकुमार त्रिवेदी, शाला प्रधान, मावि बालांगज