प्रतिबंध का नहीं दिख रहा असर
उल्लेखनीय है कि बरसात के शुरुआती दो माह (16 जून से 16 अगस्त) मछलियों का प्रजनन काल माना जाता है। इस बीच मछलियां जलस्रोतों में अंडे देती हैं। मछलियों की संख्या बढ़ाने के लिए ही मत्स्य विभाग हर साल 16 जून से 16 अगस्त तक मछली पकडऩे पर प्रतिबंध लगाता है। प्रतिबंध की घोषणा तो इस साल भी की गई, लेकिन उसका असर शहर में कहीं नहीं दिख रहा। शहर में ही नर्मदा के विभिन्न तटों पर युवा वर्ग खुलेआम मछलियां पकड़ रहे हैं। लोग दिन पर मछलियां पकड़ते हैं और शाम होते ही उन्हें बाजार में बेच दिया जाता है। प्रतिबंध के बावजूद नर्मदा के विभिन्न घाटों पर लोग कांटे और जाल की सहायता से मछलियां पकड़ रहे हैं। कुछ युवकों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि यदि हम मछली नहीं पकड़ेंगे तो रोजी-रोटी कैसे चलेगी।
विभाग द्वारा एक भी प्रकरण नहीं बनाया गया है
मत्स्याखेट पर प्रतिबंध लगाने के बाद से अब तक विभाग द्वारा एक भी प्रकरण नहीं बनाया गया है। मछलियों का शिकार रोकने के लिए नगर पालिका भी उदासीन है। दिनभर मछली पकडऩे के बाद शाम को महाराजपुर, सुपर मार्केट, पुरवा आदि क्षेत्र में इनका विक्रय किया जाता है। जबकि प्रतिबंध में मछली पकडऩे व बेचने को गैरकानूनी माना गया है। बारिश के मौसम में मछलियों में वंश वृद्धि की दृष्टि से संरक्षण देने के लिए मप्र नदीय मत्स्योद्योग अधिनियम 1972 के प्रावधानों के तहत 16 जून से 15 अगस्त की अवधि को बंद ऋतु घोषित किया गया है। इस अवधि में सभी प्रकार का मत्स्यखेट पूर्णत: प्रतिबंधित किया गया है। इसके अलावा मछलियों के क्रय-विक्रय व परिवहन पर भी रोक लगाई गई है। नियम का उल्लंघन करने वालों को एक वर्ष के सश्रम कारावास, पांच हजार रुपए के जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।