बौरी अब 17 साल की हो चुकी है। पत्रकारों के एक समूह के साथ बेधड़क बातचीत में उसने कहा – मैंने अपने माता-पिता को मनाकर अपनी शादी रुकवाई और उन्हें बताया कि मैं पढ़-लिखकर डॉक्टर बनना चाहती हूं। मैं दबे-कुचले और उपेक्षित लोगों का इलाज करना चाहूंगी। मैंने अपनी मां को बताया कि समय से पहले शादी करने और गर्भधारण करने से हमारे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। पश्चिम बंगाल के पिछड़े जिले पुरुलिया के नेटुरिया ब्लॉक स्थित पर्वतपुर गांव की रहने वाली बौरी ने कहा कि उसके माता-पिता गरीबी के कारण १५ साल की उम्र में ही उसकी शादी करवा देना चाहते थे। उसने अपने माता-पिता को समझाया कि वह पढऩा चाहती है, जिसके बाद वह परिवार की जरूरतों को पूरा कर सकती है।
बौरी ने कहा – अब मैं अन्य लड़कियों को यह बात समझा रही हूं। वह अकेली नहीं है। अन्य बहादुर लड़कियां यूनिसेफ के साथ मिलकर वैवाहिक अत्याचार के खिलाफ संघर्ष कर रही हैं और पुरुलिया में उदाहरण स्थापित कर रही हैं, जहां ३८.३ फीसदी युवतियों की शादी १८ साल से कम उम्र में ही हो जाती है। जिले में महिला साक्षरता की दर अत्यंत कम ५०.२ फीसदी है, यह प्रदेश की औसत साक्षरता दर ७०.५४ फीसदी से काफी कम है।
पुरुलिया के देहाती इलाके से आने वाली नबामी बसरा और रेणुका माझी को पढ़ाई छोडऩे को मजबूर होना पड़ा और उनकी शादी कम ही उम्र में हो गई। इनमें से किसी ने ससुरालियों के दुर्व्यवहार को बर्दाश्त नहीं किया। वे अपने माता-पिता के पास लौट चुकी हैं और आगे की पढ़ाई कर रही हैं।
बसरा ने कहा – मैं आत्मनिर्भर बनना चाहती हूं और पुलिस में भर्ती होना चाहती हूं। जिला प्रशासन की मदद से यूनीसेफ ने पुरुलिया के १० ब्लॉक और तीन नगरपालिकाओं में विभिन्न कार्यकलाप चलाने के लिए २०१५ में किशोर सशक्तीकरण कार्यक्रम (एईपी) शुरू किया। इन कार्यक्रमों में जीवन कौशल शिक्षा, खेलों को प्रोत्साहन और आत्मरक्षा आदि के माध्यम से सशक्तीकरण शामिल है।
यूनिसेफ की पश्चिम बंगाल इकाई के प्रमुख मोहम्मद मोहिउद्दीन ने कहा – पुरुलिया में युवतियों में जागरूकता का स्तर देखकर मैं हैरान हूं। २०१५-१६ के राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार पुरुलिया में बालविवाह की दर ३८.३ फीसदी है, लेकिन मुझे पक्का विश्वास है कि वर्तमान आंकड़ों में इसमें कमी आई है, क्योंकि सरकार की विभिन्न योजनाओं को काफी प्रभावी ढंग से लागू किया गया है। सरकार की मौजूदा नीतियों को लागू करने के संबंध में यूनिसेफ की बाल सुरक्षा अधिकारी स्वप्नदीपा विस्वास ने कहा – सशक्तीकरण के कई कार्यक्रम हैं, लेकिन जिसकी जरूरत है वह है समग्रतापूर्ण नजरिया, जिसमें स्वास्थ्य, पोषण जागरूकता, सुरक्षा, शिक्षा, आजीविका, और आरोग्य बनाए रखना शामिल हैं। विश्वास ने कहा – लड़के और लड़कियों के लिए योजनाएं हैं, लेकिन लड़कियों को उनकी सामाजिक दशाओं के कारण कुछ अधिक मदद मिल रही है।
मिसाल के तौर पर २०१५ में शुरू किए गए कन्याश्री फुटबॉल टूर्नामेंट से १८३ क्लबों से ५,४०० कन्याश्री बालिकाओं को संघटित करने में मदद मिली। जिलाधिकारी आलोकेश प्रसाद रॉय ने कहा – हम जुलाई २०१७ में शुरू की गई अपनी कन्याश्री स्वावलंबी योजना के माध्यम से सिलाई, नर्सिंग, हथकरघा आदि का प्रशिक्षण प्रदान कर रहे हैं। हम प्रत्येक खंड मुख्यालय में कन्याश्री नाम से भवन बनाने जा रहे हैं, जिनमें किताबें, हाई स्पीड इंटरनेट से युक्त कंप्यूटर होंगे। वहां व्यावसायिक कौशल प्रशिक्षण केंद्र भी होगा।