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मोटिवेशनल स्टोरी : आसान नहीं थी महमूद की राह, लोगों के ताने सुन बने कॉमेडी किंग

Motivational story of Mahmood : अपने विशिष्ट अंदाज, हाव-भाव और आवाज से लगभग पांच दशक तक दर्शको को हंसाने और गुदगुदाने वाले महमूद (Mahmood) ने फिल्म इंडस्ट्री (Film Industry) में ‘किंग ऑफ कॉमेडी’ (King of Comedy) का दर्जा हासिल किया, लेकिन उन्हें इसके लिए काफी संघर्ष का सामना करना पड़ा था और यहां तक सुनना पड़ा था कि ‘वो न तो अभिनय कर सकते हैं, ना ही कभी अभिनेता बन सकते हैं’।

Jul 22, 2019 / 01:17 pm

जमील खान

Mahmood

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Motivational story of mahmood : अपने विशिष्ट अंदाज, हाव-भाव और आवाज से लगभग पांच दशक तक दर्शको को हंसाने और गुदगुदाने वाले महमूद (Mahmood) ने फिल्म इंडस्ट्री (Film Industry) में ‘किंग ऑफ कॉमेडी’ (King of Comedy) का दर्जा हासिल किया, लेकिन उन्हें इसके लिए काफी संघर्ष का सामना करना पड़ा था और यहां तक सुनना पड़ा था कि ‘वो न तो अभिनय कर सकते हैं, ना ही कभी अभिनेता बन सकते हैं’। बाल कलाकार से हास्य अभिनेता के रूप मे स्थापित हुए महमूद का जन्म सितम्बर 1933 को मुंबई में हुआ था। उनके पिता मुमताज अली बॉम्बे टाकीज (Bombay Talkies) स्टूडियो में काम किया करते थे। घर की आर्थिक जरूरत को पूरा करने के लिए महमूद मलाड और विरार के बीच चलने वाली लोकल ट्रेनों में टॉफियां बेचा करते थे। बचपन के दिनों से ही महमूद का रुझान अभिनय की ओर था और वह अभिनेता बनना चाहते थे।

अपने पिता की सिफारिश की वजह से महमूद को बॉम्बे टॉकीज की वर्ष 1943 में प्रदर्शित फिल्म ‘किस्मत’ में अभिनेता अशोक कुमार के बचपन की भूमिका निभाने का मौका मिल गया। इस बीच महमूद ने कार ड्राइव करना सीखा और निर्माता ज्ञान मुखर्जी के यहां बतौर ड्राइवर काम करने लगे क्योंकि इसी बहाने उन्हें मालिक के साथ हर दिन स्टूडियो जाने का मौका मिल जाया करता था जहां वह कलाकारो को करीब से देख सकते थे।

इसके बाद महमूद ने गीतकार गोपाल सिंह नेपाली, भरत व्यास, राजा मेंहदी अली खान और निर्माता पी.एल. संतोषी के घर पर भी ड्राइवर का काम किया। महमूद की किस्मत का सितारा तब चमका जब फिल्म ‘नादान’ की शूटिंग के दौरान अभिनेत्री मधुबाला के सामने एक जूनियर कलाकार लगातार दस रीटेक के बाद भी अपना संवाद नहीं बोल पाया। फिल्म निर्देशक हीरा सिंह ने यह संवाद महमूद को बोलने के लिए दिया, जिसे उन्होंने बिना रिटेक एक बार में ही ओके कर दिया। इस फिल्म में उन्हें बतौर 300 रुपए प्राप्त हुए, जबकि बतौर ड्राइवर महमूद को महीने में मात्र 75 रुपए ही मिला करते थे। इसके बाद उन्होंने ड्राइवरी करने का काम छोड़ दिया और अपना नाम जूनियर आर्टिस्ट एशोसियेशन में दर्ज करा दिया और फिल्मों में काम पाने के लिए संघर्ष करना शुरू कर दिया। इसके बाद बतौर जूनियर आर्टिस्ट महमूद ने दो बीघा जमीन, जागृति, सीआईडी, प्यासा जैसी फिल्मों में छोटे-मोटे रोल किए जिनसे उन्हें कुछ खास फायदा नहीं हुआ।

जब कमाल अमरोही ने भी कहा, आप अभिनेता नहीं बन सकते
इसी दौरान महमूद को एभीएम के बैनर तले बनने वाली फिल्म ‘मिस मैरी’ के लिए स्क्रीन टेस्ट दिया। लेकिन एभीएम बैनर ने महमूद को स्क्रीन टेस्ट में फेल कर दिया। उनके बारे में एभी एम की राय कुछ इस तरह की थी कि वह ना कभी अभिनय कर सकते हैं ना ही अभिनेता बन सकते हैं। बाद के दिनों में एभी बैनर की महमूद के बारे में न सिर्फ राय बदली साथ ही उन्होंने उनको लेकर बतौर अभिनेता ‘मैं सुदर हूं’ का निर्माण भी किया। इसी दौरान महमूद रिश्तेदार कमाल अमरोही के पास फिल्म में काम मांगने के लिए गए तो उन्होंने महमूद को यहां तक कह दिया कि ‘आप अभिनेता मुमताज अली के पुत्र हैं और जरूरी नहीं है कि एक अभिनेता का पुत्र भी अभिनेता बन सके। आपके पास फिल्मों में अभिनय करने की योग्यता नहीं है। आप चाहे तो मुझसे कुछ पैसे लेकर कोई अलग व्यवसाय कर सकते हैं। इस तरह की बात सुनकर कोई भी मायूस हो सकता है और फिल्म इंडस्ट्री को अलविदा कह सकता है, लेकिन महमूद ने इस बात को चैलेंज की तरह लिया और नए जोशो खरोश के साथ काम करना जारी रखा।

नहीं ली मीना कुमारी की मदद
इसी दौरान उनको बी आर चोपड़ा की कैंप से बुलावा आया और महमूद को फिल्म ‘एक ही रास्ता’ के लिए काम करने का प्रस्ताव मिला। महमूद ने महसूस किया कि अचानक इतने बड़े बैनर की फिल्म में काम मिलना महज एक संयोग नहीं है, इसमें जरूर कोई बात है। बाद में जब उन्हें मालूम हुआ कि यह फिल्म उन्हें अपनी पत्नी की बहन मीना कुमारी (Meena Kumari) के प्रयास से हसिल हुई है तो उन्होंने फिल्म में काम करने से यह कहकर मना कर दिया कि वह फिल्म इंडस्ट्री में अपने बलबूते अभिनेता बनना चाहते हैं ना कि किसी की सिफारिश पर।

फिल्म छोटी बहन से चमका सितारा
इस बीच महमूद ने संघर्ष करना जारी रखा। जल्द ही उनकी मेहनत रंग लाई और वर्ष 1958 में प्रदर्शित फिल्म ‘परवरिश’ में उन्हें एक अच्छी भूमिका मिल गई। इस फिल्म में महमूद ने राजकपूर के भाई की भूमिका निभाई। इसके बाद उन्हें एल वी प्रसाद की फिल्म ‘छोटी बहन’ में काम करने का अवसर मिला जो उनके सिने करियर के लिए अहम फिल्म साबित हुई। फिल्म में बतौर पारश्रमिक महमूद को 6000 रुपए मिले। फिल्म की सफलता के बाद बतौर अभिनेता वह फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। फिल्म में उनके अभिनय को देख एक अंग्रेजी अखबार ने उनकी जमकर सराहना की।

वर्ष 1961 में उनको एम वी प्रसाद की फिल्म ‘ससुराल’ में काम करने का अवसर मिला। इस फिल्म की सफलता के बाद बतौर हास्य अभिनेता महमूद फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने मे सफल हो गए। फिल्म ससुराल में उनकी जोड़ी अभिनेत्री शुभा खोटे के साथ काफी पसंद की गई। इसी वर्ष महमूद ने अपनी पहली फिल्म ‘छोटे नवाब’ का निर्माण किया। इसके साथ ही इस फिल्म के जरिए महमूद ने आर डी बर्मन उर्फ पंचम दा को बतौर संगीतकार फिल्म इंडस्ट्री में पहली बार पेश किया। अपने चरित्र में आई एकरूपता से बचने के लिए महमूद ने अपने आप को विभिन्न प्रकार की भूमिका में पेश किया।

तीन बार मिला फिल्म फेयर पुरस्कार
इसी क्रम में वर्ष 1968 में प्रदर्शित फिल्म ‘पड़ोसन’ का नाम सबसे पहले आता है। फिल्म ‘पड़ोसन’ में महमूद ने नकारात्मक भूमिका निभाई और दर्शको की वाहवाही लूटने में सफल रहे। फिल्म मे महमूद पर फिल्माया एक गाना ‘एक चतुर नार करके श्रृंगार’ काफी लोकप्रिय हुआ। वर्ष 1970 में प्रदर्शित फिल्म ‘हमजोली’ में उनके अभिनय के विविध रूप दर्शकों को देखने को मिले। इस फिल्म में उन्होंने तिहरी भूमिका निभाई और दर्शकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। उन्होंने कई फिल्मों का निर्माण और निर्देशन किया। उन्होंने कई फिल्मों में अपने पाश्र्वगायन से भी श्रोताओं को अपना दीवाना बनाया। महमूद को अपने सिने कॅरियर में तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अपने पांच दशक से लंबे सिने कॅरियर में करीब 300 फिल्मों में अपने अभिनय का जौहर दिखाकर महमूद 23 जुलाई 2004 को इस दुनिया से हमेशा के लिए रुखसत हो गए।

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