एक दिन का वाकया है कि जब नंदा पढ़ाई में व्यस्त थीं, तब उनकी मां ने उनसे कहा, तुम्हें अपने बाल कटवाने होंगे क्योंकि तुम्हारे पापा चाहते हैं कि तुम उनकी फिल्म में लड़के का किरदार निभाओ। मां की इस बात को सुनकर नंदा को काफी गुस्सा आया। पहले तो उन्होंने बाल कटवाने के लिए साफ तौर से मना कर दिया, लेकिन मां के समझाने पर वह इस बात के लिए तैयार हो गईं। फिल्म के निर्माण के दौरान नंदा के सर से पिता का साया उठ गया। इसके साथ ही फिल्म भी अधूरी रह गई। धीरे-धीरे परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने लगी।
उनके घर की स्थित इतनी खराब हो गई कि उन्हें अपना बंगला और कार बेचने के लिए विवश होना पड़ा। परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण नंदा ने बाल कलाकार फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया। बतौर बाल कलाकार उन्होंने मंदिर (1948), जग्गू (1952), शंकराचार्य (1954), अंगारे (1954) जैसी फिल्मों मे काम किया। वर्ष 1956 में अपने चाचा वी शांताराम की फिल्म ‘तूफान और दीया’ से नंदा ने बतौर अभिनेत्री अपने सिने करियर की शुरुआत की। हालांकि, फिल्म की असफलता के कारण वह कुछ खास पहचान नहीं बना पाई। फिल्म दीया और तूफान की असफलता के बाद उन्होंने राम-लक्ष्मण, लक्ष्मी, दुल्हन, जरा बचके, साक्षी गोपाल, चांद मेरे आजा, पहली रात जैसी बी और सी ग्रेड वाली फिल्मों में बतौर अभिनेत्री काम किया, लेकिन इन फिल्मों से उन्हें कोई खास फायदा नहीं पहुंचा।
उनकी किस्मत का सितारा निर्माता एल वी प्रसाद की वर्ष 1959 में प्रदर्शित फिल्म ‘छोटी बहन’ से चमका। इस फिल्म में भाई-बहन के प्यार भरे अटूट रिश्ते को रूपहले परदे पर दिखाया गया था। इस फिल्म में बलराज साहनी ने बड़े भाई और नन्दा ने छोटी बहन की भूमिका निभाई थी। शैलेन्द्र का लिखा और लता मंगेशकर द्वारा गाया फिल्म का एक गीत ‘भइया मेरे राखी के बंधन को निभाना’ बेहद लोकप्रिय हुआ था। रक्षा बंधन के गीतों में इस गीत का विशिष्ट स्थान आज भी बरकरार है। फिल्म की सफलता के बाद नंदा कुछ हद तक फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गई।
फिल्म ‘छोटी बहन’ की सफलता के बाद उनको कई अच्छी फिल्मों के प्रस्ताव मिलने शुरू हो गए। देवानंद की फिल्म काला बाजार और हमदोनों, बी.आर. चोपड़ा की फिल्म ‘कानून’ खास तौर पर उल्लेखनीय है। फिल्म काला बाजार जिसमें नंदा ने एक छोटी सी, लेकिन महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वही सुपरहिट फिल्म हमदोनों में उन्होंने देवानंद के साथ बतौर अभिनेत्री काम किया। वर्ष 1965 उनके सिने करियर के लिए अहम वर्ष साबित हुआ। इस वर्ष उनकी ‘जब जब फूल खिले’ प्रदर्शित हुई। बेहतरीन गीत-संगीत और अभिनय से सजी इस फिल्म की जबरदस्त कामयाबी ने अभिनेता शशि कपूर और गीतकार आनंद बख्शी और संगीतकार कल्याण जी. आनंद जी को शोहरत की बुंलदियां पर पहुंचाने के साथ ही नंदा को भी ‘स्टार’ के रूप में स्थापित कर दिया।
वर्ष 1965 में ही नंदा की एक और सुपरहिट फिल्म गुमनाम भी प्रदर्शित हुई। मनोज कुमार और नंदा की मुख्य भूमिका वाली इस फिल्म में रहस्य और रोमांस के ताने-बाने से बुनी मधुर गीत-संगीत और ध्वनि के कल्पनामय इस्तेमाल किया गया था। वर्ष 1969 में नंदा के सिने करियर की एक और सुपरहिट फिल्म ‘इत्तेफाक’ प्रदर्शित हुई। दिलचस्प बात है कि राजेश खन्ना और नंदा की जोड़ी वाली संस्पेंस थ्रिलर इस फिल्म में कोई गीत नहीं था। इसके बावजूद फिल्म को दर्शकों ने काफी पसंद किया और उसे सुपरहिट बना दिया।
वर्ष 1982 में नंदा ने फिल्म ‘आहिस्ता आहिस्ता’ से बतौर चरित्र अभिनेत्री फिल्म इंडस्ट्री में एक बार फिर से वापसी की। इसके बाद उन्होंने राजकपूर की फिल्म ‘प्रेमरोग’ और ‘मजदूर’ जैसी फिल्मों में अभिनय किया। दिलचस्प बात है इन तीनों फिल्मों मे नंदा ने फिल्म अभिनेत्री पदमिनी कोल्हापुरे की मां का किरदार निभाया था। वर्ष 1992 में नंदा ने निर्माता-निर्देशक मनमोहन देसाई के साथ परिणय सूत्र में बंध गई, लेकिन वर्ष 1994 में मनमोहन देसाई की असमय मृत्यु से नंदा को गहरा सदमा पहुंचा। दिलकश अदाओं से दर्शकों को मंत्रमुग्ध करने वाली नंदा 25 मार्च 2014 को इस दुनिया को अलविदा कह गईं।