मैनेजमेंट मंत्र

Game Changer : तैंतीस सालों तक पढ़ाया अब सिखा रही हैं खुश रहना

खुश रहना हर किसी के बस की बात नहीं है। सभी भौतिक संसाधनों का सुख भोगने के बाद भी अधिकांश लोग खुश नहीं रह पाते।

Sep 05, 2018 / 02:33 pm

जमील खान

Neera Kohli

खुश रहना हर किसी के बस की बात नहीं है। सभी भौतिक संसाधनों का सुख भोगने के बाद भी अधिकांश लोग खुश नहीं रह पाते। इसकी तलाश में न जाने कहां-कहां भटकते हैं। जबकि कहा जाता है कि खुशी तो आपके भीतर ही छुपी है जो बांटने से और बढ़ती है। एक अध्यापिका जो 33 सालों तक बच्चों को शिक्षा प्रदान करती रहीं और रिटायरमेंट के बाद भी घर नहीं बैठीं। नीरा कोहली ऐसी ही एक शिक्षक हैं जो छात्रों व शिक्षकों को खुश रहने के उपाय बताने के लिए वर्कशॉप्स आयोजित करती हैं। और जीवन के मूल्यों से परिचित करवाती हैं। बताती हैं-मेरे पिता वरिष्ठ पुलिस अधिकारी थे और मां एक गृहिणी। मेरा जन्म जलंधर में हुआ और मैं दिल्ली में पली-बढ़ी। मेरे पेरेंट्स ने मुझे समाज को उसका कर्ज चुकाने वाले मूल्यों के साथ बड़ा किया। पढ़ाना एक नेक काम है यह सोचकर मैंने बीएड, एमएड के साथ अंग्रेजी और राजनीति शास्त्र में दो मास्टर्स डिग्रियां लीं।

जब मैंने दिल्ली के स्कूल में पढऩा शुरू किया तब छोटे बच्चों के लिए प्यार और उनकी देखभाल करना मेरे लिए एक पेशे से ज्यादा जुनून बन गया। शिक्षक के रूप में 33 साल की सेवा के बाद, मैं पिछले साल एक प्रसिद्ध पब्लिक स्कूल में वाइस प्रिंसिपल के पद से सेवानिवृत्त हुई। रियारटमेंट के बाद भी मेरे जीवन में दूसरों को देने के लिए बहुत कुछ बचा था। इसलिए मै ंने ‘द न्यू मी’ नामक एक कार्यक्रम लॉन्च किया। यह कार्यक्रम व्यक्तिगत विकास उपकरण के साथ युवाओं को सशक्त बनाने और उनके चरित्र को समृद्ध करने के लिए था। आज के बच्चों के जीवन में जानकारियों की बमबारी हो रही है। लेकिन कोई भी उन्हें आचरण का पाठ नहीं पढ़ाता। उन्हें कोई यह नहीं बताता कि अपने मूल्यों को किस तरह इस्तेमाल करना चाहिए।

उन्हें सिर्फ सफलता के पीछे भागना सिखाया जा रहा है। खुशी के बारे में कोई नहीं बताता। मेरी वर्कशॉप बौधिक सिद्धंतों पर आधारित है। इसमें खुशियां, साकरात्मक सोच और निजी बदलाव शामिल हैं। इस वर्कशॉप के साथ मैं अलग-अलग स्कूलों व शिक्षकों तक पहुंचने लगी। इसके बाद एक वर्कशॉप की वजह से दूसरी वर्कशॉप करने का मौका मिलने लगा। लोग इसके बारे में एक-दूसरे से बात करने लगे। और इस तरह सिर्फ एक साल में मैंने टीचर और स्टूडेंट्स के लिए 20 वर्कशॉप कीं। मैं खुद को खुशनसीब मानने लगी। मेरे एक सेशन में 300 बच्चों ने हिस्सा लिया।

एक कम उम्र की लड़की मेरे वर्कशॉप में पहुंची। उसने कहा- काश आपका यह सत्र लंबा होता। क्या आप मेरे स्कूल आकर सीखा नहीं सकतीं। मैं आपसे सीखना चाहती हूं। हमें अपने युवाओं को हर पल, हर दिन मूल्यों का पाठ पढ़ाना चाहिए। हमें अपने शिक्षकों को सही मायने में एक रोल मॉडल बनाने की जरूरत है। बदलाव के लिए हमें हजारों लोगों की जरूरत नहीं है। जैसा कि मलाला यूसुफजई ने कहा, एक किताब, एक कलम, एक बच्चा, और एक शिक्षक, दुनिया को बदल सकता है।

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