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लोकसभा चुनाव 2019: क्या वाकई 25 साल पुरानी दुश्मनी भूल चुके हैं माया-मुलायम या ये सिर्फ चुनावी स्टंट है, पढ़िए रिपोर्ट!

locationमैनपुरीPublished: Apr 20, 2019 12:40:24 pm

Submitted by:

suchita mishra

जानिए माया-मुलायम के मंच साझा करने के क्या हैं सियासी मायने, पढ़िए रिपोर्ट!

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मैनपुरी। सियासी बिसात पर मैनपुरी शहर के लिए 19 अप्रैल का दिन हमेशा के लिए इतिहास बन गया। 19 अप्रैल को सपा-बसपा की संयुक्त रैली में जब सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती मंच पर अगल-बगल बैठे नजर आए तो हर कोई ये दृश्य देखकर हैरान था। रैली से पहले तक मुलायम सिंह को लेकर तरह तरह के कयास लगाए जा रहे थे। लेकिन 25 साल बाद दो धुर विरोधियों को एक साथ, एक मंच पर बैठा देख और एक दूसरे की तारीफों के पुल बांधते हुए देखकर ये तो स्पष्ट हो गया कि राजनीति में कब क्या हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। इस नजारे को देखने के बाद हर किसी के दिमाग में एक सवाल तो आया होगा कि क्या वाकई माया के प्रति नेताजी ‘मुलायम’ हो गए हैं या ये सिर्फ एक सियासी गणित है? आइए जानते हैं-
1993 में मिले थे दिल, लेकिन नहीं चला रिश्ता
1993 में भी माहौल कुछ ऐसा ही था। यानी उस समय भी भारतीय जनता पार्टी को रोकने के लिए सपा-बसपा एक हुए थे। तब एक नारा भी दिया गया था मिले मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम। लेकिन ये साथ महज दो साल का ही रहा। 1995 गेस्ट हाउस कांड हो गया और दोनों दलों के बीच संबन्ध दुश्मनी में तब्दील हो गए। 19 अप्रैल को जब मायावती ने मुलायम के साथ मंच साझा करने के बाद जनता को संबोधित किया, तो अपने संबोधन की शुरुआत में उन्होंने उस गेस्ट हाउस कांड का एक बार फिर से जिक्र किया। हालांकि बाद में उन्होंने नेता जी के तारीफों के पुल भी बांधे। मायावती ने कहा कि कभी कभी जनहित में कठिन फैसले लेने पड़ते हैं। यदि उनकी बात पर गौर किया जाए तो इससे ये तो स्पष्ट है कि मायावती के दिल में उस कांड की कसक कहीं न कहीं आज भी है।
गठबंधन से मुलायम नहीं थे खुश
इस रैली से पहले तक इस बात की भी चर्चाएं थीं कि मुलायम सपा-बसपा गठबंधन से खुश नहीं हैं। कुछ समय पहले मुलायम ने कहा था कि अखिलेश ने मुझसे पूछे बिना ही बसपा से गठबंधन कर लिया। बसपा को आधी सीटें देने का आधार क्या है? हमारी पार्टी कहीं अधिक दमदार है। हम सशक्त हैं, लेकिन हमारे लोग पार्टी को कमजोर कर रहे हैं। नेता जी के इस तरह के कथन से कहीं न कहीं जनता को ये संदेश जा रहा था कि इस गठबंधन पर नेता जी दिल से सहमत नहीं हैं। इससे यादव वोटर असमंजस की स्थिति में थे।
इसलिए मंच पर साथ आए माया-मुलायम
यादव वोटरों के साथ साथ बसपा के पारंपरिक वोटरों के बीच असमंजस की स्थिति को खत्म करने और उन्हें गठबंधन के लिए एकजुट करने के लिए ये रणनीति तैयार की गई और नेताजी मुलायम सिंह व मायावती को एक साथ एक मंच पर लाया गया। इसके लिए मैनपुरी को इसलिए चुना गया क्योंकि यह नेताजी का संसदीय क्षेत्र होने के साथ यादवों के प्रभाव वाला क्षेत्र है। यहां माया-मुलायम ने एक साथ आकर जनता को ये संदेश देने की कोशिश की है कि वे 25 साल पुरानी घटना को भूलकर अब आगे बढ़ चुके हैं और इस गठबंधन में किसी की भी असहमति नहीं है। मायावती को भी इस रैली में विशेष सम्मान दिया गया। मुलायम खुद बीच की कुर्सी पर नहीं बैठे माया को अपने और अखिलेश के बीच में बैठाया तो वहीं माया ने नेताजी के आगमन का स्वागत खड़े होकर किया। इसके बाद दोनों ने एक दूसरे की तारीफ की। इन सब स्थितियों का विश्लेषण करने पर ये तो साफ हो गया, कि सियासी बिसात पर चला गया ये चुनावी दांव है। ये साथ दिमाग का है दिल का नहीं। अब देखना ये है कि इस बार ये साथ कितने दिनों तक टिक पाता है।
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