बाल विवाह रोकने में बड़ी चुनौती लोगों में जागरूकता की कमी भी है। महिला सशक्तिकरण के अंतर्गत आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के साथ आइसीपीएस के तहत ब्लॉक लेवल पर टीमए पटवारीए तहसीलदारए एसडीएमए एडीएमए कलेक्टर आदि विवाह रोकने के लिए तैनात होते हैंए लेकिन शिकायत नहीं मिलने पर यह कारगर साबित नहीं होते। शिकायत के बाद जब दल विवाह रुकवाने पहुंचता है तो कागजी खानापूर्ति कर दी जाती है। सामाजिक और क्षेत्र विशेष की स्थितियों को देखते हुए कानूनी कार्रवाई का अभाव रहता है। इस कारण आपसी रजामंदी से गुपचुप बाल विवाह कर दिए जाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में नजर चुराकर बाल विवाह ग्राफ शहरों के मुकाबले अधिक है।
95 में से एक में भी पुलिस केस नहीं महिला सशक्तिकरण कार्यालय के अनुसार बाल विवाह के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती हैए लेकिन गत वर्ष रोके गए 95 बाल विवाह में से एक भी मामले में पुलिस प्रकरण नहीं बना। कर्मचारियों का मत है कि विवाह रोकने का अनुबंधए मतलब कागजी लिखापढ़ी के बाद पुलिस में प्रकरण दर्ज कराना ग्रामीण क्षेत्रों में आसान नहीं है
दोनों की रजामंदीए क्या करे प्रशासन गैरकानूनी होने के बावजूद अशिक्षित या परंपरा के नाम पर कुरीतियों में फंसे लोग बाल विवाह से परहेज नहीं करते हैं। प्रशासन की सख्ती पर कागजों पर तो विवाह टाल दिया जाता हैए दूल्हा.दुल्हन के बालिग होने तक शादी रोकने का परिजन वादा भी करते हैंए लेकिन वास्तविकता अलग ही है। शादी के खर्च और दोनों पक्ष की रजामंदी के चलते गुपचुप शादी कर लेते हैं।
2011 की जनगणना में उज्जैन की स्थिति
18 वर्ष से कम 21 वर्ष से कम 18724 ;कुलद्ध 71299;कुलद्ध 14923;ग्रामीणद्ध 56098;ग्रामीणद्ध
3801;शहरीद्ध 15201;शहरीद्ध बालिकाओं के लिए विवाह की न्यूनतम कानूनी उम्र 18 वर्ष तथा बालकों के लिए 21 वर्ष तय है।
यह है प्रावधान
बाल विवाह एक अपराध हैए जिस पर एक लाख का दंड व दो वर्ष के सश्रम कारावास की सजा का प्रावधान है।
लोग सूचना तक नहीं देते
ग्रामीण क्षेत्र में अशिक्षा व जागरूकता की कमी के कारण बाल विवाह पर रोक नहीं लग पा रहा है। जानकारी मिलती है तो हम रुकवा देते हैंए लेकिन जानकारी के अभाव में बाल विवाह हो रहे हैं। कबए कितने विवाह हुएए इसकी जानकारी देना असंभव इसलिए हैए क्योंकि पता चल जाता तो होने ही नहीं देतेए लेकिन बाल विवाह होने से इनकार नहीं कर सकते।
. संजय सक्सेनाए पूर्व सदस्यए बाल कल्याण समिति उज्जैन
शिकायत मिलते ही तत्काल दबिश देकर बाल विवाह रुकवाते हैं। परंपरा होने से जागरूकता आने की गति धीमी है। विवाह रुकवाने में कई बार असहज स्थिति का सामना करना पड़ता है। नाराजगी तक झेलना पड़ती है। जब दंड व सजा का प्रावधान बताते हैंए तब विवाह पर रोक लगती है। पुलिस प्रकरण की बात करें तो शादी के बाद गर्भवती होने की सूचना से पता चलता हैए नाबालिग का विवाह हुआ और वह गर्भवती हो गईए तब उनके विरूद्ध पुलिस में प्रकरण दर्ज कराते हैं। वर्ष में 3.4 मामले ऐसे हो ही जाते हैं।
. साबिर अहमद सिद्दीकीए महिला सशक्तिकरण अधिकारी