मधुबनी
यहां का चुनावी घमासान तिकोना हो चुका है। 17,65,695 मतदाताओं में मुस्लिम 3.5, यादव 2.5, ब्राह्मण 3.25लाख, भूमिहार-राजपूत 2.50 लाख तथा शेष अन्य जातियों में बंटे क्षेत्र में ब्राह्मण और मुस्लिम वोट निर्णायक होते हैं। हुकुमदेव नारायण यादव की सीट पर भाजपा ने उनके पुत्र अशोक यादव और महागठबंधन की ओर से वीआईपी ने बद्री पूर्वे को खड़ा किया है।वीआईपी को सीट दिए जाने से आरजेडी सांसद रहे अली अशरफ फातमी नाराज होकर बसपा से नामांकन कर दिया पर वापसी भी कर ली। पर कांग्रेस के शकील अहमद पार्टी प्रवक्ता पद छोड़ निर्दलीय भिड़ गये। इन्हें पार्टी का गुपचुप समर्थन भी प्राप्त है। शकील अहमद के होने से महागठबंधन में एकसुर नहीं बन रहा और वीआईपी ने कांग्रेस की सीटों सासाराम और मोतिहारी में महागठबंधन के उम्मीदवारों के खिलाफ उम्मीदवार खड़े कर दिए। तिकोनी जंग में ब्राह्मण, कुर्मी, कुशवाहा समेत विभिन्न जातियों की गोलबंदी मोदी के नाम पर भाजपा के साथ है जबकि मुस्लिम मतदाताओं में विभाजन के हालात हैं। मुस्लिम यादव मतदाता इकट्ठे हुए तो लड़ाई दिलचस्प हो सकती है पर इनमें विभाजन से एनडीए की राह आसान हो गई दिखती है।
हाजीपुर
पहली बार यहां लोकल नहीं राष्ट्रीय मुद्दे उछाले जा रहे हैं। 18,17,916 मतदाताओं वाले क्षेत्र से आठ बार सांसद रहे रामविलास पासवान के भाई और प्रदेश लोजपाध्यक्ष व पशुपालन मंत्री पशुपति कुमार पारस एनडीए उम्मीदवार हैं। उनका मुकाबला सीधे आरजेडी के शिवचंद्र राम से हो रहा है जो लालू राबड़ी के भरोसेमंद नेता और रिजापाकर विधानसभा क्षेत्र के विधायक हैं।रामविलास पासवान के चुनाव नहीं लड़ने की सूरत में उनके भाई पारस को कई को लेकर मुश्किलें झेलनी पड़ रही हैं पर मोदी मुद्दे के तीखेपन का लाभ भी मिल रहा है। यादव और मुस्लिम मतदाताओं के अलावा महादलित वोटों के सहारे शिवचंद्र राम इन्हें कड़े मुकाबले में फछाड़ने की जुगत लगाए हुए हैं।
सारण
आमने—सामने की लड़ाई में लालू यादव की प्रतिष्ठा का प्रश्न भी जुड़ा है जहां उनके समधी और तेजप्रताप यादव के श्वसुर चंद्रिका राय मुस्लिम यादव यानी माई समीकरण के भरोसे टिके हैं।16,61,620 वोटरों में 25 फीसदी यादव, 23 फीसदी राजपूत, 20 फीसदी वैश्य, 13 फीसदी मुस्लिम, छह फीसदी बाकी सवर्ण तथा सात फीसदी अन्य जातियों वाले इस क्षेत्र में भाजपा उम्मीदवार रिजीव प्रताप रूडी के पक्ष में मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए यादव मुस्लिम छोड़ अन्य जातियां पूरी तर गोलबंद हैं। दस बार राजपूत और छह बार यादव उम्मीदवार की जीत के इतिहास के बीच यहां जीत उसी की होती है जो जातीय समीकरणों को साधने में सफल होता है।पिछली बार रूडी ने मोदी लहर में राबड़ी देवी को हराया था।कमोबेश इस बार के हालात भी वैसे ही बने हैं।
मुजफ्फरपुर
खुदीराम बोस को फांसी दिए जाने के इतिहास को समेटे रहने और हिंदी के विख्यात कवि जानकीवल्लभ शास्त्री की भूमि मुजफ्फरपुर में इस बार जीत हार बहुसंख्यक निषाद वोटों के रुख पर निर्भर करता है। 17,26,882 मतदाताओं वाले क्षेत्र में जॉर्ज फर्नांडिस और कैप्टन जयनारायण निषाद की जीत के पीछे भी निषाद समेत अन्य जातियों की गोलबंदी ही निर्णायक होती रही। इस बार की चुनावी जंग में निवर्तमान भाजपा सांसद अजय निषाद को महागठबंधन के दल वीआईपी के पहली बार उम्मीदवार बने राजभूषण चौधरी से सीधा लड़ना पड़ रहा है। दोनों ही ओर बहुसंख्यक निषाद वोटरों का सहारा है। यहां कांटे की टक्कर में दोनों ही के पास मजबूत आधार है। कुशवाहा, वैश्य, मुस्लिम, यादव और सवर्ण मतदाता अपने अपने खेमों में बंटे हैं। जीत उसी की होगी जो अधिक निषाद वोटरों को अपनी ओर ला पाने में सफल हो पाएगा।
सीतामढ़ी
जनकनंदिनी जानकी की जन्मभूमि सीतामढ़ी में भी जदयू उम्मीदवार और सुनील कुमार पिंटू तथा महागठबंधन के आरजेडी उम्मीदवार अर्जुन राय के बीच कांटे की टक्कर है। अर्जुन राय जदयू छोड़ आरजेडी की शरण में आए जबकि जदयू ने अपने घोषित उम्मीदवार के मैदान छोड़ देने के बाद पूर्व मंत्री और भाजपा नेता पींटू को पार्टी में शामिल कर उम्मीदवार बनाया। एनडीए को अपने आधार वोटों के साथ नरेंद्र मोदी के खेवनहार होने का भरोसा है तो महागठबंधन मुस्लिम-यादव के साथ कुशवाहा-मांझी कै वोटों को एमवाई समीकरण में जोड़कर नैया पार लगा लेने की ताक में है।