गोआश्रय या चारा बैंक बनाए जाएंगे
सरकार के नियंत्रण में जो भी जमीन खाली है, गोचर, मंडी परिषद, चीनी मिल, शिक्षण संस्था, सहकारी क्षेत्र और केंद्र सरकार के प्रतिष्ठानों की निष्प्रयोज्य जमीन में जरूरत के अनुसार गोआश्रय या चारा बैंक बनाए जाएंगे। किसी संस्था या व्यक्ति के पक्ष में संबंधित जमीन पट्टे पर नहीं दी जा सकेगी। अलबत्ता इच्छुक व्यक्ति को गोआश्रय के संचालन की जिम्मेदारी दी जा सकेगी। ऐसी जमीन की पहचान कृषि और उद्यान विभाग के लोग करेंगे। पहचान के बाद ग्राम्य विकास और पंचायतराज विभाग इसे पशुओं को रहने योग्य बनाएंगे। प्रकाश एवं पेयजल की जिम्मेदारी ग्राम और क्षेत्र पंचायतों की होगी।
उम्र के अनुसार पशुओं की रहने की व्यवस्था
पशुओं की उम्र के अनुसार उनके के रहने की व्यवस्था होगी। छह माह तक बच्चे मां के ही साथ रहेंगे। अशक्त पशुओं के लिए बिछावन की व्यवस्था होगी। पशुओं के रहने के लिए लगभग उन्हीं मानकों का पालन होगा जो किसी डेयरी में होता है, मसलन सिर्फ 10 फीसद हिस्से में शेड होगाबाकी खुला होगा। पशुओं के घुमने की भी जगह होगी। उनके चरने के लिये हरी घास की भी व्यवस्था रहेगी। पशुओं को 10 फीसद फाइबर युक्त आहार दिया जाना है, लिहाजा उनमें चारा उगाया जाएगा। स्वास्थ्य जांच, टीकाकरण की जिम्मेदारी मुख्य चिकित्साधिकारी की होगी। हर पशु की टैगिंग होगी। अभी तक टैगिंग के लिए वित्त पोषण केंद्र सरकार करती है। प्रदेश में पशुओं की संख्या को देखते हुए पशुपालन विभाग योजना बनाकर प्रदेश सरकार से बजट में अतिरिक्त टैग उपलब्ध कराने के लिए धन की मांग करेगा।
थानों को दिया जाएगा सुरक्षा का जिम्मा
पशुओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी स्थानीय थाने की होगी। जिला स्तरीय समिति के फैसले से चौकीदार को इसके लिए कुछ अतिरिक्त पैसा भी दिया जा सकता है। समिति गोआश्रयों के रख-रखाव के लिए भी 2000 रुपये देकर अंशकालिक श्रमिक रखने की अनुमति दे सकती है। प्रयास होगा कि इसके लिए उनको ही तैयार किया जाये जो पहले से किसी योजना के तहत अंशकालिक रूप से काम कर रहे हों। गोआश्रय सरकार के लिए स्थायी बोझ ने बने इसके लिए इनको स्वावलंबी बनाया जाएगा। लोगों को पंचगव्य से बने औषधियों, फसलों के लिए जीवामृत की उपयोगिता और जीरो बजट खेती के प्रति जागरूक किया जाएगा। इससे गाय के दूध के अलावा गोबर, और मूत्र का भी उपयोग हो सकेगा। गोबर के अन्य तरह प्रयोग को भी बढ़ावा दिया जाएगा।