बदायूं की एक दरगाह में मानसिक रूप से बीमारों को रूहानी इलाज के नाम पर जंजीरों से बांधकर रखा गया था। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अशोक कुमार के मुताबिक कोर्ट आदेश के बाद दरगाह से 22 मानसिक रोगियों को मुक्त कराया गया। गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय में अधिवक्ता गौरव कुमार बंसल ने यहां के बड़े सरकार दरगाह में रूहानी इलाज के नाम मानसिक रोगियों को जंजीरों बांधने के खिलाफ जनहित याचिका दायर की थी। कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि यह बहुत ही गलत,नृशंस और अमानवीय है। मानसिक मरीजों की भी एक गरिमा और इज्जत होती है, इसलिए ऐसा करना गलत है। कोर्ट ने इस संबंध में राज्य और केंद्र सरकार को नोटिस जारी की थी। इसके बाद सोमवार को हुई सुनवाई में उप्र सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए आश्वस्त किया है कि रुहानी इलाज के नाम पर हो रहे उत्पीडऩ को रोका जाएगा। इसके लिए सीएमओ के नेतृत्व में टीम गठित की जाएगी जो इस तरह के इलाज करने वाले कैंपों की पड़ताल करेगी और उनकी लिस्ट तैयार होगी। यदि मानवाधिकार उल्लंघन हुआ तो नियमानुसार कार्रवाई होगी।
दरगाह और ओझाओं की पिंडी पर मानसिक रोगियों को रूहानी इलाज के लिए लेकर लोग आते हैं। मान्यता है कि यहां लोगों को बुरी प्रेतात्माओं से छुटकारा मिलता है। माना जाता है कि रोगी पर किसी बुरी आत्मा का साया है, इसीलिए उसको रूहानी इलाज या फिर झाड़-फूंक या ओझाई की जरूरत है। ऐसे मरीजों को अक्सर बेडिय़ों और जंजीरों में बांधकर रखा जाता है ताकि रोगी कहीं भाग न सके और किसी पर हमला न कर दे।
मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम यानी मेंटल हेल्थ केयर एक्ट मानसिक बीमारी से ग्रस्त लोगों के मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल और सेवाएं मुहैय्या कराने की गारंटी देता है। यह एक्ट यह भी सुनिश्चित करता है कि किसी भी मानसिक रोगी के साथ कोई भेदभाव न हो तथा उसे प्रतिष्ठा के साथ जीने का अधिकार मिले। इसके अलावा यह एक्ट आत्महत्या को भी अपराध मुक्त करता है।
उप्र में मानसिक रोगियों की संख्या का कोई आधिकारिक डाटा उपलब्ध नहीं है। अनुमानत: 6 से 7 प्रतिशत आबादी किसी न किसी रूप में मानसिक विकार की शिकार है। इनमें अवसाद तथा चिंताग्रस्त रोगी भी शामिल हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी मानता है कि चार में से हर एक इन्सान कभी न कभी अपने जीवन में मानसिक बीमारियों से गुजरता है।