कुर्ते और अगौछे की बिक्री में भी इस बार चुनाव में भारी गिरावट आई है। अब तक किसी भी दुकानदार को थोक आर्डर मिला ही नहीं। पहले कुर्ते-पजामे, अगौछे और टोपी आदि का एक बार में 100.-100 आर्डर मिला करते थे। लेकिन, अब तस्वीर बदल गयी है। इस बार चुनावों में आम आदमी अभी तक नहीं जुड़ पाया है। योगी और मोदी के नाम वाली और नमो ब्रांड की टीशर्ट और टोपियां भी डंप हंै। लोकसभा चुनावों से ज्यादा विधानसभा चुनावों में भगवा टी शर्टें बिकी थीं। इसी उम्मीद में दुकानदारों ने नमो ब्रांड की टीशर्ट, की रिंग,टोपी, काफी मग, बैज के अलावा मैं भी चौकीदार लिखी टी शर्ट का कुछ ज्यादा ही आर्डर दे दिया था। अब जब बिक्री प्रभावित हुई तो माल बेचने के लिए वे टाटा मैजिक किराए पर लेकर जिले-जिले में माल की सप्लाई कर रहे हैं।
कमोबेश, कुछ इसी तरह का हाल कांग्रेस पार्टी का भी है। कांग्रेस से जुड़ी प्रचार सामग्री बेचने वाले दुकानदारों का कहना है कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की रैलियों और रोडशो वाले संसदीय क्षेत्रों से कांग्रेसी पोस्टर, झंडे और राहुल टी शर्ट की डिमांड आती है लेकिन पूरी सीजन में एक बार में 100 से अधिक का आर्डर नहीं मिला। प्र्रियंका के मुस्कराते चेहरे वाला पट्टा, स्क्राल भी डिमांड में है। यह 100 रुपए तक में बिक जा रहा है।
कारोबारियों के अनुसार यूपी में सपा-बसपा गठबंधन का फायदा भले ही इन दोनों पार्टियों को मिले लेकिन दोनों दलों के साझा चुनाव लडऩे से उन्हें नुकसान हुआ है। एक तो 37-38 क्षेत्रों में ही सपा-बसपा के बैनर, पोस्टर बिकने की राह बची। दूसरे पहले से रखी चुनाव सामग्री भी खराब हो गयी। कारोबारियों को उम्मीद थी कि विधानसभा चुनाव में बची सामग्री लोकसभा चुनाव में खप जाएगी। लेकिन उम्मीदों पर पानी फिर दिया। अखिलेश और मायावती के संयुक्त चेहरे और सपा-बसपा के संयुक्त झंडों की डिमांड है। अखिलेश और डिंपल के चेहरे वाली टीशर्टों और टोपियों को युवा ही खरीद रहे हैं।
चुनाव आयोग ने प्रति उम्मीदवार अधिकतम 70 लाख के खर्च की सीमा तय की है। हालांकि नेता इससे कहीं ज्यादा खर्च कर रहे हैं लेकिन आयोग की सख्ती के कारण झंडे,बैनर,पोस्टर और चुनाव सामग्रियों की खरीदी से बच रहे हैं।
चुनाव प्रचार सामग्री बेचने वाले ही नहीं इस बार चुनाव सामग्री की प्रिंटिग करने वाले प्रिंटर और फ्लैक्स मशीन लगाकर मोटी कमाई का सपना देखने वाले कारोबारी भी चुनाव से निराश हुए हैं। बैलेट पेपर तक की छपाई का आर्डर उन्हें नहीं मिल रहा है। बैनर और पोस्टर भी इक्का दुक्का दिख रहे हैं। चुनावी रैलियों के लिए कट आउट आदि में भी गिरावट देखी जा रही है।
इस बार चुनाव प्रचार सामग्रियों की बिक्री पर सबसे अधिक मार सोशल मीडिया की तरफ से पड़ी है। वाट्सअप, टेलीग्राम, शेयरचैट आदि ने कारोबारियों की रीढ़ तोड़ दी है। पूरा चुनाव वाट्सअप पर लड़ा जा रहा है। एक तरह से यह पहला वाट्सअप चुनाव है। एक ग्रुप में कम से कम 256 मेंबर के हिसाब से पांच ग्रुप के जरिए कम से कम 1280 लोगों के पास मैसेज फारवर्ड किए जा रहे हैं। भारत में 30 करोड़ फेसबुक एकाउंट हैं। एक अनुमान के मुताबिक इनमें से यूपी में कम से कम एक करोड़ लोग वाट्सअप चला रहे हैं। हेलो, शेयर इट, टेलीग्राम की संख्या अलग है। सभी पार्टियां अपने समर्थकों के पास इन्ही सोशल मीडिया के सहारे पहुंच रही हैं।