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लखनऊ

गोमती को प्रदूषित करने वालों पर अब तक का सबसे बड़ा जुर्माना

-सफाई के लिए सरकार को जमा करना होगा 100 करोड़-ऋषि वशिष्ठ की पुत्री गोमती के किनारे सैर करने पर भी रोक-नदी के पानी में कई जगह ऑक्सीजन शून्य, यह खतरनाक स्थित-नगर निगम और जल निगम के भ्रष्ट अफसरों की करतूत

लखनऊJun 25, 2019 / 04:33 pm

Karishma Lalwani

gomti

गोमती के प्रदूषण खत्म करने के लिए एनजीटी टीम की सिफारिश, योगी सरकार जमा कराए 100 कोरड़ रुपये

लखनऊ. जीवनदायिनी गोमती नदी (River Gomti) के प्रदूषित बनाने वालों पर अब तक इतिहास का सबसे बड़ा जुर्माना लगाया गया है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने गोमती के प्रदूषण के लिए नगर निगम,जल निगम और राज्य सरकार के कई अन्य विभागों को जिम्मेदार मानते हुए इनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की सिफारिश की है। इसके साथ 100 करोड़ का एक फंड बनाने की बात कही गयी है। दो साल के भीतर यदि गंदे नालों का पानी नदी में गिरना बंद न हुआ तो इस राशि को जब्त कर लिया जाएगा। इस राशि का इस्तेमाल नदी के प्रदूषण को खत्म करने मे किया जाएगा।
जीवनदायिनी गोमती नदी का पानी अब नहाने लायक भी नहीं बचा। पानी इतना विषैला हो गया है कि गोमती के किनारे सैर करना भी खतरे से खाली नहीं है। हालत यह है कि गोमती के पानी में कई जगहों पर ऑक्सीजन शून्य के स्तर पर पहुंच गयी है। गोमती की इस दशा के जिम्मेदार उप्र सरकार के अधिकारी हैं। इसलिए जिम्मेदार एजेंसियों को गोमती सफाई के लिए 100 करोड़ रुपए जमा करने की सिफारिश की गयी है। यह सिफारिश नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण की अनुश्रवण समिति ने की है।
एक लाख लीटर मलयुक्त पानी गिराया नदी में

रिपोर्ट के अनुसार लखनऊ की नगर निगम सीमा की आबादी 34,75,212 है। इस तरह प्रति व्यक्ति रोजाना लगभग 194 लीटर सीवरेज होता है। वर्ष 2018 में लखनऊ में 2,46,375 लाख लीटर सीवरेज निकला। वहीं, सभी एसटीपी मिलाकर 1,44,349 लाख लीटर सीवरेज ही शोधित कर सके। ऐसे में 1,02,026 लाख लीटर सीवरेज और गंदा पानी यूं ही गोमती में बहा दिया गया। इससे जल प्रदूषण अत्यधिक बढ़ा हुआ है।
11 जिलों से गुजरती है नदी

गोमती नदी पीलीभीत के माधवटांडा स्थित गोमद ताल से निकली है। यहां से निकली जलधारा 11 जिलों में 900 किमी का सफर तय कर जौनपुर के पास सैदपुर में गंगा में मिलती है। इस सफर में 33 गंदे नालों का गंदा पानी और सीवरेज गोमती में गिरता है। गोमती जिन जिलों से होकर निकलती है उनमें पीलीभीत, शाहजहांपुर, लखीमपुर खीरी, हरदोई, सीतापुर, लखनऊ, बाराबंकी, फैजाबाद, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़ तथा जौनपुर शामिल हैं।
मुख्य सचिव पर भी उठाए सवाल

प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव अनूप चंद्र पांडेय पर भी अनुश्रवण समिति ने सवाल उठाए हैं। मुख्य सचिव ने 26 अप्रैल को एनजीटी के सामने खुद ठोस अपशिष्ट और अस्पताली कचरा के प्रबंधन की जिम्मेदारी ली थी। इसके बाद अनुश्रवण समिति के उपयोग पर उन्हीं को औचित्य तय करना था। समिति का कहना है कि 70 साल में जो सरकार कुछ नहीं कर पाई, अब अचानक इसकी जिम्मेदारी लेना चाहती है।
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एनजीटी अनुश्रवण समिति की सिफारिशें

-राजनीतिक हस्तक्षेप और भ्रष्टाचार प्रदूषण की बड़ी वजह
-जिम्मेदार अधिकारी संवैधानिक दायित्वों के निर्वहन में नाकाम
-राज्य सरकार को बनाना होगा 100 करोड़ का फंड
-दो साल में नालों का गंदा पानी नदी में गिरने से रोकना होगा
-गंदे पानी का प्रवाह न रुका तो 100 करोड़ की राशि होगी जब्त
-11 जिलाधिकारियों को निर्देश-नदी में नहाने व किनारों पर टहलने से रोकें
-सभी डीएम नौ महीने के अंदर तय करें एसटीपी में शोधन के बाद ही नदी में पानी बहाया जाए
-गोमती के दोनों किनारों से 150 मीटर की दूरी तक निर्माण पर रोक
– सीतापुर, लखीमपुर खीरी में झील और तालाबों को पुनर्जीवित करने का निर्देश
इन पर भी जुर्माना

-पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए यूपीपीसीबी पर 6.84 करोड़ का हर्जाना
-नदी में कूड़ा गिराने के जिम्मेदार जल निगम पर तीन करोड़ और नगर निगम पर पांच करोड़ का पर्यावरणीय हर्जाना
-नदी को मैला करने के लिए 10 जिलों की नगर निगम,नगर पालिका पर भी एक-एक करोड़ रुपये का हर्जाना
यह भी कहा कि राजनीतिक हस्तक्षेप और भ्रष्टाचार के चलते मुख्य सचिव और अन्य जिम्मेदार अधिकारी संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन करने में असफल रहे हैं। इस कारण आज तक नदी प्रदूषण मुक्त नहीं हो पाई।
ये सिफारिशें भी आईं

– यूपीपीसीबी, सीपीसीबी की रिपोर्ट के अनुसार नगर निगम, जल निगम तीन माह में विधि अनुसार सभी औपचारिकताओं को पूरा करे।
– नगर निगम और जल निगम एसटीपी बनाने और मुख्य नालों बिना शोधन गोमती से गिरने से रोकने को डीपीआर प्रस्तुत करे।
– सीवेज के उपचार की क्षमता बढ़ाने को जल निगम और नगर निगम सरकार के समक्ष परियोजनाएं प्रस्तुत करें।
– गोमती में शारदा नहर के मोरदैया और अटरिया से अतिरिक्त जल को छोड़ें, जिससे नदी में जल प्रदूषण कम हो सके।
– नदी के आस-पास हरित क्षेत्र को विकसित किया जाए।
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