ऐसा ही एक वाक्या लखनऊ एस एस पी कार्यालय में सामने आया जब एसएसपी आफिस में नृत्य और संगीत की महफ़िल का आनंद उठाया जा सकता हैं। हाई कोर्ट के अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय जिलाधिकारी और कमिश्नर को शिकायती-पत्र देने के उपरांत डालीगंज स्थित एसएसपी आफिस गए और वहां पूंछने पर पता चला कि शिकायती-पत्र पटल संख्या-19 में लिया जाता है वहां पहुँचने पर मोबाईल फोन पर व्यस्त डीके उपाध्याय ने बताया कि यह कार्य कमरा नम्बर-6 का है वहां जाने पर बताया गया कि यह कार्य डिस्पैच सेक्सन का है l
एस एस पी कार्यालय नहीं मनोरंजन स्थल जब अधिवक्ता रूम न.38 पहुंचा तो पूरा माहौल ही अलग था उसे लगा जैसे वह एसएसपी आफिस में नहीं किसी मनोरंजक स्थल पर आ गया है, वहां कुछ लोग गाने की धुन पर नाच और गा रहे थे किसी तरह एक भद्र महिला ने बताया कि यहाँ सरकारी कार्य होता है। शिकायती पत्र तो डीके उपाध्याय लेते है। इस पर अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय ने कहा कि मैडम मुझे उन्होंने ही डिस्पैच किया है यहाँ के लिए काफी कहा सुनी के बाद भद्र महिला ने कहा कि आप डिस्पैच आईसी मिलिए बगल के कमरे में वहां गया तो डिस्पैच आईसी साहब नदारद थे। थोड़ी देर इन्तजार के बाद फिर डीके उपाध्याय के पास आया और पूरा वाकया उनको सुनाया l
पत्र नहीं हुआ रिसीव डीके उपाध्याय को जब लगा कि अब कुछ करना ही पड़ेगा तो उन्होंने कहा कि आप लाईन में लग जाईए तब प्रार्थी वहीं कुर्सी पर बैठ गया और डीके उपाध्याय साहब फोन पर बात करने लगे तब अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय ने जिले की सुरक्षा के मुखिया के नम्बर पर फोन किया तो उनके ओएसडी ने फोन उठाया और समस्या पूंछने के बाद कहा 19 नम्बर पर पत्र दे दीजिए तब अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय ने कहा कि मैं वहीँ से बोल रहा हूँ साहब फोन पर व्यस्त हैं हमें आफिस बताईए जिसमें मेरा यह पत्र रिसीव किया जा सके।
उसके बाद दीवानजी को जिम्मा सौपकर डीके उपाध्याय ने फोन पर बात करते हुए कहीं घूमने-टहलने चले गए, दीवान ने पर्चा भर दिया लेकिन दस्तखत तो डीके उपाध्याय को ही करनी थी। थोड़ीदेर में वापस आने के बाद कहा कि इस दस्तखत नहीं होता है वकील साहब, आप जाईए लेकिन अधिवक्ता होने के नाते दस्तखत लिए बगैर मैं वहां से हटने वाला नहीं हूँ, यह देखकर उन्होंने हस्ताक्षर किया।
पूरा मामला CCTV में देखा जा सकता हैं इस पूरे प्रकरण को सीसीटीवी में देखा जा सकता है l हाई-कोर्ट के अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय ने बताया कि “अंतिम-आदमी” की उपेक्षा और तिरस्कार सरकार और प्रशासन का अधिकार बन चुका है इसे बदलने के लिए इनकी जवाबदेही “अंतिम-आदमी” के हाथ में देना ही एक मात्र विकल्प है l