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ईश्वर जाति-धर्म नही देखता, केवल भाव देखता है-आचार्य राजत दीक्षित

locationलखनऊPublished: Jan 10, 2019 07:59:59 pm

Submitted by:

Mahendra Pratap

रात ईश्वर की पूजा किया पर आपने मुझे नर्क भेज दिया और इस नृत्यका को आपने स्वर्ग में स्थान दे दिया।

Lucknow Shrimad Bhagwa

ईश्वर जाति-धर्म नही देखता, केवल भाव देखता है-आचार्य राजत दीक्षित

ritesh singh

लखनऊ- ऐशबाग में यज्ञसेनी वैश्य हलवाई धर्मशाला में श्रीमद्भागवत कथा का चौथा दिन था बड़ी ही धूमधाम से श्री कृष्ण जन्म उत्सव मनाया गया जिसमें महिलाओं ने कृष्ण जन्म पर नृत्य किया बड़े- बूढ़े सभी ईश्वर के जन्म पर झूम उठे, बच्चों के लिए गुब्बारे खिलोने बाटे गए।
इस पर आचार्य राजत दीक्षित ने भाव का वर्णन करते हुए कहा कि ईश्वर दान नही देखते दान का भाव देखते हैं क्या दिया कितना दिया ये महत्व नही रखता। उन्होंने एक साधु की कथा में वर्णन करते हुए कहा। एक साधु था वह मंदिर की देखभाल करता था ईश्वर की पूजा पाठ करता था उस मंदिर के सामने एक कोठा था जिसमें एक नृत्यका रहती थी पुजारी शाम को पूजा की तैयारी करते हुए। घुंघरू की आवाज आने लगती और पुजारी का ध्यान ईश्वर से हटकर उस महिला के ऊपर चला जाता था
जिसके घुंघरू की आवाज सुनकर पुजारी उस महिला की सुंदरता की कल्पना करने लगता था और उसको देखना चाहता था वह रोज पूजा के समय घुंघरू की आवाज आने पर उसको देखने का प्रयास करता रहता और मन मे कल्पना करता है कि वो लोग कितने सुखी होगी जिसे उसकी झलक देखने को मिलती है मुझे इस पत्थर की मूर्ति को देख देखकर जीवन व्यतीत करना पड़ता है।
वही वो नृत्यका नृत्य करते हुए ईश्वर का ध्यान लगाती है उसके नैनो से आंसू बहते हैं और नृत्य करती रहती ओर ईश्वर का ध्यान लगा कर कहती हैं हे ईश्वर कब मैं तेरे लिए नृत्य करूंगी कब मैं तुझ से देख पाऊंगा कब मैं इन स्वर्थी लोगो के लोभ से बच कर तेरा ध्यान लगा पहुगी। ऐसे ही दोनो ने अपना जीवन व्यतीत करते रही। एक दिन पंडित जी की मृत्यु हो गई वहां यमलोक पहुचे तो याम ने कहा इसे नर्क भेजा जाए तो पंडित जी ने कहा क्यों प्रभु मैंने तो दिन रात प्रभु की पूजा अर्चना की है
उतनी ही देर में वह नृत्यका भी यमलोक पहुंच गई पंडित ने उसको देखा, बहुत खुश हुआ, कहां प्रभु मुझे कोई परेशानी नहीं है मैं नर्क जाने को तैयार हूं। उसको यकीन था कि वह नृत्यका भी नर्क जाएगी महिला को बुलाया गया और यमराज ने कहा तुम स्वर्ग जाओगी पंडित ने कहा यह तो अन्याय है प्रभु मैंने तो दिन रात ईश्वर की पूजा किया पर आपने मुझे नर्क भेज दिया और इस नृत्यका को आपने स्वर्ग में स्थान दे दिया। तब यमराज कहते हैं तुमने पूरे भाव से ईश्वर की आराधना नही की। इस नृत्यका के अपना काम करते वक्त भी पूरे भाव से ईश्वर का ध्यान लगाया।
इसी पर आचार्य राजत दीक्षित कहते है ईश्वर जाति नही देखता, धर्म नही देखते, दान नही देखते सिर्फ भाव देखते हैं। ईश्वर न कभी वस्तु से प्रसन्न होते हैं ना योग्यता से,न आयु से, न गुणों से, न बल से, न विद्या से, ना रूप से, ना रंग से ईश्वर केवल भक्त के भाव से प्रसन्न होते हैं। कृष्ण ने तो महात्मा विदुर के यहाँ केले के छिलके भी खा लिये थे विदुर के भाव देख के।
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